Chapter 3 निर्धनता: एक चुनौती Revision Notes Class 9 अर्थशास्त्र
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Chapter 3 निर्धनता: एक चुनौती Notes Class 9 Arthashastra
Topics in the Chapter
- निर्धनता- परिचय, सूचक और आकलन
- गरीबी रेखा और असुरक्षित समूह (संकेतक)
- अन्तर्राज्यीय असमानताएँ और वैश्विक निर्धनता परिदृश्य
- वैश्विक परिदृश्य
- निर्धनता के कारण, निर्धनता -निरोधी उपाय और भावी चुनौतियाँ
निर्धनता- परिचय, सूचक और आकलन
निर्धनता का अर्थ भुखमरी और आश्रय का न होना है । निर्धनता का अर्थ साफ़ जल और सफाई सुविधाओं का अभाव भी है। इसका अर्थ नियमित रोजगार की कमी भी है तथा न्यूनतम शालीनता स्तर का अभाव भी है। अंतत: निर्धनता अर्थ है असहायता की भावना के साथ जीना।
- शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के अभाव को गरीबी कहते हैं। यह एक ऐसी स्थिति भी है जब माता-पिता अपने बच्चों को विद्यालय नहीं भेज पाते या कोई बीमार आदमी इलाज नहीं करवा पाता।
- सामाजिक वैज्ञानिक इसे अनेक सूचकों के माध्यम से देखते हैं। सामान्यतया प्रयोग किए जाने वाले सूचक वे हैं जो आय और उपभोग के स्तर से सम्बन्धित है ।
- सामाजिक अपवर्जन की अवधारण के अनुसार निर्धनता को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि निर्धनों को बेहतर माहौल और अधिक अच्छे वातावरण में रहने वाले सम्पन्न लोगों की सामाजिक समता से अपवर्जित रह कर केवल निकृष्ट वातावरण में दूसरे निर्धनों के साथ रहना पड़ता है। सामान्य अर्थ में सामाजिक अपवर्जन निर्धनता का एक कारण और परिणाम दोनों हो सकता है।
- निर्धनता के प्रति असुरक्षा एक माप है जो कुछ विशेष समुदायों (जैसे किसी पिछड़ी जाति के सदस्य) या व्यक्तियों (जैसे कोई विधवा या शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्ति) के भावी वर्षों में निर्धन होने या निर्धन बने रहने की अधिक सम्भावना जताता है।
- असुरक्षा का निर्धारण परिसम्पत्तियों, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के अवसरों के रूप में जीविका खोजने के लिए विभिन्न समुदायों के पास उपलब्ध विकल्पों से होता है।
- वास्तव में, जब सभी लोगों के लिए बुरा समय आता है, चाहे कोई बाढ़ हो या भूकम्प या फिर नौकरियों की उपलब्धता में कमी, दूसरे लोगों की तुलना में अधिक प्रभावित होने की बड़ी सम्भावना का निरूपण ही असुरक्षा है।
गरीबी रेखा और असुरक्षित समूह (संकेतक)
निर्धनता पर चर्चा के केन्द्र में सामान्यतया 'निर्धनता रेखा' की अवधारणा होती है। निर्धनता के आकलन की एक सर्वमान्य सामान्य विधि आय अथवा उपभोग स्तरों पर आधारित है। किसी व्यक्ति को निर्धन माना जाता है यदि उसकी आय या उपभोग स्तर किसी ऐसे 'न्यूनतम स्तर' से नीचे गिर जाए जो मूल आवश्यकताओं के एक दिए हुए समूह को पूर्ण करने के लिए आवश्यक है।
- मूल आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए आवश्यक वस्तुएँ विभिन्न कालों एवं विभिन्न देशों में भिन्न है। अत: काल एवं स्थान के अनुसार निर्धनता रेखा भिन्न हो सकती है।
- प्रत्येक देश एक काल्पनिक निर्धनता रेखा का प्रयोग करता है, जिसे विकास एवं उसके स्वीकृत न्यूनतम सामाजिक मानदण्डों के वर्तमान स्तर के अनुरूप माना जाता है।
- भारत में निर्धनता रेखा का निर्धारण करते समय जीवन निर्वाह के लिए खाद्य आवश्यकता, कपड़ों, जूतों, ईंधन और प्रकाश, शैक्षिक एवं चिकित्सा सम्बन्धी आवश्कताओं आदि पर विचार किया जाता है। इन भौतिक मात्राओं को रुपयों में उनकी कीमतों से गुणा कर दिया जाता है।
- निर्धनता रेखा का आकलन करते समय खाद्य आवश्यकता के लिए वर्तमान सूत्र वांछित कैलोरी आवश्यकताओं पर आधारित है। खाद्य वस्तुएँ जैसे- अनाज, दालें, सब्जियाँ, दूध, तेल, चीनी आदि मिलकर इस आवश्यक कैलोरी की पूर्ति करती है।
- आयु, लिंग, काम करने की प्रकृति आदि के आधार पर कैलोरी आवश्यकताएँ बदलती रहती हैं। भारत में स्वीकृत कैलोरी आवश्यकता ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कै लोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन एवं नगरीय क्षेत्रों 2000 कैलोरी प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन है।
- कम कै लोरी की आवश्यकता के बावजूद शहरी क्षेत्रों के लिए उच्च राशि निश्चित की गई, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में अनेक आवश्यक वस्तुओं की कीमतें अधिक होती है । भारत में निर्धनता रेखा का आकलन सामान्यतः प्रत्येक पाँच वर्ष बाद राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (एन. एस. एस. ओ.) द्वारा कराया जाता है |
अन्तर्राज्यीय असमानताएँ और वैश्विक निर्धनता परिदृश्य
भारत में प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एक समान नहीं है। निर्धनता कम करने में सफलता की दर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है।
- कुछ राज्य जैसे मध्य प्रदेश, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार एवं ओडिशा में निर्धनता अनुपात राष्ट्रीय अनुपात से ज्यादा है। बिहार और ओडिशा क्रमश: 33.7 और 32.6 प्रतिशत निर्धनता औसत के साथ सर्वाधिक राज्य बने हुए है।
- इसकी तुलना में केरल, जम्मू-कश्मीर, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात और पश्चिम बंगाल में निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आयी है। पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य उच्च कृषि वृद्धि दर से निर्धनता कम करने में पारम्परिक रूप से सफल रहे हैं। केरल ने मानव संसाधन पर अधिक ध्यान दिया है।
पश्चिम बंगाल में भूमि सुधार उपायों से निर्धनता कम करने में सहायता मिली है। आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अनाज का सार्वजनिक वितरण इसमें सुधार का कारण हो सकता है।
वैश्विक परिदृश्य
- विश्व बैंक की परिभाषा के अनुसार प्रतिदिन $1.9 से कम पर जीवन निर्वाह करने वालों को गरीब कहा जाता है। विकासशील देशों में अत्यन्त आर्थिक निर्धनता में रहने वाले लोगों का अनुपात 1990 के 36 प्रतिशत से घटकर 2015 में 10 प्रतिशत हो गया है।
- वैश्विक निर्धनता में उल्लेखनीय गिरावट आयी है, लेकिन इसमें बहुत क्षेत्रीय भिन्नताएँ पायी जाती हैं। तीव्र आर्थिक प्रगति और मानव संसाधन विकास में वृहत निवेश के कारण चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में निर्धनता में विशेष कमी आई है।
- सब-सहारा अफ्रीका में निर्धनता वास्तव में 2005 के 51 प्रतिशत से घटकर 2015 में 41 प्रतिशत हो गई है। रूस जैसे पूर्व समाजवादी देशों में भी निर्धनता पुनः व्याप्त हो गई है जहाँ पहले आधिकारिक रूप से कोई निर्धनता थी ही नहीं।
- अन्तर्राष्ट्रीय निर्धनता रेखा (अर्थात् 1.9 डॉलर प्रतिदिन से नीचे की जनसंख्या) की परिभाषा के अनुसार विभिन्न देशों में निर्धनता के नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात दर्शाती है | संयुक्त राष्ट्र के नये सतत् विकास के लक्ष्य को 2030 तक सभी प्रकार की गरीबी खत्म करने का प्रस्ताव है।
निर्धनता के कारण, निर्धनता -निरोधी उपाय और भावी चुनौतियाँ
भारत में व्यापक निर्धनता का मुख्य कारण ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन के दौरान आर्थिक विकास का निम्न स्तर, जनसंख्या विस्फोट, रोजगार के अवसरों की कमी, अनियमित और कम आय वाले रोजगार, भूमि औ र अन्य संसाधनों का असमान वितरण और ऋणग्रस्तता है।
भारत सरकार की वर्तमान निर्धनता निरोधी रणनीति मोटे तौर पर दो कारकों- आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहन और लक्षित निर्धनता निरोधी कार्यक्रमों पर निर्भर है।
- प्रधानमंत्री रोजगार योजना, ग्रामीण रोजगार गारण्टी कार्यक्रम और स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना जैसे कई कार्यक्रम भारत सरकार ने देश में शुरू किये हैं जिनका ग्रामीण क्षेत्र में स्वरोजगार अवसर उत्पन्न करना मुख्य उद्देश्य है।
- प्रधानमंत्री रोजगार योजना एक अन्य योजना है, जिसे 1993 में आरम्भ किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। उन्हें लघु व्यवसाय और उद्योग स्थापित करने में सहायता दी जाती है।
- ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम का आरम्भ 1995 में किया गया। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में स्वरोजगार के अवसर सृजित करना है। स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना का आरम्भ 1999 में किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सहायता प्राप्त निर्धन परिवारों को स्वयं सहायता समूहों में संगठित कर बैंक ऋण और सरकारी सहायिकी के संयोजन द्वारा निर्धनता रेखा के ऊपर लाना है।
- महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम 2005 (मनरेगा) का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षित करने के लिए हर घर के लिए मजदूरी रोजगार कम से कम 100 दिनों के लिए उपलब्ध कराना है । इसका उद्देश्य सतत् विकास में मदद करना ताकि सूखा, वन कटाई एवं मिट्टी के कटाव जैसी समस्याओं से बचा जा सक। इस प्रावधान के तहत एक तिहाई रोजगार महिलाओं के लिए सुरक्षित किया गया है।
- कार्यक्रम के अन्तर्गत अगर आवेदक को 15 दिन के अन्दर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया गया तो वह दै निक बेरोजगार भत्ते का हकदार होगा।
- गरीब: जिसके पास धन न हो या धन की कमी हो ।
- गरीबी: गरीबी वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी सक्षम नहीं होता ।
- असुरक्षित समूह: जो लोग अपनी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं, वे असुरक्षित समूह कहलाते हैं।
- वैश्विक निर्धनता परिदृश्य: विकासशील देशों में अत्यन्त आर्थिक निर्धनता में रहने वाले लोगों का अनुपात।
- अन्तर्राज्यीय असमानताएँ: भारत के प्रत्येक राज्य में निर्धन लोगों का अनुपात एक समान नहीं है।