NCERT Solutions for Chapter 11 पौधों में परिवहन Class 11 Biology
एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter 11 पौधों में परिवहन Class 11 Biology
प्रश्न 1. विसरण की दर को कौन से कारक प्रभावित करते हैं?
उत्तर
विसरण की दर को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं-
- तापमान - तापमान के बढ़ने से विसरण की दर बढ़ती है।
- विसरण कर रहे पदार्थों का घनत्व - विसरण की दर विसरण कर रहे पदार्थों के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है। इसको ग्राह्म के विसरण का नियम (Graham' law of diffusion) कहते हैं।
- विसरण का माध्यम - अधिक सान्द्र माध्यम में विसरण की दर कम हो जाती है।
- विसरण दाब प्रवणता - विसरण दाब प्रवणता जितनी अधिक होती है अणुओं का विसरण उतना ही तीव्र होता है।
प्रश्न 2. पोरीन्स क्या है? विसरण में ये क्या भूमिका निभाते हैं?
उत्तर
पोरीन्स प्रोटीन के वृहत अणु हैं जो माइटोकॉण्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट तथा कुछ जीवाणुओं की बाह्य कला में धँसे रहते हैं। ये बड़े छिद्र बनाते हैं जिससे बड़े अणु उसमें से निकल सकें। अतः ये सहज विसरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 3. पादपों में सक्रिय परिवहन के दौरान प्रोटीन पम्प के द्वारा क्या भूमिका निभाई जाती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर
पादप कला के लिपिड स्तर में वाहक प्रोटीन के अणु मिलते हैं। ये ऊर्जा का उपयोग कर सान्द्रता विभव के विरुद्ध अणुओं को भेजते हैं। अतः उन्हें प्रोटीन पम्प कहते हैं। ये आयन का परिवहन कला के आर-पार इन प्रोटीन पम्पों की सहायता से करते हैं।
प्रश्न 4. शुद्ध जल का सबसे अधिक जल विभव क्यों होता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर
शुद्ध जल का सबसे अधिक जल विभव (water potential) होता है; क्योंकि—
(i) जल अणुओं में गतिज ऊर्जा पाई जाती है। यह तरल और गैस दोनों अवस्था में गति करते हुए पाए जाते हैं। गति स्थिर तथा तीव्र (constant and rapid) दोनों प्रकार की हो सकती है।
(ii) किसी माध्यम में यदि अधिक मात्रा में जल हो तो उसमें गतिज ऊर्जा तथा जल विभव अधिक होगा। शुद्ध जल में सबसे अधिक जल विभव (water potential) होता है।
(iii) जब दो जल तन्त्र परस्पर सम्पर्क में हों तो पानी के अणु उच्च जल विभव (या तनु घोल) वाले तन्त्र से कम जल विभव (सान्द्र घोल) वाले तन्त्र की ओर जाते हैं।
(iv) जल विभव को ग्रीक चिह्न Ѱ (Psi) से चिह्नित करते हैं। इसे पास्कल (pascal) दाब इकाई में व्यक्त किया जाता है।
(v) मानक परिस्थितियों में शुद्ध जल का विभव (water potential) शून्य होता है।
(vi) किसी विलयन तन्त्र का जल विभव उस विलयन से जल बाहर निकलने की प्रवृत्ति का मापन करता है। यह प्रवृत्ति ताप एवं दाब के साथ बढ़ती जाती है, लेकिन विलेय (solute) की उपस्थिति के कारण घटती है।
(vii) शुद्ध जल में विलेय को घोलने पर घोल में जल की सान्द्रता और जल विभव कम होता जाता है। अतः सभी विलयनो में शुद्ध जल की अपेक्षा जल विभव कम होता है। जल विभव के कम होने का कारण विलेय विभव (solute potential ) होता है। इसे परासरण विभव (osmotic potential) भी कहते हैं। जल विभव तथा विलेय विभव ऋणात्मक होता है। कोशिका द्वारा जल अवशोषित करने के फलस्वरूप कोशिका भित्ति पर दबाव पड़ता है, जिससे यह आशून (स्फीत) हो जाती है। इसे दाब विभव (Pressure potential) कहते हैं। दाब विभव प्रायः सकारात्मक होता है, लेकिन जाइलम के जल स्तम्भ में ऋणात्मक दाब विभव रसारोहण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(viii) किसी पादप कोशिका में जलीय विभव (Ѱ) तीन बलों द्वारा नियन्त्रित होता है— दाब विभव (ѰP) परासरणीय विभव या विलेय विभव (ѰS) तथा मैट्रिक्स विभव (Ѱm)। मैट्रिक्स विभव प्रायः नगण्य होता है। अतः कोशिका के जलीय विभव की गणना निम्नलिखित सूत्रानुसार करते हैं-
Ѱ = ѰP + ѰS
(ix) जीवद्रव्यकुंचित कोशिका का जलीय विभव परासरणीय विभव के बराबर होता है; क्योंकि दाब विभव शून्य होता है। पूर्ण स्फीत कोशिका में दाब विभव और परासरणीय विभव के बराबर हो जाने से जलीय विभव शून्य हो जाता है।
(x) जल विभव सान्द्रता (concentration), प्रवणता (gravity) और दाब (pressure) से प्रभावित होता हैं।
प्रश्न 5. निम्नलिखित के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(क) विसरण एवं परासरण
(ख) वाष्पोत्सर्जन एवं वाष्पीकरण
(ग) परासारी दाब तथा परासारी विभव
(घ) विसरण तथा अन्तः शोषण
(च) पादपों में पानी के अवशोषण का एपोप्लास्ट और सिमप्लास्ट पथ
(छ) बिन्दुस्राव एवं परिवहन (अभिगमन)।
उत्तर
(क) विसरण एवं परासरण में अन्तर
विसरण (Diffusion) |
परासरण (Osmosis) |
विसरण क्रिया सभी पदार्थों ठोस, द्रव व गैसों में हो सकती है। |
परासरण केवल द्रव तथा उसमें विलेय पदार्थों में ही होता है। |
विसरण के लिए किसी झिल्ली की आवश्यकता नहीं होती है। |
परासरण के लिए अर्द्धपारगम्य (semipermeable). या वरणात्मक पारगम्य झिल्ली की आवश्यकता होती है। |
विसरण सभी दिशाओं (directions) में होने वाली क्रिया है। |
परासरण निश्चित दिशा या दिशाओं में होने वाली क्रिया है। |
इस क्रिया में कोई विशेष दाब नहीं पैदा होता है। |
परासरण दाब होता है, जो विलयन की सान्द्रता पर निर्भर करता है। |
विसरण क्रिया अधिक विसरण दाब से कम विसरण दाब की ओर होती है। |
परासरण क्रिया कम परासरण दाब वाले विलयन से अधिक परासरण दाब वाले विलयन की ओर होती है| |
(ख) वाष्पोत्सर्जन एवं वाष्पीकरण में अन्तर
वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) |
वाष्पीकरण (Evaporation) |
पादप शरीर के वायवीय भागों से होने वाली इस या में वाष्पन के साथ-साथ जलवाष्प का विसरण होता है। |
जल की किसी भी सतह से जल का वाष्प रूप में क्रि परिणत होते रहना वाष्पन क्रिया है। यह एक सामान्य क्रिया है। |
यह एक जैव-भौतिक क्रिया है, जो वाष्पन के कारकों के अतिरिक्त पादप शरीर की बाह्य तथा आन्तरिक रूप, रंग तथा संरचना के द्वारा नियन्त्रित की जाती है। |
यह एक भौतिक क्रिया है तथा अनेक भौतिक कारकों पर निर्भर करती है, जो ताप तथा दाब सम्बन्धी होते हैं। |
(ग) परासारी दाब तथा परासारी विभव में अन्तर
परासारी विभव (Osmotic Potential) |
परासारी दाब (Osmotic Pressure) |
इसे OP से प्रदर्शित करते हैं। |
इसे ѰS से प्रदर्शित करते हैं। |
इसे मापा (measure) जा सकता है। इसे बार (Bar) में मापा जाता है। [एक मेगा पास्कल (mPa) = 10 बार (Bar)] |
इसे मापा नहीं जा सकता। |
यह धनात्मक (+Ve) होता है। |
यह ऋणात्मक (-Ve) होता है। |
यह परासारी विभव के बराबर और विपरीत होता है। |
संख्यात्मक आधार पर परासरण दाब परांसारी विभव के बराबर होता है, लेकिन इसका संकेत विपरीत होता है। |
अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा जब घोल को शुद्ध जल से पृथक् करते हैं तो घोल द्वारा उत्पन्न दाब को परासारी दाब कहते हैं। |
सभी विलयनों में शुद्ध जल की अपेक्षा जल विभव निम्न होता है। निम्नता का कारण विलेय के द्रवीकरण के कारण होता है। इसे विलेय विभव कहते हैं। |
(घ) विसरण एवं अन्तः शोषण में अन्तर
विसरण (Diffusion) |
अन्तःशोषण (Imbibition) |
यह ठोस, तरल एवं गैस के अणुओं में होने वाली क्रिया है। |
यह जीवित तथा मृत कोशिकाओं में होने वाली क्रिया है। |
इस क्रिया में गैस, तरल और ठोस (तरल माध्यम में) के अणु या आयन्स अधिक सान्द्रता वाले स्थान से कम सान्द्रता वाले स्थान की ओर गति करते हैं। |
इसमें सामान्य सतह से जलवाष्प या जल का अवशोषण जल विभव प्रवणता के कारण होता है। |
इसमें अणुओं या आयन्स के मध्य आकर्षण आवश्यक नहीं होता। |
इसमें अवशोषक (imbibant) तथा माध्यम के अणुओं के मध्य आकर्षण होना आवश्यक है। |
(च) पादपों में पानी के अवशोषण का एपोप्लास्ट और सिमप्लास्ट पथ में अन्तर
पोप्लास्ट पथ (Apoplast Pathway) |
सिमप्लास्ट पथ (Symplast Pathway) |
यह निकटवर्ती कोशिका भित्ति का तन्त्र है। यह अन्तस्त्वचा की कैस्पेरियन पट्टियों को छोड़कर पूरे पौधों में पाया जाता है। |
यह सम्बन्धित जीवद्रव्य का तन्त्र है। समीपवर्ती कोशिकाएँ कोशिकाद्रव्यी तन्तुओं से जुड़ी रहतीं हैं। |
जल का एपोप्लास्ट परिवहन केवल अन्तर कोशिकीय अवकाशों और कोशिकाओं की भित्ति में होता है। |
जल का सिमप्लास्ट परिवहन कोशिकाओं के जीवद्रव्य और कोशिकाद्रव्यी तन्तुओं के माध्यम से होता है। |
एपोप्लास्ट जल परिवहन गति प्रवणता पर निर्भर रहता है। यह मूलतः सामान्य विसरण एवं केशिका क्रिया (capillary action) के कारण होता है। |
जल को जाइलम ऊतक में पहुँचाने के लिए मूलतः परासरण क्रिया होती है। |
(छ) बिन्दुस्राव एवं परिवहन (अभिगमन) में अन्तर
बिन्दुस्राव (Guttation) |
परिवहन (Transportation) |
पौधों की पत्तियों से तरल कोशिकारस के स्रवित होने को बिन्दुस्राव कहते हैं। |
संवहन ऊतक द्वारा पदार्थों के आवागमन को परिवहन कहते हैं। |
यह पत्तियों के किनारों पर स्थित जलरन्ध्रों (hydathodes) से होता है। सामान्यतया मूलदाब के कारण यह घास आदि शाकीय पौधों में रात्रि के समय होता है। |
जाइलम जल एवं पोषक पदार्थों तथा फ्लोएम कार्बनिक पदार्थों के परिवहन के लिए उत्तरदायी होते हैं। जाइलम में परिवहन जड़ से पत्तियों की ओर तथा फ्लोएम में परिवहन पत्तियों से जड़ की ओर होता है। |
प्रश्न 6. जल विभव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। कौन से कारक इसे प्रभावित करते हैं? जल विभव, विलेय विभव तथा दाब विभव के आपसी सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
"अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर" में शीर्षक के प्रश्न 4 का उत्तर देखिए।
प्रश्न 7. तब क्या होता है जब शुद्ध जल या विलयन पर पर्यावरण के दाब की अपेक्षा अधिक दाब लागू किया जाता है?
उत्तर
जब शुद्ध जल या विलयन पर पर्यावरण के दाब की अपेक्षा अधिक दाब लागू किया जाता है तो इसका जल विभव बढ़ जाता है। जब पौधों या कोशिका में जल विसरण द्वारा प्रवेश करता है तो कोशिका आशून (turgid) हो जाती है। इसके फलस्वरूप दाब विभव (pressure potential) बढ़ जाता है। दाब विभव अधिकतर सकारात्मक होता है। इसे ѰP से प्रदर्शित करते हैं। जल विभव घुलित तथा दाब विभव से प्रभावित होता है।
प्रश्न 8. (क) रेखांकित चित्र की सहायता से पौधों में जीवद्रव्यकुंचन की विधि का वर्णन उदाहरण देकर कीजिए ।
(ख) यदि पौधे की कोशिका को उच्च जल विभव वाले विलयन में रखा जाए तो क्या होगा?
उत्तर
(क) रिक्तिकामय पादप कोशिका को अतिपरासारी विलयन (hypertonic solution) में रख देने पर कोशिकारस कोशिका से बाहर आने लगता है। यह क्रिया बहि: परासरण (exosmosis) के कारण होती है। इसके फलस्वरूप जीवद्रव्य सिकुड़कर कोशिका में एक ओर एकत्र हो जाता है। इस अवस्था में कोशिका पूर्ण श्लथ (fully flaccid ) हो जाती है। इस क्रिया को जीवद्रव्यकुंचन (plasmolysis) कहते हैं। जीवद्रव्यकुंचित कोशिका की कोशिका भित्ति और जीवद्रव्य के मध्य अतिपरासारी विलयन एकत्र हो जाता है, लेकिन यह विलयन कोशिकारिक्तिका में नहीं पहुँचता। इससे यह स्पष्ट होता है कि कोशिका भित्ति पारगम्य होती है और रिक्तिका कला अर्द्धपारगम्य होती है।
जीवद्रव्यकुंचित कोशिका को आसुत जल या अल्पपरासारी विलयन (hypotonic solution) में रखा जाए तो कोशिका पुनः अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है। इस प्रक्रिया को जीवद्रव्यविकुंचन (deplasmolysis) कहते हैं।
कोशिका को समपरासारी विलयन (isotonic solution) में रखने पर कोशिका में कोई परिवर्तन नहीं होता, जितने जल अणु कोशिका से बाहर निकलते हैं उतने जल अणु कोशिका में प्रवेश कर जाते हैं।
(ख) अल्परासारी विलयन (hypotonic solution) कोशिकारस या कोशिकाद्रव्य की अपेक्षा तनु (dilute) होता है। इसका जल विभव (water potential) अधिक होता है। अतः पादप कोशिका को अल्पपरासारी विलयन में रखने पर अन्तः परासरण की क्रिया होती है। इस क्रिया के फलस्वरूप अतिरिक्त जल कोशिका में पहुँचकर स्फीति दाब (turgor pressure) उत्पन्न करता है। स्फीति दाब भित्ति दाब (wall pressure) के बराबर होता है। स्फीति दाब को दाब विभव (pressure potential) भी कहते हैं। कोशिका भित्ति की दृढ़ता एवं स्फीति दाब के कारण कोशिका भित्ति क्षतिग्रस्त नहीं होती। स्फीति या आशूनता के कारण कोशिका में वृद्धि होती है। स्फीति दाब एवं परासरण दाब के बराबर हो जाने पर कोशिका में जल का आना रुक जाता है।
प्रश्न 9. पादप में जल एवं खनिज के अवशोषण में माइकोराइजल (कवकमूल सहजीवन) सम्बन्ध कितने सहायक हैं?
उत्तर
अनेक उच्च पादपों की जड़ें कवक मूल द्वारा संक्रमित हो जाती हैं; जैसे― चीड़, देवदार, ओक आदि। कवक तन्तु की जड़ों की सतह पर बाह्यपादपी कवकमूल (ectophytic mycorrhiza) बनाता है। कभी-कभी कवक तन्तु जड़ के अन्दर पहुँच जाते हैं और अन्तः पादपी कवकमूल बनाते हैं। कवक मूल संगठन में कवक तन्तु अपना भोजन पोषक (host) की जड़ों से प्राप्त करते हैं तथा वातावरण की नमी व भूमि की ऊपरी सतह से लवणों का अवशोषण कर पोषक पौधे को प्रदान करने का कार्य करते हैं।
कुछ आवृतबीजी पौधे; जैसे— निओशिया (Neottia), मोनोट्रोपा (Monotropa) भी कवकमूल सहजीवन प्रदर्शित करते हैं। इन पौधों को अगर कवक सहजीविता समय पर उपलब्ध नहीं होती तो ये मर जाते हैं। चीड़ के बीज कवक सहजीविता स्थापित न होने की स्थिति में अंकुरित होकर नवोद्भिद् (seedings) नहीं बना पाते।
प्रश्न 10. पादप में जल परिवहन हेतु मूलदाब क्या भूमिका निभाता है? मूलदाब
उत्तर
मूल वल्कुट (root cortex) की कोशिकाओं की स्फीति (आशून) स्थिति में अपने कोशिकाद्रव्य पर पड़ने वाले दाब को मूलदाब (root pressure) कहते हैं। मूलदाब के फलस्वरूप जल (कोशिकारस) जाइलम वाहिकाओं में प्रवेश करके तने में कुछ ऊँचाई तक ऊपर चढ़ता है। मूलदाब शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम स्टीफन हेल्स (Stephan Hales, 1927) ने किया। स्टॉकिंग (Stocking, 1956) के अनुसार जड़ के जाइलम में उत्पन्न दाब, जो जड़ की उपापचयी क्रियाओं से उत्पन्न होता है, मूलदाब कहलाता है।
मूलदाब सामान्यतया +1 से +2 बार तक होता है। इससे जल कुछ ऊँचाई तक चढ़ सकता है। शुष्क मृदा में मूलदाब उत्पन्न नहीं होता । बहुत-से पौधों; जैसे – अनावृतबीजी (gymnosperms) में मूलदाब उत्पन्न हीं नहीं होता । अतः आधुनिक मतानुसार रसारोहण में मूलदाब का विशेष कार्य नहीं है।
प्रश्न 11. पादपों में जल परिवहन हेतु वाष्पोत्सर्जन खिंचाव मॉडल की व्याख्या कीजिए । वाष्पोत्सर्जन क्रिया को कौन-सा कारक प्रभावित करता है? पादपों के लिए कौन उपयोगी है?
उत्तर
पौधे जड़ों द्वारा जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करते हैं। अवशोषित जल गुरुत्वाकर्षण के विपरीत पर्याप्त ऊँचाई तक (पत्तियों तक पहुँचता है। यह ऊँचाई सिकोया (Sequoia) में 370 फुट तक होती है। गुरुत्वाकर्षण के विपरीत जल के ऊपर चढ़ने की क्रिया को रसारोहण कहते हैं।
सर्वमान्य वाष्पोत्सर्जनाकर्षण जलीय संसंजक मत (Transpiration Pull Cohesive Force of Water Theory) के अनुसार रसारोहण निम्नलिखित कारणों से होता है-
- वाष्पोत्सर्जनाकर्षण (वाष्पोत्सर्जन खिंचाव मॉडल): पत्तियों की कोशिकाओं से जल के वाष्पन के फलस्वरूप कोशिकाओं की परासरण सान्द्रता तथा विसरण दाब न्यूनता (Diffusion pressure deficit) अधिक हो जाती है। इसके फलस्वरूप जल जाइलम से परासरण द्वारा पर्ण कोशिकाओं में पहुँचता रहता है। जलवाष्प रन्ध्रों से वातावरण में विसरित होती रहती है। इसके फलस्वरूप जाइलम में उपस्थित जल स्तम्भ पर एक तनाव उत्पन्न हो जाता है। वाष्पोत्सर्जन के कारण उत्पन्न होने वाले इस तनाव को वाष्पोत्सर्जनाकर्षण (transpiration pull) कहते हैं।
- जल अणुओं का संसंजन बल (Cohesive Force of Water Molecules): जल अणुओं के मध्य संसंजन बल (cohesive force) होता है। इसी संसंजन बल के कारण जल स्तम्भ 400 वायुमण्डलीय दाब पर भी खण्डित नहीं होता और इसकी निरन्तरता बनी रहती है। संसंजन बल के कारण जल 1500 मीटर ऊँचाई तक चढ़ सकता है।
- जल तथा जाइलम भित्ति के मध्य आसंजन (Adhesion between Water and Cell wall of Xylem Tissue): जाइलम ऊतक की कोशिकाओं और जल अणुओं के मध्य आसंजन (adhesion) का आकर्षण होता है। यह आसंजन जल स्तम्भ को सहारा प्रदान करता है। वाष्पोत्सर्जन के कारण उत्पन्न तनाव जल स्तम्भ को ऊपर खींचता है ।
वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक पौधों में वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारकों को दो समूहों में बाँट सकते हैं-
(अ) बाह्य कारक (External Factors)
(ब) आन्तरिक कारक (Internal Factors)
(अ) बाह्य कारक
- वायुमण्डल की अपेक्षिक आर्द्रता (Relative Humidity of Atmosphere): वायुमण्डल की आपेक्षिक आर्द्रता कम होने पर वाष्पोत्सर्जन अधिक होता है। आपेक्षिक आर्द्रता अधिक होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
- प्रकाश (Light): प्रकाश के कारण रन्ध्र खुलते हैं, तापमान में वृद्धि होती है; अतः वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। रात्रि में रन्ध्र बन्द हो जाने से वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
- वायु (Wind): वायु की गति अधिक होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर अधिक हो जाती है।
- तापक्रम (Temperature): ताप के बढ़ने से आपेक्षिक आर्द्रता कम हो जाती है और वाष्पोत्सर्जन की दर बढ़ जाती है। ताप कम होने पर आपेक्षिक आर्द्रता अधिक हो जाती है और वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
- उपलब्ध जल (Available Water): वाष्पोत्सर्जन की दर जल की उपलब्धता पर निर्भर करती है। मृदा में जल की कमी होने पर वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है।
(ब) आन्तरिक कारक
पत्तियों की संरचना, रन्ध्रों की संख्या एवं संरचना आदि वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करती है।
वाष्पोत्सर्जन की उपयोगिता:
- पौधों में अवशोषण एवं परिवहन के लिए वाष्पोत्सर्जन खिंचाव उत्पन्न करता है।
- मृदा से प्राप्त खनिजों के पौधों के सभी अंगों (भागों) तक परिवहन में सहायता करता है ।
- पत्ती की सतह को वाष्पीकरण द्वारा 10-15°C तक ठण्डा रखता है।
- कोशिकाओं को स्फीति रखते हुए पादपों के आकार एवं बनावट को नियन्त्रित रखने में सहायता करता है।
प्रश्न 12. पादपों में जाइलम रसारोहण के लिए जिम्मेदार कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
गुरुत्वाकर्षण के विपरीत मूलरोम से पत्तियों तक कोशिकारस (cell sap) के ऊपर चढ़ने की क्रिया को रसारोहण (Ascent of sap) कहते हैं। रसारोहण मुख्य रूप से वाष्पोत्सर्जनाकर्षण (transpiration pull) के कारण होता है।
यह निम्नलिखित कारकों से प्रभावित होता है—
- संसंजन (Cohesion): जल के अणुओं के मध्य आकर्षण ।
- आसंजन (Adhesion): जलं अणुओं का ध्रुवीय सतह (जैसे - जाइलम ऊतक) से आकर्षण।
- पृष्ठ तनाव (Surface Tension): जल अणुओं की द्रव अवस्था में गैसीय अवस्था।
जल की उपर्युक्त विशिष्टताएँ जल को उच्च तन्य सामर्थ्य (high tensile strength) प्रदान करती हैं। वाहिकाएँ एवं वाहिनिकाएँ (tracheids & vessels) केशिका (capillary) के समान लघु व्यास वाली कोशिकाएँ होती हैं।
प्रश्न 13. पादपों में खनिजों के अवशोषण के दौरान अन्तः त्वचा की आवश्यक भूमिका क्या होती है?
उत्तर
जड़ों की अन्तस्त्वचा कोशिकाओं की कोशिकाकला पर अनेक वाहक प्रोटीन्स पाई जाती हैं। ये प्रोटीन्स जड़ों द्वारा अवशो किए जाने वाले घुलितों की मात्रा और प्रकार को नियन्त्रित करने वाले बिन्दुओं की भाँति कार्य करती हैं । अन्तस्त्वचा की सुबेरिनमय (suberinised) कैस्पेरी पट्टियों (casparian strips) द्वारा खनिज या घुलित पदार्थों के आयन्स या अणुओं का परिवहन एक ही दिशा (unidirection) में होता है। अतः अन्तस्त्वचा (endodermis ) खनिजों की मात्रा और प्रकार (quantity & type) को जाइलम तक पहुँचने को नियन्त्रित करती है। जल तथा खनिजों की गति मूलत्वचा (epiblema) से अन्तस्त्वचा तक सिमप्लास्टिक (symplastic) होती है।
प्रश्न 14. जाइलम परिवहन एकदिशीय तथा फ्लोएम परिवहन द्विदिशीय होता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर
जाइलम परिवहन (Xylem Transport): पौधे अपने लिए आवश्यक जल एवं खनिज पोषक मृदा से प्राप्त करते हैं। ये सक्रिय या निष्क्रिय अवशोषण या सम्मिश्रित प्रक्रिया द्वारा अवशोषित होकर जाइलम तक पहुँचते हैं। जाइलम द्वारा जल एवं पोषक तत्त्वों का परिवहन एकदिशीय (unidirection) होता है। ये पौधों के वृद्धि क्षेत्र की ओर विसरण द्वारा पहुँचते हैं।
फ्लोएम परिवहन (Phloem Transport): फ्लोएम द्वारा सामान्यतया कार्बनिक भोज्य पदार्थों का परिवहन होता है। कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण पत्तियों द्वारा होता है। पत्तियों में निर्मित भोज्य पदार्थों का पौधे के संचय अंगों (कुण्ड-सिक) तक परिवहन होता है। लेकिन यह स्रोत (पत्तियाँ) और कुण्ड (संचय अंग) अपनी भूमिकाएँ मौसम और आवश्यकतानुसार बदलते रहते हैं; जैसे—जड़ों में संचित अघुलनशील भोज्य पदार्थ बसन्त ऋतु के प्रारम्भ में घुलनशील शर्करा में बदलकर वर्धी और पुष्प कलिकाओं तक पहुँचने लगता है। इससे स्पष्ट है कि संश्लेषण स्रोत और संचय स्थल (कुण्ड-सिंक) का सम्बन्ध बदलता रहता है। अतः फ्लोएम में घुलनशील शर्करा का परिवहन द्विदिशीय या बहुदिशीय (bidirectional or multidirectional) होता है।
प्रश्न 15. पादपों में शर्करा के स्थानान्तरण के दाब प्रवाह परिकल्पना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
खाद्य पदार्थों (शर्करा) के वितरण की सर्वमान्य क्रियाविधि दाब प्रवाह परिकल्पना है। पत्तियों में संश्लेषित ग्लूकोस, सुक्रोस (sucrose) में बदलकर फ्लोएम की चालनी नलिकाओं और सहचर कोशिकाओं द्वारा पौधों के संचय अंगों में स्थानान्तरित होता है। पत्तियों में निरन्तर भोजन निर्माण होता रहता है। फ़्लोएम ऊतक की चालनी नलिकाओं में जीवद्रव्य के प्रवाहित होते रहने के कारण उसमें घुलित भोज्य पदार्थों के अणु भी प्रवाहित होते रहते हैं। यह स्थानान्तरण अधिक सान्द्रता वाले स्थान से कम सान्द्रता वाले स्थानों की ओर होता है। पत्तियों की कोशिकाओं में निरन्तर भोज्य पदार्थों का निर्माण होता रहता है, इसलिए पत्ती की कोशिकाओं में परासरण दाब अधिक रहता है। जड़ों तथा अन्य संचय भागों में
भोज्य पदार्थों के अघुलनशील पदार्थों में बदल जाने या प्रयोग कर लिए जाने के कारण इन कोशिकाओं का परासरण दाब कम बना रहता है। भोज्य पदार्थों के परिवहन हेतु जल जाइलम ऊतक से प्राप्त होता है। संचय अंगों में मुक्त जल जाइलम ऊतक में वापस पहुँच जाता है। इस प्रकार फ्लोएम द्वारा सुगमतापूर्वक कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संवहन होता रहता है।
प्रश्न 16. वाष्पोत्सर्जन के दौरान रक्षक द्वार कोशिका खुलने एवं बन्द होने के क्या कारण हैं?
उत्तर
पौधों के वायवीय भागों से होने वाली जल हानि को वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहते हैं। यह सामान्यतया रन्ध्र (stomata) द्वारा होता है। उपचर्म (cuticle) तथा वातारन्ध्र (lenticel) इसमें सहायक होते हैं। रन्ध्र रक्षक द्वार कोशिकाओं (guard cells) से घिरा सूक्ष्म छिद्र होता है । रक्षक द्वार 'कोशिकाएँ सेम के बीज या वृक्क के आकार की होती हैं। ये चारों ओर से बाह्य त्वचीय कोशिकाओं अथवा सहायक कोशिकाओं से घिरी रहती हैं। रक्षक द्वार कोशिका में केन्द्रक तथा हरितलवक (chloroplast) पाए जाते हैं। रक्षक द्वार कोशिका की भीतरी सतह मोटी भित्ति वाली तथा बाह्य सतह पतली भित्ति वाली होती है।
रन्ध्र का खुलना या बन्द होना रक्षक द्वार कोशिकाओं की स्फीति (turgidity) पर निर्भर करता है । जब रक्षक कोशिकाएँ स्फीति होती हैं तो रन्ध्र खुला रहता है और जब ये श्लथ (flaccid) होती हैं तो रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। रन्ध्र के खुलने में रक्षक कोशिका की भित्तियों में उपस्थित माइक्रोफाइब्रिल सहायता करते हैं। ये अरीय क्रम में व्यवस्थित रहते हैं। सामान्यतया रन्ध्र दिन के समय खुले रहते हैं और रात्रि के समय बन्द हो जाते हैं।