Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी Revision Notes Class 9 अर्थशास्त्र
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Chapter 1 पालमपुर गाँव की कहानी Notes Class 9 Arthashastra
Topics in the Chapter
- उत्पादन का संगठन
- पालमपुर में खेती
- बहुविध फसल प्रणाली
- हरित क्रांति
- पालमपुर में गैर-कृषि क्रियाएँ
उत्पादन का संगठन
पालमपुर आस-पड़ोस के गाँवों और कस्बों से भली भाँति जुड़ाा हुआ गाँव में विभिन्न जातियों के लगभग 450 परिवार रहते हैं।
भारत के गाँवों में खेती उत्पादन की प्रमुख गतिविधि है। अन्य उत्पादन गतिविधियों में, जिन्हें गैर कृषि क्रियाएँ कहा गया है उनमें लघु विनिर्माण, परिवहन, दुकानदारी आदि शामिल है ।
उत्पादन का संगठन
उत्पादन का उद्देश्य ऐसी वस्तुएँ और सेवाएँ उत्पादित करना है, जिनकी हमें आवश्यकता है।
वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए चार चीजें आवश्यक है ।
- भूमि: भूमि तथा अन्य प्राकृतिक संसाधन; जैसे - जल, वन, खनिज।
- श्रम: श्रम अर्थात् जो लोग काम करेंगे। कुछ उत्पादन क्रियाओं में जरूरी कार्यों को करने के लिए बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे कर्मियों की जरूरत होती है । दूसरी क्रियाओं के लिए शारीरिक कार्य करने वाले श्रमिकों की जरूरत होती है।
- भौतिक पूँजी: उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर अपेक्षित कई तरह के आगत औजार, मशीन, भवन को स्थायी पूँजी कहते हैं। कच्चा माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते है ।
- मानव पूँजी: आपको स्वयं उपभोग हेतु या बाजार में बिक्री हेतु उत्पादन करने के लिए भूमि, श्रम और भौतिक पूँजी को एक साथ करने योग्य बनाने के लिए ज्ञान और उद्यम की आवश्यकता पड़ेगी। आजकल इसे मानव पूँजी कहते है।
पालमपुर में खेती
भूमि स्थिर है- पालमपुर के 75 प्रतिशत लोग अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर करते हैं।
- इन लोगों का हित खेतों में उत्पादन से जुड़ा हुआ है।
- पालमपुर गाँव में वास्तव में खेती में प्रयुक्त भूमि-क्षेत्र स्थिर है। | वर्ष 1960 से आज तक जुताई के अन्तर्गत भूमि क्षेत्र में कोई विस्तार नहीं हुआ है।
- उस समय तक, गाँव की बंजर भूमि को कृषि योग्य भूमि में बदल दिया गया था।
- भूमि मापने की इकाई हेक्टेयर है।
भूमि एक प्राकृतिक संसाधन है, अतः इसका सावधानीपूर्वक प्रयोग करने की जरूरत है।
खेती की आधुनिक कृषि विधियों ने प्राकृतिक संसाधन आधार का अति उपयोग किया है।
- अनेक क्षेत्रों में, हरित क्रांति के कारण उर्वरकों के अधिक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम हो गई है।
- नलकूपों से सिंचाई के कारण भूमि जल के सतत् प्रयोग से भौम जल स्तर कम हो गया है।
- रासायनिक उर्वरक ऐसे खनिज देते है जो पानी में घुलकर पौधे को तुरन्त प्राप्त होते है परन्तु ये मिट्टी में अधिक दिन तक सुरक्षित नहीं रहते। ये धरती में समा जाते हैं और भौम जल, नदी और झीलों को प्रदूषित करते हैं।
- रासायनिक उर्वरक भूमि के सूक्ष्म जीवाणुओं को मारते हैं। अत: भूमि की उर्वर क्षमता समाप्त हो जाती है और रासायनिक उर्वरकों का अति उपयोग से निम्नस्तर में बदल जाती है।
पालमपुर में खेती के काम में लगे सभी लोगों के पास खेती के लिए पर्याप्त भूमि नहीं है। गाँव के चारों ओर बिखरे हुए छोटे-छोटे खेत हैं जिस पर छोटे किसान खेती करते हैं।
दूसरी ओर, गाँव के आधे से ज्यादा क्षेत्र में काफी बड़े आकार के प्लॉट हैं, जिन पर मझोले और बड़े 60 किसान हैं जो 2 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर खेती करते हैं। कुछ बड़े किसान हैं जिनके पास 10 हेक्टेयर या इससे अधिक भूमि है।
छोटे किसान अपने परिवारों के साथ अपने खेतों में स्वयं काम करते हैं। मझोले और बड़े किसान अपने खेतों में काम करने के लिए दूसरे श्रमिकों को किराये पर लगाते हैं।
- खेतों में काम करने के लिए श्रमिक या तो भूमिहीन परिवारों से आते हैं या बहुत छोटे प्लॉटों में खेती करने वाले परिवारों से।
- खेतों में काम करने वाले श्रमिक या तो दैनिक मजदूरी के आधार पर कार्य करते हैं या उन्हें कार्य विशेष जैसे कटाई या पूरे साल के लिए काम पर रखा जा सकता है।
- सरकार द्वारा खेतों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए एक दिन का न्यूनतम वेतन ₹300 (अप्रैल 2017 में) निर्धारित है। ।
अधिसंख्य छोटे किसानों को पूँजी की व्यवस्था करने के लिए पैसा उधार लेना पड़ता है।
- वे बड़े किसानों से या गाँव के साहूकारों से या खेती के लिए विभिन्न आगतों की पूर्ति करने वाले व्यापारियों से कर्ज लेते हैं।
- ऐसे कर्जों पर ब्याज की दर बहुत ऊँची होती है। कर्ज चुकाने के लिए उन्हें बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं।
- किसान परिवार के उपभोग के लिए कुछ गेहूँ रख लेते हैं और अधिशेष गेहूँ को बेच देते हैं।
- बाजार में व्यापारी गेहूँ खरीदकर उसे आगे कस्बों और शहरों के दुकानदारों को बेच देते हैं।
- बड़े किसान खेती के अधिशेष कृषि उत्पादों को बेचते हैं और अच्छी कमाई करते हैं।
- इस तरह वे अपनी खेती के लिए पूँजी की व्यवस्था अपनी ही बचतों से कर लेते हैं।
- कुछ किसान बचत का उपयोग पशु, ट्रक आदि खरीदने अथवा दुकान खोलने में भी करते हैं।
खेती की आधुनिक विधियाँ
1. बहुविध फसल प्रणाली
पालमपुर में समस्त भूमि पर खेती की जाती है। कोई भूमि बेकार नहीं छोड़ी जाती।
- बरसात के मौसम (खरीफ) में किसान ज्वार और बाजरा उगाते हैं। इन पौधों को पशुओं के चारे के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
- इसके बाद अक्टूबर और दिसम्बर के बीच आलू की खेती होती है।
- सर्दी के मौसम (रबी) में खेतों में गेहूँ उगाया जाता है।
- भूमि के एक भाग में गन्ने की खेती भी की जाती है, जिसकी वर्ष में एक बार कटाई होती है।
पालमपुर में एक वर्ष में किसान तीन अलग-अलग फसलें इसलिए पैदा करते हैं क्योंकि वहाँ सिंचाई की सुविकसित व्यवस्था है। एक वर्ष में किसी भूमि पर एक से ज्यादा फसल पैदा करने को बहुविध फसल प्रणाली कहते हैं। यह भूमि के किसी एक टुकड़े में उपज बढ़ाने की सबसे सामान्य प्रणाली है।
2. हरित क्रांति
1960 के दशक के मध्य तक खेती में पारम्परिक बीजों का प्रयोग किया जाता था जिनकी उपज अपेक्षाकृत कम थी।
- 1960 के दशक के अन्त में हरित क्रांति ने भारतीय किसानों को अधिक उपज वाले बीजों (एच. वाई. वी.) के द्वारा गेहूँ और चावल की खेती करने के तरीके सिखाए ।
- परम्परागत बीजों की तुलना में एच. वाई. वी. बीजों से एक ही पौधों से ज्यादा मात्रा में अनाज पैदा होने की आशा थी। अधिक उपज केवल अति उपज प्रजातियों वाले बीजों, सिंचाई, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों आदि के संयोजन से ही सम्भव थी।
- भारत में पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने खेती के आधुनिक तरीकों का सबसे पहले प्रयोग किया।
पालमपुर में गैर-कृषि क्रियाएँ
पालमपुर में काम करने वाले केवल 25 प्रतिशत लोग कृषि के अतिरिक्त अन्य कार्य करते हैं।
गाँव में लोग गैर-कृषि क्रियाओं के अन्तर्गत डेयरी, दुकानदारी और पहिवहन से जुड़े कार्यों में लगे हैं।
गैर कृषि कार्यों के प्रसार के लिए यह आवश्यक है कि ऐसे बाजार हों, जहां वस्तुएँ और सेवाएँ बेची जा सकें।
पालमपुर में भी ऐसा ही पाया गया कि आस-पड़ोस के गाँवों, कस्बों और शहरों में दूध, गुड़, गेहूँ आदि उपलब्ध है ।
जैसे-जैसे ज्यादा कस्बों और शहरों से अच्छी सड़कों, परिवहन और टेलीफोन से जुड़ेंगे, भविष्य में गाँवों में गैर-कृषि उत्पादन क्रियाओं के अवसर बढ़ेंगे।
महत्वपूर्ण शब्द
- गैर-कृषि क्रियाएँ: खेती के अलावा गाँव में होने वाली क्रियाएँ ।
- श्रम: ऐसा काम जिसे करते-करते शरीर में शिथिलता आने लगे।
- पूँजी: वह असल धन जो किसी के पास हो या लाभ आदि के लिए व्यापार में लगाया जाए।
- भौतिक पूँजी: उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर अपेक्षित कई तरह के आगत।
- स्थायी पूँजी: औजारों, मशीनों और भवनों का उत्पादन में कई वर्षों तक प्रयोग होता है और इन्हें स्थायी पूँजी कहते हैं।
- कार्यशील पूँजी: कच्चा माल तथा नकद पैसों को कार्यशील पूँजी कहते हैं।
- मानव पूँजी: कौशल और उनमें निहित उत्पादन के ज्ञान का भण्डार है।
- कृषि: भूमि पर फसलें उगाने की कला।
- भूमि की उर्वरता: भूमि की वह योग्यता जो पौधे उगाने या पौधे के जीवन के लिए जरूरी है।