Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 10 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार विज्ञान 

Notes of Science in Hindi for Class 10 Chapter 9 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार विज्ञान


इस अध्याय में विषय
  • मानव नेत्र के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य
  • निकट-दृष्टि दोष उत्पन्न होने के कारण
  • दीर्घ-दृष्टि दोष दोष उत्पन्न होने के कारण
  • प्रिज्म
  • काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण
  • वायुमंडलीय अपवर्तन
  • प्रकाश का प्रकीर्णन
  • Rayleigh का नियम

Ch 10 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार Class 10 विज्ञान Notes

मानव नेत्र: यह एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है। यह हमें इस अद्भुत संसार तथा हमारे चारों ओर के रंगों को देखने योग्य बनाता है।

  • यह नेत्र गोलक में स्थित होते हैं।
  • नेत्र गोलक का व्यास लगभग 2-3 cm होता है।

मानव नेत्र के विभिन्न भाग एवं उनके कार्य

श्वेत मंडल/कॉर्निया — यह नेत्र के अग्र भाग पर एक पारदर्शी झिल्ली है। नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर होता है।

लेंस — यह एक उत्तल लेंस है जो प्रकाश को रेटिना पर अभिसरित करता है। यह एक रेशेदार जहेलीवत पदार्थ का बना होता है। लेंस केवल विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को रेटिना पर क्रेन्द्रित करने के लिए आवश्यक फोकस दूरी में सूक्ष्म समायोजन करता है।

परितारिका — कॉर्निया के पीछे एक गहरा पेशीय डायफ्राम होता है जो पुतली के आकार को नियंत्रित करता है।

पुतली (Pupil) — पुतली आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।

रेटीना — यह एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली है जिसमें प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं अधिक संख्या में पाई जाती हैं। प्रदीप्त होने पर प्रकाश-सुग्राही कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत सिग्नल पैदा करती हैं। ये सिग्नल दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिए जाते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है और हम वस्तुओं को देख पाते हैं।

दूर बिंदु (Far Point) — वह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर-बिंदु कहलाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता है।

निकट बिंदु (Near point) — वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे नेत्र का निकट बिंदू कहते हैं।

  • किसी सामान्य दृष्टि के कारण वयस्क के लिए निकट बिंदू आँख से लगभग 25cm की दूरी पर होता है।
  • इसे सुस्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी भी कहते हैं।

समंजन क्षमता — अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन कहलाती है, लेंस की वक्रता पक्ष्माभी पेशियों द्वारा निमांत्रित की जाती है।


दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन

मोतियाबिंद — अधिक उम्र के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं। इसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाती है।
मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा के बाद दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है।


निकट-दृष्टि दोष उत्पन्न होने के कारण

निकट-दृष्टि दोष — इस दोष में व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता।
ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर-बिंदू अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता है।

  1. अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना
  2. नेत्र गोलक का लंबा हो जाना ।

निवारण — इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है।


दीर्घ-दृष्टि दोष दोष उत्पन्न होने के कारण

दीर्घ-दृष्टि दोष — दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है परंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट-बिंदु सामान्य निकट बिंदु (25cm) से दूर हट जाता है।

  1. अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना ।
  2. नेत्र गोलक का छोटा हो जाना ।

निवारण — इस दोष को उपयुक्त क्षमता के उत्तल लेंस का इस्तेमाल करके संशोधित किया जा सकता है।

जरा दूरदृष्टिता — आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र में समंजन - क्षमता घट जाती है। अधिकांश व्यक्तियों का निकट-बिंदू दूर हट जाता है। इस दोष को जरा दूरदृष्टिता कहते हैं।

कारण — यह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे-धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता है।

निवारण —

  • उत्तल लेंस के प्रयोग से।
  • कभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट दृष्टि तथा दूर-दृष्टि दोष होते हैं ऐसे व्यक्तियों के लिए प्राय: द्विफोकसी लेंसों की आवश्यकता होती ऊपरी भाग अवतल लेंस और निचला भाग उत्तल लेंस होता है ।


दोनों नेत्रों का सिर पर सामने की ओर स्थित होने का लाभ

  • इससे हमें त्रिविमीय चाक्षुकी (three dimension vision) का लाभ मिलता है।
  • इससे हमारा दृष्टि-क्षेत्र विस्तृत हो जाता है।
  • इससे हम धुंधली चीजों को भी देख पाते हैं।


प्रिज्म

प्रिज्म से प्रकाश अपवर्तन — प्रिज्म के दो त्रिभुजाकार आधार तथा तीन आयताकार पार्श्व-पृष्ठ होते हैं।

प्रिज्म कोण — प्रिज्म के दो पार्श्व फलकों के बीच के कोण को प्रिज्म कोण कहते हैं।

विचलन कोण — आपतित किरण एवं निर्गत किरण के बीच के कोण को विचलन कोण कहते हैं।


काँच के प्रिज्म द्वारा श्वेत प्रकाश का विक्षेपण

सूर्य का श्वेत प्रकाश जब प्रिज्म से होकर गुजरता है तो प्रिज्म श्वेत प्रकाश को सात रंगों की पट्टी में विभक्त कर देता है। यह सात रंग है- बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी तथा लाल। प्रकाश के अवयवी वर्णों के इस बैंड को स्पेक्ट्रम (वर्णक्रम) कहते हैं। प्रकाश के अवयवी वर्णों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं ।

इंद्रधनुष — इंद्रधनुष वर्षा के पश्चात आकाश में जल के सूक्ष्म कणों में दिखाई देने वाला प्राकृतिक स्पेक्ट्रम है। यह वायुमंडल में उपस्थित जल की बूँदों द्वारा सूर्य के प्रकाश के परिक्षेपन के कारण प्राप्त होता है। इंद्रधनुष सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में बनता है।

जल की सूक्ष्म बूँदें छोटे प्रिज्मों की भाँति कार्य करती है। सूर्य के आपतित प्रकाश की ये बूँदें अपवर्तित तथा विक्षेपित करती हैं, तत्पश्चात इसे आंतरिक परावर्तित करती हैं, अंततः जल की बूँद से बाहर निकलते समय प्रकाश को पुनः अपवर्तित करती है। प्रकाश के परिक्षेपण तथा आंतरिक परावर्तन के कारण विभिन्न वर्ण प्रेक्षक के नेत्रों तक पहुँचते हैं।

  • VIBGYOR: आपको वर्णों के क्रम याद रखने में सहायता करेगा।
  • किसी प्रिज्म से गुजरने के पश्चात, प्रकाश के विभिन्न वर्ण, आपतित किरण के सापेक्ष अलग-अलग कोणों पर झुकते हैं।
  • लाल प्रकाश सबसे कम झुकता है जबकि बैंगनी प्रकाश सबसे अधिक झुकता है।

आइजक न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए काँच के प्रिज्म का उपयोग किया। एक दूसरा समान प्रिज्म उपयोग करके उन्होंने श्वेत प्रकाश के स्पेक्ट्रम के वर्णों को और अधिक विभक्त करने का प्रयत्न किया। किंतु उन्हें और अधिक वर्णों नहीं मिल पाए। फिर उन्होंने एक दूसरा सर्वसम प्रिज्म पहले प्रिज्म के सापेक्ष उल्टी स्थिति रखा। उन्होंने देखा कि दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश का किरण पुंज निर्गत हो रहा है। इससे न्यूटन ने यह निष्कर्ष निकाला कि सूर्य का प्रकाश सात वर्णों से मिलकर बना है।

  • अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्त — वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय से लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात् तक दिखाई देता रहता है।
  • तारों की आभासी स्थिति — पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात् पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता जाता है । वायुमंडलीय अपवर्तन उसी माध्यम में होता है जिसका क्रमिक परिवर्ती (gradually changing) अपवर्तनांक हो। क्योंकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर झुका रहता है अत: क्षितिज के निकट देखने पर कोई तारा अपनी वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होता है।

वायुमंडलीय अपवर्तन

वायुमंडलीय अस्थिरता के कारण प्रकाश का अपवर्तन वायुमंडलीय अपवर्तन कहलाता है।

वायुमंडलीय अपवर्तन के प्रभाव

  1. तारों का टिमटिमाना
  2. अग्रिम सूर्योदय तथा विलम्बित सूर्यास्
  3. तारों का वास्तविक स्थिति से कुछ ऊँचाई पर प्रतीत होना ।
  4. गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति का परिवर्तित होना ।


(i) आग के तुरंत ऊपर की वायु अपने ऊपर की वायु को तुलना में अधिक गरम हो जाती है। गरम वायु अपने ऊपर की ठंडी वायु की तुलना में कम सघन होती है तथा इसका अपवर्तनांक ठंडी वायु की अपेक्षा थोड़ा कम होता है। क्योंकि अपवर्तक माध्यम (वायु) की भौतिक अवस्थाएँ सिथर नहीं हैं। इसलिए गरम वायु में से होकर देखने पर वस्तु की आभासी स्थिति परिवर्तित होती रहती है।

(ii) तारों का टिमटिमाना — दूर स्थित तारा हमें प्रकाश के बिंदु स्रोत के समान प्रतीत होता है। चूँकि तारों से आने वाली प्रकाश किरणों का पथ थोड़ा-थोड़ा परिवर्तित होता रहता है, अतः तारे की आभासी स्थिति विचलित होती रहती है तथा आँखों में प्रवेश करने वाले तारों के प्रकाश की मात्रा झिलमिलाती रहती है। जिसके कारण कोई तारा कभी चमकीला प्रतीत होता है तो कभी धुँधला, जो कि टिमटिमाहट का प्रभाव है।


प्रकाश का प्रकीर्णन

टिंडल प्रभाव — जब कोई प्रकाश किरण का पुंज वायुमण्डल के महीन कणों जैसे धुआँ, जल की सूक्ष्म बूंदें, धूल के निलंबित कण तथा वायु के अणु से टकराता है तो उस किरण पुंज का मार्ग दिखाई देने लगता है। कोलाइडी कणों के द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन की परिघटना टिंडल प्रभाव उत्पन्न करती है।

उदाहरण:

  1. जब धुएँ से भरे किसी कमरे में किसी सूक्ष्म छिद्र से कोई पतला प्रकाश किरण पुंज प्रवेश करता है तो हम टिंडल प्रभाव देख सकते हैं।
  2. जब किसी घने जंगल के वितान से सूर्य का प्रकाश गुजरता है तो भी टिन्डल प्रभाव को देखा जा सकता है।


Rayleigh का नियम

λ- प्रकाश किरण की तरंग दैर्ध्य, 

प्रकीर्णित प्रकाश का वर्णन प्रकीर्णन न करने वाले कणों के आकार पर निर्भर करता है ।

  1. अत्यंत सूक्ष्म कण मुख्य रूप से नीले प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
  2. बड़े आकार के कण अधिक तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्ण करते हैं।
  3. यदि प्रकीर्णन करने वाले कणों का साइज बहुत अधिक है तो प्रकीर्णित प्रकाश श्वेत भी प्रतीत हो सकता है।


प्रश्न 1. 'खतरे' का संकेत लाल रंग का क्यों होता है ?

उत्तर

‘खतरे' के संकेत का प्रकाश लाल रंग का होता है। लाल रंग कुहरे या धुएँ से सबसे कम

प्रकीर्ण होता है। इसलिए यह दूर से देखने पर भी दिखाई देता है।


प्रश्न 2. स्वच्छ आकाश का रंग नीला क्यों होता है ? वायु के 'अणु तथा अन्य सूक्ष्म कणों का आकार दृश्य प्रकाश की तरंगदैर्ध्य

उत्तर

वायुमंडल में के प्रकाश की अपेक्षा छोटा है। ये कण कम तरंगदैर्ध्य के प्रकाश को प्रकीर्णित करने में अधिक प्रभावी हैं। लाल वर्ण के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य नीले प्रकाश की अपेक्षा 1-8 गुनी है। अत: जब सूर्य का प्रकाश वायुमंडल से गुजरता है, वायु के सूक्ष्म कण लाल रंग की अपेक्षा नीले रंग को अधिक प्रबलता से प्रकीर्ण करते हैं। प्रकीर्णित हुआ नीला प्रकाश हमारे नेत्रों में प्रवेश करता है।


प्रश्न 3. ऊँचाई पर उड़ते हुए यात्रियों को आकाश काला क्यों प्रतीत होता है ?

उत्तर

क्योंकि इतनी ऊँचाई पर प्रकीर्णन सुस्पष्ट नहीं होता ।


प्रश्न 4. बादल सफेद क्यों प्रतीत होते हैं ?

उत्तर

बादल सूक्ष्म पानी की बूंदों से बने होते हैं ये सूक्ष्म बूंदों का आकार दृश्य किरणों की तरंगदैर्ध्य की सीमा से अधिक है। इसलिए जब श्वेत प्रकाश इन कणों से टकराता है तो सभी दिशा में परावर्तित या प्रकीर्ण हो जाता है। क्योंकि श्वेत प्रकाश के सभी रंग परावर्तित या प्रकीर्ण अधिकतम समान रूप से होते हैं। इसलिए हमें श्वेत रंग ही दिखाई देता है।


प्रश्न 5. ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते ?

उत्तर

तारों की अपेक्षा पृथ्वी के काफी नजदीक होते हैं। इसलिए उसे प्रकाश का बड़ा स्रोत माना जाता है। यदि गृह की प्रकाश के बिंदु स्रोतों का संग्रह माने तो प्रत्येक स्रोत द्वारा, हमारे आँखों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तत का औसत मान शून्य होगा, जिस कारण ग्रह टिमटिमाते नहीं ।

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