Chapter 2 संविधान निर्माण Revision Notes Class 9 राजनीति विज्ञान
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Chapter 2 संविधान निर्माण Notes Class 9 Loktantrik Rajniti
Topics in the Chapter
- दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान
- संविधान की जरूरत
- भारतीय संविधान का निर्माण
- संविधान सभा
- भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य
दक्षिण अफ्रीका में लोकतांत्रिक संविधान
संविधान: कुछ बुनियादी मूल्य हैं जिनका पालन नागरिकों और सरकार दोनों को करना होता है, ऐसे सभी नियमों का सम्मिलित रूप संविधान कहलाता है। देश का सर्वोच्च कानून होने की हैसियत से संविधान नागरिकों के अधिकार, सरकार की शक्ति और उसके कामकाज के तौर-तरीकों का निर्धारण करता है।
दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष
रंगभेद नस्ली भेदभाव पर आधारित उस व्यवस्था का नाम है जो दक्षिण अफ्रीका में विशिष्ट तौर पर चलाई गई। दक्षिण अफ्रीका पर यह व्यवस्था यूरोप के गोरे लोगों ने लादी थी। रंगभेद की राजनीति ने लोगों को उनकी चमड़ी के रंग के आधार पर बाँट दिया । गोरे शासक, गोरों के अलावा शेष सबको छोटा और नीचा मानते थे।
रंगभेद की शासकीय नीति अश्वेतों के लिए खासतौर से दमनकारी थी ।
- अश्वेतों को वोट डालने का अधिकार नहीं था।
- उन्हें गोरों की बस्तियों में रहने-बसने की इजाजत नहीं थी।
- परमिट होने पर ही वे वहाँ जाकर काम कर सकते थे।
- रेलगाड़ी, बस, टैक्सी, होटल, अस्पताल, स्कूल औ र कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमाघर, नाट्यगृह, समुद्रतट, तरणताल औ सार्वजनिक शौचालयों तक में गोरों और कालों के लिए एकदम अलग-अलग इंतजाम थे। इसे पृथक्करण कहते है
- काले लोग गोरों के लिए आरक्षित जगह तो क्या उनके गिरजाघर तक में भी नहीं जा सकते थे।
- अश्वेतों को संगठन बनाने और इस भेदभावपूर्ण व्यवहार का विरोध करने का भी अधिकार नहीं था ।
भेदभाव वाली इस शासन प्रणाली का विरोध करने वाले संगठन अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के झण्डे तले एकजुट हुए। इनमें कई मजदूर संगठन और कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी। अनेक समझदार और संवेदनशील गोरे लोग भी रंगभेद समाप्त करने केआन्दोलन में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के साथ आए और उन्होंने इस संघर्ष में प्रमुख भूमिका निभाई।
एक नये संविधान की ओर
आखिरकार, 26 अप्रैल 1994 की मध्य रात्रि को दक्षिण अफ्रीका गणराज्य का नया झण्डा लहराया गया और यह दुनिया का एक नया लोकतांत्रिक देश बन गया । रंगभेद वाली शासन व्यवस्था समाप्त हुई और सभी नस्ल के लोगों की मिली-जुली सरकार के गठन का रास्ता खुला ।
दो वर्षों की चर्चा और बहस के बाद उन्होंने जो संविधान बनाया वैसा अच्छा संविधान दुनिया में कभी नहीं बना था।
दक्षिण अफ्रीका के संविधान की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार है:
- इस संविधान में नागरिकों को जितने व्यापक अधिकार दिये हैं उतने दुनिया के किसी संविधान में नहीं दिए गए हैं।
- साथ ही उन्होंने यह फैसला भी किया कि मुश्किल मामलों के समाधान की कोशिशों में किसी को भी अलग नहीं किया जाएगा और न किसी को बुरा या दुष्ट मानकर बर्ताव किया जाएगा।
- इस बात पर भी सहमति बनी कि पहले जिसने चाहे जो कुछ किया हो लेकिन अब से हर समस्या के समाधान में सबकी भागीदारी होगी।
संविधान की जरूरत
संविधान लिखित नियमों की ऐसी किताब है जिसे किसी देश में रहने वाले सभी लोग सामूहिक रूप से मानते है । संविधान सर्वोच्च कानून है जिससे किसी क्षेत्र में रहने वाले लोगों (जिन्हें नागरिक कहा जाता है) के बीच के आपसी सम्बन्ध तय होने के साथ-साथ लोगों और सरकार के बीच के सम्बन्ध भी तय होते है ।
संविधान अनेक काम करता है जिनमें ये प्रमुख है :
- यह साथ रह रहे विभिन्न तरह के लोगों के बीच जरूरी भरोसा और सहयोग विकसित करता है।
- यह स्पष्ट करता है कि सरकार का गठन कैसे होगा और किसे फैसले लेने का अधिकार होगा ।
- यह सरकार के अधिकारों की सीमा तय करता है और हमें बताता है कि नागरिकों के क्या अधिकार है।
- यह अच्छे समाज के गठन के लिए लोगों की आकांक्षाओं को व्यक्त करता है।
- जिन देशों में संविधान है वे सभी लोकतांत्रिक शासन वाले हों यह जरूरी नहीं है लेकिन जिन देशों में लोकतांत्रिक शासन है वहाँ संविधान का होना जरूरी है।
भारतीय संविधान का निर्माण
संविधान निर्माण का रास्ता
- 1928 में ही मोतीलाल नेहरू और कांग्रेस के आठ अन्य नेताओं ने भारत का एक संविधान लिखा था।
- 1931 में कराची में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में एक प्रस्ताव में यह रूपरेखा रखी गई थी कि आजाद भारत का संविधान कैसा होगा। इन दोनों ही दस्तावेजों में स्वतंत्र भारत के संविधान में सार्वभौम वयस्क मताधिकार, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा की बात कही गई थी ।
- हमारे नेताओं में इतना आत्मविश्वास आ गया था कि उन्हें बाहर के विचार और अनुभवों को अपनी जरूरत के अनुसार अपनाने में कोई हिचक नहीं हुई। हमारे अनेक नेता फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों, ब्रिटेन के संसदीय लोकतंत्र के कामकाज और अमेरिका के अधिकारों की सूची से काफी प्रभावित थे।
- रूस में हुई समाजवादी क्रांति ने भी अनेक भारतीयों को प्रभावित किया और सामाजिक और आर्थिक समता पर आधारित व्यवस्था बनाने की कल्पना करने लगे थे।
- लेकिन वे दूसरों की सिर्फ नकल नहीं कर रहे थे। हर कदम पर वे यह सवाल जरूर पूछते थे कि क्या ये चीजें भारत के लिए उपयुक्त होंगी। इन सभी चीजों ने हमारे संविधान के निर्माण में मदद की ।
संविधान सभा
चुने गए जनप्रतिनिधियों की जो सभा संविधान नामक विशाल दस्तावेज को लिखने का काम करती है उसे संविधान सभा कहते है।
भारतीय संविधान सभा के लिए जुलाई 1946 में चुनाव हुए थे । संविधान सभा की पहली बैठक दिसम्ब 1946 में हुयी। इसने 26 नवम्बर 1949 को अपना काम पूरा कर लिया लेकिन संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसी दिन की याद में हम हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते है।
इस सभा द्वारा 65 साल से भी पहले बनाए संविधान को स्वीकार किया है क्योंकि:
- संविधान सिर्फ संविधान सभा के सदस्यों के विचारों को ही व्यक्त नहीं करता है। । यह अपने समय की व्यापक सहमतियों को व्यक्त करता है।
- संविधान को मानने का दूसरा कारण यह है कि संविधान सभा भी भारत के लोगों का ही प्रतिनिधित्व कर रही थी । उस समय सार्वभौम मताधिकार नहीं था । इसलिए संविधान सभा का चुनाव देश के लोग प्रत्यक्ष ढंग से नहीं कर सकते थे। इसका चुनाव मुख्य रूप से प्रान्तीय असेम्बलियों के सदस्यों ने ही किया था ।
- अन्ततः जिस तरह संविधान सभा ने काम किया, वह संविधान को एक तरह की पवित्रता और वैधता देता है।संविधान सभा का काम काफी व्यवस्थित, खुला और सर्वसम्मति बनाने के प्रयास पर आधारित था।
इस सभा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों का प्रभुत्व था जिसने राष्ट्रीय आन्दोलन की अगुवाई की थी। महात्मा गांधी संविधान सभा के सदस्य नहीं थे ।
भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्य
संविधान का दर्शन
- जिन मूल्यों ने स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा दी और उसे दिशा-निर्देश दिए तथा जो इस क्रम में जाँच परख लिये गये वे ही लोकतंत्र का आधार बने । भारतीय संविधान की प्रस्तावना में इन्हें शामिल किया गया।
- संविधान की शुरूआत बुनियादी मूल्यों की एक छोटी-सी उद्देशिका के साथ होती है । इसे संविधान की उद्देशिका कहते हैं।
- मेरिकी संविधान की प्रस्तावना से प्रेरणा लेकर समकालीन दुनिया के अधिकांश देश अपने संविधान की शुरूआत एक प्रस्तावना के साथ करते है ।
संस्थाओं का स्वरूप
- संविधान सिर्फ मूल्यों और दर्शन का बयान भर नहीं है। । संविधान इन मूल्यों को संस्थागत रूप देने की कोशिश है।
- यह एक बहुत ही लम्बा और विस्तृत दस्तावेज है। इसलिए समय-समय पर इसे नया रूप देने के लिए इसमें बदलाव की जरूरत पड़ती है ।
- भारतीय संविधान निर्माताओं को लगा कि इसे लोगों की भावनाओं के अनुरूप बदलना चाहिए। इसलिए उन्होंने बदलावों को समय-समय पर शामिल करने का प्रावधान रखा । इन बदलावों को संविधान संशोधन कहते है ।
महत्वपूर्ण शब्द:
- अफ्रीकन राष्ट्रीय कांग्रेस: पार्टी जिसने पृथक्करण नीति के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष किया।
- देशद्रोह: अपने राष्ट्र के खिलाफ किये जाने वाला विश्वासघात।
- संविधान: कानून के रूप में बने हुए मौलिक नियम और सिद्धान्त ।
- रंगभेद: विधान बनाकर काले और गोरों को अलग निवास करने की प्रणाली को रंगभेद कहते है ।
- अनुच्छेद: नियमावली का कोई एक विशिष्ट अंग, जिसमें किसी एक विषय का विवेचन होता है
- आमुख / प्रस्तावना: किसी पुस्तक आदि के आरम्भ का वह वक्तव्य जिससे उसकी ज्ञातव्य बातों का पता चले।
- मसौदा / प्रारूप: लेख का वह पूर्व रूप जिसमें सुधार किया जाना हो ।