Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा Revision Notes Class 9 अर्थशास्त्र

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Chapter 4 भारत में खाद्य सुरक्षा Notes Class 9 Arthashastra

Topics in the Chapter

  • खाद्य सुरक्षा का परिचय
  • खाद्य असुरक्षित समूह और भारत में खाद्य सुरक्षा
  • खाद्य सुरक्षा में सहकारिता की भूमिका

खाद्य सुरक्षा का परिचय

खाद्य सुरक्षा का उद्देश्य है कि देश के सभी लोगों के लिए पर्याप्त खाद्य उपलब्ध हो। सभी लोगों के पास स्वीकार्य गुणवत्ता के खाद्य पदार्थ खरीदने की क्षमता हो और खाद्य की उपलब्धता में कोई बाधा न हो।

समाज का अधिक गरीब वर्ग तो हर समय खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकता है परन्तु जब देश भूकम्प, सूखा, बाढ़, सुनामी, फसलों के खराब होने से पैदा हुए अकाल आदि राष्ट्रीय आपदाओं से गुजर रहा हो, तो निर्धनता रेखा से ऊपर के लोग भी खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त हो सकते हैं।

किसी प्राकृतिक आपदा जैसे सूखे के कारण खाद्यान्न की कुल उपज में गिरावट आती है। इससे प्रभावित क्षेत्रों में खाद्य की कमी हो जाती है। खाद्य की कमी के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं। कुछ लोग ऊँची कीमतों पर खाद्य पदार्थ नहीं खरीद सकते।

अगर यह आपदा अधिक विस्तृत क्षेत्र में आती है या अधिक लम्बे समय तक बनी रहती है, तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है। व्यापक भुखमरी से अकाल की स्थिति बन सकती है।

  • अकाल के दौरान बड़ पैमाने पर मौतें होती हैं जो भुखमरी तथा विवश होकर दूषित जल या सड़े भोजन के प्रयोग से फैले महामारियों तथा भुखमरी से उत्पन्न कमजोरी से रोगों के प्रति शरीर की प्रतिरोधी क्षमता में गिरावट के कारण होती है। भारत में जो सबसे भयानक अकाल पड़ा था, वह 1943 का बंगाल का अकाल था। इस अकाल में भारत के बंगाल प्रान्त में 30 लाख लोग मारे गये थे।
  • भारत में उड़ीसा के कालाहांडी और काशीपुर जैसे स्थान है। जहाँ अकाल जैसी दशाएँ कई वर्षों से बनी हुई है। हाल के कुछ राजस्थान के बारन जिले, झारखण्ड के पालामू जिले तथा अन्य सुदूरवर्ती क्षेत्रों में भूख के कारण लोगों की मृत्यु की सूचना मिली है।

खाद्य असुरक्षित समूह और भारत में खाद्य सुरक्षा

भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से असुरक्षित है, परन्तु इससे सर्वाधिक प्रभावित वर्गों में आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों के अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लोग हैं जो भूमिहीन हैं। प्राकृतिक आपदाओं; जैसे- सूखा और बाढ़ ग्रस्त में खाद्य असुरक्षा का प्रतिशत अधिक है।

शहरी क्षेत्रों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित वे परिवार हैं जिनके कामकाजी सदस्य प्रायः कम वेतन वाले व्यवसायों और अनियत श्रम-बाजारों में काम करते हैं। ये कामगार अधिकतर मौसमी कार्यों में लगे हैं और उनको इतनी कम मजदूरी दी जाती है कि मात्र जीवित रह सकते हैं।

देश के (कुछ क्षेत्रों; जैसे- आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य जहाँ गरीबी अधिक है, आदिवासी और सुदूर क्षेत्र, प्राकृतिक आपदाओं से बार-बार प्रभावित होने वाले क्षेत्र आदि में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित लोगों की संख्या आनुपतिक रूप से बहुत अधिक है।

भुखमरी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा को इंगित करने वाला एक दूसरा पहलू है। भुखमरी गरीबी की एक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, यह गरीबी लाती है। । इस तरह खाद्य की दृष्टि से सुरक्षित होने से वर्तमान में भुखमरी समाप्त हो जाती है और भविष्य में भुखमरी का खतरा कम हो जाता है।

भुखमरी के दीर्घकालिक और मौसमी आयाम होते हैं।

  1. दीर्घकालिक भुखमरी मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यन्त निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
  2. मौसमी भुखमरी फसल उपजाने और काटने के चक्र से सम्बद्ध है। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है। इस तरह की भुखमरी तब होती है, जब कोई व्यक्ति पूरे वर्ष काम पाने मे अक्षम रहता है।

हरित क्रांति के कारण भारत खाद्यान्नों के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है और बहुत बड़ी जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध हो गयी है । देशभर में आधुनिक कृषि और हरित क्रांति से खाद्यान्न में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है।

भारतीय खाद्य निगम अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है जिसे बफर स्टॉक के रूप में अपने पास रखता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती है जिसे न्यूनतम समर्थित कीमत कहा जाता है। बफर स्टॉक कमी वाले क्षेत्रों में और समाज के गरीब तबकों के लिए बाजार कीमत से कम कीमत पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है।


खाद्य सुरक्षा में सहकारिता की भूमिका

भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में सहकारी समितियाँ भी खाद्य सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। तमिलनाडु में करीब 94 प्रतिशत राशन की दुकानें सहकारी समितियों के माध्यम से चलाई जा रही है ।

  • दिल्ली में मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है।
  • गुजरात में दूध तथा दुग्ध उत्पादों में अमूल एक और सफल सहकारी समिति का उदाहरण है। इसने देश में श्वेत क्रांति ला दी है।
  • इसी तरह, महाराष्ट्र में एकेडमी ऑफ डेवलपमेण्ट साइंस (ए. डी. एस.) ने विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क में सहायता की है। ए. डी. एस. गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है।


महत्वपूर्ण शब्द

  • खाद्य सुरक्षा: इसका अर्थ लोगों के लिए सदै व भोजन की उपलब्धता, पहुँच औ र उसे प्राप्त करने की सामर्थ्य से है।
  • दीर्घकालीन भुखमरी: यह मात्रा एवं गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है।
  • बफर स्टॉक: यह स्टॉक भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भण्डार है।
  • खाद्य असुरक्षित लोग: ये भूमिहीन, पारम्परिक दस्तकार, पारम्परिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग, छोटे-मोटे काम करने वाले लोग, निराश्रित तथा भिखारी है।
  • मौसमी भुखमरी: यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौ समी प्रकृति तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है।
  • न्यूनतम समर्थित कीमत: यह किसानों को उनकी फसल के लिए सरकार द्वारा पहले से घोषित कीमत होती है।
  • सहायिकी (सब्सिडी): यह वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली: भारतीय खाद्य से समाज के गरीब वर्गों में वितरित करती है निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार जब विनियमित राशन दुकानों के माध्यम उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते है ।
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