Extra Questions for Class 9 क्षितिज Chapter 13 ग्राम श्री - सुमित्रानंदन पंत Hindi
Chapter 13 ग्राम श्री Kshitij Extra Questions for Class 9 Hindi
प्रश्न 1. वसंत ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं ? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
वसंत ऋतु में प्रकृति में निरंतर परिवर्तन होता है। कभी धूप निकलती है, तो कभी मंद-मंद हवाएँ चलने लगती हैं। धूप के निकलने पर आस-पास के पर्वत, घास, पेड़-पौधे और उन पर खिले हुए फूल बहुत सुंदर दिखाई देते हैं। चारों ओर हरियाली छा जाती है। भीनी-भीनी गंध सारे वातावरण में फैल जाती है। हरी-भरी धरती पर अलसी के पौधों की नीली-नीली कलियाँ भी झाँकने लगती हैं।
प्रश्न 2. कविता के आधार पर गंगा किनारे की चित्रात्मक छवि का अंकन कीजिए।
उत्तर
कवि ने बनारस और इलाहाबाद में शिक्षा प्राप्त की थी, जहाँ उसने गंगा नदी की शोभा को निकटता से निहारा था। वहाँ की छवियाँ उसके मन में रची-बसी थीं। वसंत ऋतु आने पर पेड़-पौधों व फसलों पर ही बहार नहीं आती बल्कि जीव-जंतु भी अपने भीतर परिवर्तन को अनुभव करते हैं। गंगा की धाराएँ हर पल तटों को नहलाती हुई आगे बढ़ती हैं और उनके आगे बढ़ने से साँपों जैसे निशान रेत पर छूट जाते हैं। धूप में सूखी रेत तरह-तरह के रंगों में चमकती है। दूर-दूर से बहकर आए घास-पात और तिनके तटों की रेत पर बिखर जाते हैं। किसान नदी तट पर तरबूज उगाते हैं। बगुले अपने पंजों रूपी कंघी से अपनी कलगी सँवारते हैं। सुरखाब पानी पर तैरते हैं और पुलिया पर मगरौठी सोई रहती है।
प्रश्न 3. धरती का तल श्यामल क्यों प्रतीत हो रहा था ?
उत्तर
सारा गाँव प्राकृतिक सुषमा से ओत-प्रोत था। खेतों में दूर तक हरियाली ही हरियाली थी। रात की ओस के बाद जब सुबह-सवेरे सूर्य की किरणें उस पर पड़ती थी, तब प्रकृति ऐसे लगती थी जैसे चाँदी की चादर ओढ़े हुए हो। फसलें अपने गहरे हरे रंग से सबको अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। इसी कारण धरती का तल श्यामल प्रतीत हो रहा था।
प्रश्न 4. ‘ग्राम श्री’ कविता में कवि ने मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि ने कविता में जड़ व चेतन तत्वों पर मानवीय भावों संबंधी और क्रियाओं के आरोप से उन्हें मनुष्य की तरह व्यवहार करते दिखाया है। प्रस्तुत कविता में सर्वत्र मानवीकरण अलंकार दिखाई देता है। बगुलों का अपने पैरों के पंजों रूपी कंघी से अपने पंखों को संवारते दिखाया गया है। इसी प्रकार अन्य स्थानों पर प्रकृति के विभिन्न रूपों को मानव के समान क्रियाकलाप करते दिखाया है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर
1. फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटी जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली।
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्याम भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!
प्रश्न :
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली कैसी दिखाई देती है ?
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में क्या झलकता प्रतीत होता है ?
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश किस पर झुका हुआ है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) खेतों में दूर तक फैली हरियाली मखमल के समान कोमल दिखाई देती है।
(ख) फसलों के हरे-भरे तिनकों में उनकी हरी रक्त- रूपी शक्ति झलकती दिखाई देती है। इससे पौधे के स्वस्थ रूप की झलक मिलती है।
(ग) साफ़-स्वच्छ नीला आकाश हरी-भरी फसलों से भरी धरती पर झुका हुआ है।
(घ) प्रकृति चित्रण से संबंधित इस अवतरण में कवि ने गाँव की शोभा का वर्णन करते हुए हरे-भरे खेतों का सजीव चित्रण किया है। नीले आकाश और हरी फसलों के द्वारा अद्भुत रंग योजना की सृष्टि की गई है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश और रूपक अलंकारों का सहज-स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।
2. रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली !
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली !
प्रश्न :
(क) कवि के अनुसार पृथ्वी क्या देखकर रोमांचित है ?
(ख) सोने जैसी करधनियाँ किनकी हैं ?
(ग) नीली कलियों की शोभा कवि को कहाँ दिखाई दी थी ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि के अनुसार गेहूँ और जौ की बालियों को देखकर पृथ्वी रोमांचित है।
(ख) सोने की करधनियाँ अरहर और सनई के पौधों की हैं।
(ग) कवि को अलसी के पौधों की नीली कलियों की शोभा हरी-भरी धरती पर दिखाई दी थी।
(घ) कवि ने वसंत ऋतु के समय खेतों की हरियाली के साथ-साथ विभिन्न पौधों पर तरह-तरह की रंग – योजना का सजीव चित्रण किया है। ‘लो’ शब्द ने नाटकीयता और हैरानी के भाव को प्रकट करने में सफलता प्राप्त की है। गतिशील बिंब योजना है। दृश्य बिंब ने कवि के कथन को चित्रात्मकता का गुण प्रदान किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, अनुप्रास और मानवीकरण अलंकारों का सहज सुंदर चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। तत्सम शब्दाब्ली की अधिकता है।
3. रंग-रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटक
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर
फूले गिरते हों फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर !
प्रश्न :
(क) कवि ने मटरों की सुंदरता का वर्णन कैसे किया है ?
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में क्या छिपाया है ?
(ग) ‘फूलों पर फूल गिरते हुए’ किसके लिए कहा गया है ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) कवि ने मटरों को रंग-बिरंगे फूलों से लदी बेलों पर लटकते हुए प्रकट किया है, जो अति सुंदर हैं। मटरों की फलियाँ मखमली पेटियों के समान कोमल हैं।
(ख) प्रकृति ने मखमली पेटियों में मटर के बीजों की लड़ियों को छिपाया है।
(ग) रंग-बिरंगी तितलियाँ मटर की बेलों पर लगे रंग-बिरंगे फूलों पर मँडरा रही हैं। कवि ने कल्पना करते हुए कहा है कि मानों रंग-बिरंगे फूल ही रंग-बिरंगे फूलों पर गिर रहे हों।
(घ) कवि ने मटर के खेतों में प्रकृति की अनूठी छटा का सुंदर चित्रण किया है। उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश, मानवीकरण और अनुप्रास अलंकारों का सहज-स्वाभाविक चित्रण किया गया है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है। गतिशील बिंब योजना अति स्वाभाविक रूप से की गई है। अभिधा शब्द – शक्ति और प्रसाद युग विद्यमान है। शांत रस है। चाक्षुक बिंब ने दृश्य को सुंदर ढंग से प्रकट किया है।
4. अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली !
प्रश्न :
(क) कवि ने आम के पेड़ों की शोभा कैसे प्रकट की है ?
(ख) किन-किन पेड़ों के पत्ते झड़ने लगे थे ?
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को किसने प्रकट किया था ?
(घ) पंक्तियों में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) आम के पेड़ सरदी जाते ही चाँदी और सोने जैसे रंग के बौर से लद गए हैं। कोयल उन पर मस्ती में भरकर कूकने लगी है।
(ख) ढाक और पीपल के पत्ते झड़ने लगे थे, ताकि उनकी जगह नए और सुंदर पत्ते ले सकें।
(ग) जंगल में प्रकृति के रंग को झरबेरी ने प्रकट किया था।
(घ) कवि ने प्रकृति में होने वाले परिवर्तन का सुंदर सजीव वर्णन किया है। तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है, पर वे सभी शब्द अति सरल और सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त किए जाते हैं। अनुप्रास, मानवीकरण और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण और शांत रस है। गणन शैली का प्रयोग है। लयात्मकता की सृष्टि स्वरमैत्री के कारण हुई है।
5. पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी !
लहलह पालक, महमह धानिया,
लौकी औं सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली !
प्रश्न :
(क) पके हुए अमरूद कैसे दिखाई देते हैं ?
(ख) बेर और आँवले कैसे हो गए हैं ?
(ग) खेतों में सब्ज़ियों पर कैसी-कैसी बहार है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) पके हुए अमरूद पीले रंग के हो गए हैं, जिन पर लाल-लाल चित्तियाँ हैं। वे बहुत मीठे हैं।
(ख) बेर और आँवले शोभा दे रहे हैं। बेर पककर सुनहले हो गए हैं और आँवलों से पेड़ों की डालियाँ पूरी तरह जड़ी जा चुकी हैं।
(ग) खेतों में पालक लहलहा रही है; धनिया महक रहा है; लौकी और सेम की बेलें दूर तक फैली हुई हैं। लाल-लाल मखमली टमाटरों और हरी-भरी मिर्चों पर तो मानो बहार आई हुई है।
(घ) कवि ने खेतों में उगने वाली सब्ज़ियों और फलों की शोभा का सुंदर और सहज वर्णन किया है। पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास का स्वाभाविक प्रयोग सराहनीय है। ‘लहलह’, ‘महमह’ में लयात्मकता है। स्वरमैत्री ने गेयता का गुण प्रदान किया है। अभिधा शब्द – शक्ति, प्रसाद गुण, चित्रात्मकता और दृश्य बिंब सहज सुंदर हैं।
6. बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली भी कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!
प्रश्न :
(क) कवि द्वारा गंगा किनारे का अंकित चित्र स्पष्ट कीजिए।
(ख) बगुले गंगा किनारे क्या कर रहे हैं ?
(ग) मगरौठी क्या कर रही है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य को प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) गंगा किनारे रंग-बिरंगी रेत दूर-दूर तक फैली हुई है, जिस पर लहरों के बहाव से साँप जैसे चिह्न अंकित हैं। घास-पात और तिनके न जाने कहाँ-कहाँ से बहकर वहाँ इकट्ठे हो गए हैं, जो सुंदर लगते हैं। तट पर तरबूजों की खेती की गई है।।
(ख) बगुले गंगा के तट पर अपने पंजे रूपी कँघी से अपनी कलगी सँवार रहे हैं।
(ग) मगरौठी नदी के तट पर आराम से सो रही है।
(घ) कवि ने गंगा तट पर प्राकृतिक दृश्य का अति सुंदर और स्वाभाविक चित्रण किया है। रेत पर साँप – सी लहरियाँ, तरबूजों की खेती और पक्षियों की क्रियाएँ अति सहज रूप से प्रस्तुत हुई हैं। अनुप्रास और स्वाभावोक्ति अलंकारों का सहज प्रयोग सराहनीय है। सामान्य बोलचाल के शब्दों की अधिकता है। अभिधात्मकता और प्रसादात्मकता ने कवि के कथन को सरलता – सरसता प्रदान की है। चित्रात्मकता का गुण और चाक्षुक बिंब विद्यमान है।
7. हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में से खोए
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन !
प्रश्न :
(क) कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई क्यों कहा है?
(ख) ‘भीगी अँधियाली’ क्या है ?
(ग) कवि ने गाँव को ‘मरकत डिब्बे – सा’ क्यों माना है ?
(घ) अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर
(क) वसंत आगमन पर सरदियों की ठिठुरन कम हो जाती है। धूप में थोड़ी तेज़ी बढ़ने लगती है। दिन-रात सरदी से ठिठुरती खेतों की हरियाली भी मानो गरमी पाकर अलसाने लगी थी। इसलिए कवि ने हरियाली को सुख से अलसाई – सी माना है।
(ख) ओस का पड़ना सरदियों का आवश्यक और स्वाभाविक गुण है। रात के अँधकार में ओस चुपचाप पेड़-पौधों तथा सारी प्रकृति को नहला देती है, इसलिए कवि ने उसे भीगी अँधियाली कहा है।
(ग) सारा गाँव हरी-भरी वनस्पतियों से भरा हुआ है। हरियाली तो उसके कण-कण में सिमटी हुई है, इसलिए कवि ने उसे ‘मरकत का डिब्बे – सा’ माना है।
(घ) कवि ने गाँव के कण-कण की शोभा का आधार प्रकृति को माना है। वसंत के आगमन पर प्रकृति का कण-कण खिल उठता है, महक जाता है; कवि ने तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया है। उपमा, मानवीकरण, अनुप्रास तथा पदमैत्री का सहज-स्वाभाविक प्रयोग किया गया है। प्रसादगुण और अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग सराहनीय है। स्वरमैत्री ने लयात्मकता की सृष्टि की है।