Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 14 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन विज्ञान 

Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 14 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन विज्ञान


इस अध्याय में विषय
  • प्राकृतिक संसाधन के प्रकार
  • पर्यावरण को बचाने के लिए पाँच प्रकार के R
  • संपोषित विकास
  • वन एवं वन्य जीवन संरक्षण
  • दावेदार (वनों पर उनकी निर्भरता )
  • सभी के लिए जल
  • बांधों के लाभ
  • बांधों से हानियाँ
  • जल संग्रहण
  • कोयला और पेट्रोलियम
  • जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से होने वाली हानियाँ

Ch 14 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन Class 10 विज्ञान Notes

प्राकृतिक संसाधन – वे संसाधन जो हमें प्रकृति ने दिए हैं और जीवों के द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं। जैसे मिट्टी, वायु, जल, कोयला, पेट्रोलियम, वन्य जीवन, वन ।


प्राकृतिक संसाधन के प्रकार

  1. समाप्य संसाधन: ये बहुत सीमित मात्रा में पाए जाते हैं और समाप्त हो सकते हैं। उदाहरण - कोयला, पेट्रोलियम।
  2. असमाप्य संसाधन: ये असीमित मात्रा में पाए जाते हैं व समाप्त नहीं होंगे। उदाहरण - वायु।

प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन

प्राकृतिक संसाधनों को बचाए रखने के लिए इनके प्रबंधन की आवश्यकता होती है ताकि यह अगली कई पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सके और संसाधनों का शोषण न हो।

पर्यावरण को बचाने के लिए राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय अधिनियम हैं ।

गंगा कार्य परियोजना यह कार्ययोजना करोड़ों रूपयों का एक प्रोजेक्ट है। इसे सन् 1985 में गंगा स्तर सुधारने के लिए बनाया गया।

जल की गुणवत्ता या प्रदूषण मापन हेतु कुछ कारक हैं-

  1. जल का pH जो आसानी से सार्व सूचक की मदद से मापा जा सकता है।
  2. जल में कोलिफार्म जीवाणु (जो मानव की आंत्र में पाया जाता है) की उपस्थिति जल का संदूषित होना दिखाता है।


पर्यावरण को बचाने के लिए पाँच प्रकार के R

इनकार

कम उपयोग

पुनः उपयोग

पुन: प्रयोजन

पुनः चक्रण

उपयोग न आने वाली वस्तुओं को ना कहना

वस्तुओं का कम उपयोग करना

फेंकने के बदले वस्तु का पुनः उपयोग करना

वस्तु को पुनः किसी अन्य कार्य के लिए उपयोग करना

पुनः चक्रित हो जाने वाली वस्तुओं को अलग करना

उदाहरण:-

सामान खरीदते समय प्लास्टिक थैली को मना करना व अपने स्वयं के थैले में सामान डालो।

उदाहरण:-

क) आवश्यकता न होन पर पंखे व बल्ब का स्विच बंद करना।

ख) टपकते नल को ठीक करना।

ग) भोजन को न फेंकना।

उदाहरण:-

क) जिस पानी से फल व सब्जी धोए है उसे पौधों में डाल देना।

ख) कपड़े धोने के बाद बचे पानी से फर्श व गाड़ी साफ करना।

उदाहरण:-

टूटे हुए चीनी मिट्टी के बर्तनों में पौधे उगाना।

उदाहरण:-

प्लास्टिक, काँच, धातु आदि को कबाड़ी वाले को दें।

पुनः इस्तेमाल/उपयोग, पुनः चक्रण से बेहतर है क्योंकि इसमें ऊर्जा की बचत होती है।


हमें संसाधनों के प्रबंधन की आवश्यकता है क्योंकि—

  1. ये बहुत ही सीमित हैं ।
  2. स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के कारण जनसंख्या में वृद्धि हो रही है और इसके कारण सभी संसाधनों की मांग में भी वृद्धि हो रही है।


संपोषित विकास

संपोषित विकास की संकल्पना मनुष्य की वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति और विकास के साथ-साथ भावी संतति के लिए संसाधनों का संरक्षण भी करती है।

प्राकृतिक संसाधनों की व्यवस्था करते समय ध्यान देना होगा—

  1. दीर्घकालिक दृष्टिकोण – ये प्राकृतिक संसाधन भावी पीढ़ियों तक उपलब्ध हो सके।
  2. इनका वितरण सभी समूहों में समान रूप से हो, न कि कुछ प्रभावशाली लोगों को ही इसका लाभ हो।
  3. अपशिष्टों के सुरक्षित निपटान का भी प्रबन्ध होना चाहिए ।


वन एवं वन्य जीवन संरक्षण

वन, जैव विविधता के तप्त स्थल हैं । जैव विविधता को संरक्षित रखना प्राकृतिक संरक्षण के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है क्योंकि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व (ecological balance) नष्ट हो सकता है।

जैव विविधता — जैव विविधता किसी एक क्षेत्र में पाई जाने वाली विविध स्पीशीज की संख्या है जैसे पुष्पी पादप, पक्षी, कीट, सरीसृप, जीवाणु आदि ।

तप्त स्थल — ऐसा क्षेत्र जहाँ अनेक प्रकार की संपदा पाई जाती है ।

दावेदार — ऐसे लोग जिनका जीवन, कार्य किसी चीज पर निर्भर हो, वे उसके दावेदार होते हैं।


दावेदार (वनों पर उनकी निर्भरता )

  1. स्थानीय लोग: अपनी आवश्यकता के लिए वनों पर आश्रित।
  2. सरकारी वन विभाग: सरकार जिसके पास वनों का स्वामित्व हैं तथा वनों को नियंत्रित करते हैं।
  3. उद्योगपति: जो वनों से प्राप्त उत्पादों का उपयोग करते हैं।
  4. वन्य जीवन व प्रकृति प्रेमी: जो प्रकृति को बचाना चाहते हैं।

कुछ ऐसे उदाहरण जहाँ निवासियों ने वन संरक्षण में मुख्य भूमिका निभाई है।

(1) खेजरी वृक्ष — अमृता देवी विश्नोई ने 1731 में राजस्थान के जोधपुर के एक गाँव में खेजरी वृक्षों को बचाने के लिए 363 लोगों के साथ अपने आप को बलिदान कर दिया था।

भारत सरकार ने जीव संरक्षण के लिए अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की जो उनकी स्मृति में दिया जाता है।

(2) चिपको आंदोलन – यह आंदोलन गढ़वाल के 'रेनी' नाम के गाँव में हुआ था । वहाँ की महिलाएँ उसी समय वन पहुँच गईं जब ठेकेदार के आदमी वृक्ष काटने लगे थे। महिलाएँ पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गईं और ठेकेदार के आदमियों को वृक्ष काटने से रोक लिया। यह आंदोलन तीव्रता से बहुत से समुदायों में फैल गया और सरकार को वन संसाधनों के उपयोग के लिए प्राथमिकता निश्चित करने पर पुन: विचार करने पर मजबूर कर दिया।

(3) पश्चिम बंगाल के वन विभाग ने क्षयित हुए साल के वृक्षों को अराबाड़ी वन क्षेत्र में नया जीवन दिया।


सभी के लिए जल

  • जल पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों की मूलभूत आवश्यकता है।
  • वर्षा हमारे लिए जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
  • भारत के कई क्षेत्रों में बाँध, तालाब और नहरें सिंचाई के लिए उपयोग किए जाते हैं।


बांध

बांध में जल संग्रहण काफी मात्रा में किया जाता है जिसका उपयोग सिंचाई में ही नहीं बल्कि विद्युत उत्पादन में भी किया जाता है।

कई बड़ी नदियों के जल प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए बांध बनाए गए हैं; जैसे:

  1. टिहरी बांध नदी भगीरथी (गंगा)
  2. सरदार सरोवर बांध — नर्मदा नदी
  3. भाखड़ा नांगल बांध— सतलुज नदी ।

बांधों के लाभ

  1. सिंचाई के लिए पर्याप्त जल सुनिश्चित करना ।
  2. विद्युत उत्पादन
  3. क्षेत्रों में जल का लगातार वितरण करना।

बांधों से हानियाँ

सामाजिक समस्याएँ :

  1. बड़ी संख्या में किसान एवं आदिवासी विस्थापित होते हैं ।
  2. उन्हें मुआवजा भी नहीं मिलता।

पर्यावरण समस्याएँ :

  1. वनों का क्षय होता है।
  2. जैव विविधता को हानि होती है।
  3. पर्यावरण संतुलन बिगड़ता है।

आर्थिक समस्याएँ:

  1. जनता का अत्यधिक धन लगता है ।
  2. उस अनुपात में लाभ नहीं होता।


जल संग्रहण

इसका मुख्य है भूमि एवं जल के प्राथमिक स्रोतों विकास करना ।

  • वर्षा जल संचयन – वर्षा जल संचयन से वर्षा जल को भूमि के अंदर भौम जल के रूप में संरक्षित किया जाता है।
  • जल संग्रहण भारत में बहुत प्राचीन संकल्पना है।
कुछ पुराने जल संग्रहण के तरीके हैं—

तकनीक

राज्य

खादिन, बड़े पात्र, नाड़ी

राजस्थान

बंधारस एवं ताल

महाराष्ट्र

बंथिस

मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश

आहार, पाइन

बिहार

एरिस

तमिलनाडु

कुल्ह

हिमाचल प्रदेश

बावड़ी

दिल्ली


भौम जल के रूप में संरक्षण के लाभ:

  1. पानी का वाष्पीकरण नहीं होता ।
  2. यह कुओं को भरता है ।
  3. पौधों को नमी पहुँचाता है।
  4. मच्छरों के जनन की समस्या नहीं होती ।
  5. यह जंतुओं के अपशिष्ट के संदूषण से सुरक्षित रहता है।


कोयला और पेट्रोलियम

कोयला और पेट्रोलियम अनविकरणीय प्राकृतिक संसाधन हैं। इन्हें जीवाश्म ईंधन भी कहते हैं ।

निर्माण

कोयला, 300 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी में वनस्पति अवशेषों के अपघटन से कोयले का निर्माण हुआ।

पेट्रोलियम —– पेट्रोलियम का निर्माण समुद्र में रहने वाले जीवों के मृत अवशेषों के अपघटन से हुआ। यह अपघटन उच्च दाब और उच्च ताप के कारण हुआ और पेट्रोलियम के निर्माण में लाखों वर्ष लगे ।

  • कोयला और पेट्रोल भविष्य में समाप्त हो जायेंगे।

(i) कोयला: वर्तमान दर से प्रयोग करने पर कोयला अगले 200 वर्ष तक ही उपलब्ध रह सकता है।

(ii) पेट्रोलियम: वर्तमान दर से प्रयोग करने पर पेट्रोलियम केवल अगले 40 वर्षों तक ही मिलेगा ।


जीवाश्म ईंधन के प्रयोग से होने वाली हानियाँ

  1. वायु प्रदूषण: कोयले और हाइड्रोकार्बन के दहन से बड़ी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्पन्न होती हैं जो वायु को प्रदूषित करती हैं।
  2. बीमारियाँ: यह प्रदूषित वायु कई प्रकार की श्वसन समस्याएँ उत्पन्न करती है और कई रोग; जैसे- दमा, खाँसी का कारण बनती हैं।
  3. वैश्विक ऊष्मण: जीवाश्म ईंधनों के दहन से CO, गैस उत्पन्न होती है जो ग्रीन हाउस गैस है और विश्व ऊष्मणता उत्पन्न करती है ।
जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग में मितव्ययता बरतनी चाहिए ।

  1. ये समाप्य और सीमित हैं।
  2. एक बार समाप्त होने के बाद ये निकट भविष्य में उपलब्ध नहीं हो पायेंगे क्योंकि इनके निर्माण की प्रक्रिया बहुत ही धीमी होती है और उसमें कई वर्ष लगते हैं।


जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को सीमित करने के उपाय-

  1. जिन विद्युत उपकरणों का उपयोग नहीं हो रहा हो उनका स्विच बंद करें।
  2. घरों में CFL का उपयोग करें जिस से बिजली की बचत हो।
  3. निजी वाहन की अपेक्षा सार्वजनिक यातायात का प्रयोग करना।
  4. लिफ्ट की अपेक्षा सीढ़ी का उपयोग करना।
  5. जहाँ हो सके सोलर कुकर का प्रयोग करना।

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