Summary of माटी वाली by विद्यासागर नौटियाल Class 9 Kritika Notes
Maati Wali Summary Class 9 Kritika
‘माटी वाली’ सारे टिहरी शहर में जगह-जगह घूमकर लाल मिट्टी बेचती थी। नगर में कोई भी ऐसा घर नहीं था जहाँ वह लाल मिट्टी बेचने न जाती हो। सारे टिहरीवासी उसे बरसों से जानते-पहचानते थे क्योंकि हर घर में चूल्हों के लिए लाल मिट्टी वही पहुँचाती थी 4 हर बार खाने पकाने के बाद चूल्हे पर इस मिट्टी को पोता जाता था। उस सारे क्षेत्र में रेतीली मिट्टी पाई जाती थी, उससे चूल्हों पर लिपाई नहीं की जा सकती थी।
लोग इस मिट्टी को अपने घरों की गोबरी-लिपाई में भी प्रयुक्त करते थे। शहर के सेमल का तप्पड़ मोहल्ले की ओर बने आखिरी खोली में पहुँचकर मिट्टी वाली हरिजन बुढ़िया अपने सिर पर रखे मिट्टी से भरे कनस्तर को नीचे उतारा। कनस्तर पर कोई ढक्कन नहीं था। ढक्कन को वह काटकर उतार देती थी क्योंकि वह मिट्टी भरने और फिर खाली करने में रुकावट बनता था। घर की मालकिन ने मिट्टी वाली से मिट्टी का कनस्तर कच्चे आँगन के एक कोने में उड़ेलने के लिए कहा। उसने मिट्टी वाली को खाने के लिए दो रोटियाँ दीं।
उसने एक रोटी को अपने सिर पर रखे डिल्ले को खोलकर उसके कपड़े में लपेट लिया और दूसरी को घर की मालकिन के द्वारा दी गई पीतल के गिलास में चाय के साथ निगल लिया। चाय के साथ रोटी खाते हुए उसने कहा कि चाय तो बहुत अच्छा साग है तो मालकिन ने कहा कि भूख तो अपने आप में एक साग होती है। सामान्य बातचीत में घर की मालकिन ने उसे बताया कि चाहे बाकी लोगों ने अपने घर की पीतल और काँसे के बर्तन बेचकर स्टील और चीनी मिट्टी के बर्तन खरीद लिए थे, पर वह अपने पूर्वजों की मेहनत से खरीदे बर्तनों को नहीं बेचेगी।
उसे पुरानी चीज़ों के प्रति मोह था पर अब वह सोच-सोचकर परेशान थी कि अब जब टिहरी बाँध के कारण यह जगह उसे छोड़कर जाना पड़ेगा तो वह क्या करेगी। मिट्टी वाली वहाँ से दूसरे घर में गई जहाँ उसे अगले दिन मिट्टी लाने का आदेश मिला। वहाँ से उसे दो रोटियाँ भी मिलीं जिन्हें उसने अपने कपड़े के दूसरे छोर में बाँध लिया। लोग नहीं जानते थे कि उसने रोटियाँ अपने साथ ले जाने के लिए क्यों बाँधी थीं। घर में उसका बुड्ढा पति था। वह रोटी का इंतज़ार कर रहा होगा। आज तो उसे खाने के लिए तीन रोटियाँ मिल जाएँगी जिन्हें देख वह प्रसन्न हो जाएगा।
उसका गाँव टिहरी शहर से दूर था। तो चलने पर भी एक घंटा तो लग ही जाता है। वह हर रोज अपने घर से माटाखान में मिट्टी खोदने जाती। फिर वहाँ से उसे सिर पर ढोकर दूर-दूर बेचने जाती। उसके पास अपना कोई झोंपड़ी या जमीन का टुकड़ा नहीं था। वह तो ठाकुर की जमीन पर झोंपड़ी बनाकर रहती थी जिसके बदले उसे कई काम बेगार करने पड़ते थे।
माटी वाली ने रास्ते में एक पाव प्याज खरीदे ताकि वह अपने बुड्ढे को रोटियों के साथ तले हुए प्याज दे सके। उसका बुड्ढा बहुत कमजोर हो चुका था। अब तो वह डेढ़ से अधिक रोटी खा ही नहीं सकता था। वह अपनी झोंपड़ी में पहुँची। रोज की तरह आज उसका बुड्ढा आहट सुनकर चौंका नहीं। माटी वाली ने घबराकर उसे छू कर देखा। वह तो सदा के लिए जा चुका था। अब उसे किसी रोटी की आवश्यकता नहीं थी।
टिहरी बाँध के पुनर्वास के साहब ने उसे बता दिया था कि जब वहाँ पानी भर जाएगा तो उसके पास रहने के लिए कोई स्थान नहीं होगा। उसे रहने-खाने के लिए स्वयं कहीं प्रबंध करना होगा। टिहरी बाँध की दो सुरंगों को बंद कर दिया गया। शहर में पानी भरने लगा। सारे शहर में आपाधापी मच गई। लोग वहाँ से भागने लगे। सबसे पहले पानी में श्मशान डूब गए। माटी वाली अपनी झोंपड़ी के बाहर हर आने-जाने वाले से यही कहती रही- “गरीब आदमी का श्मशान नहीं उजड़ना चाहिए।”
कठिन शब्दों के अर्थ :
- धरा – रखा
- तलक – तक
- अलावा – अतिरिक्त
- माटी – मिट्टी
- टैम – समय
- बेगार – बिना मज़दूरी काम करना
- कंटर – कनस्तर
- मुशिकल – कठिन
- नाटे – छोटे, ठिगने
- डिल्ले – सिर पर बोझे के नीचे रखने के लिए कपड़े की गद्दी
- गाढ़ी कमाई – परिश्रम से कमाया हुआ धन
- तमाम – सारी