NCERT Solutions for Chapter 19 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन Class 11 Biology

Chapter 19 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन NCERT Solutions for Class 11 Biology are prepared by our expert teachers. By studying this chapter, students will be to learn the questions answers of the chapter. They will be able to solve the exercise given in the chapter and learn the basics. It is very helpful for the examination.

एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter 19 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन Class 11 Biology

प्रश्न 1. गुच्छीय निस्यंद दर (GFR) को परिभाषित कीजिए।

उत्तर

वृक्कों द्वारा प्रति मिनट निस्यंदित की गई मूत्र की मात्रा गुच्छीय निस्यंद दर (GFR) कहलाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति में यह 125 ml/मिनट अथवा 180 ली प्रतिदिन होती है।


प्रश्न 2. गुच्छीय निस्यंद दर (GFR) की स्वनियमन क्रियाविधि को समझाइए ।

उत्तर

गुच्छीय निस्यंद की दर के नियमन के लिए गुच्छीय आसन्न उपकरण द्वारा एक अति सूक्ष्म क्रियाविधि सम्पन्न की जाती है। यह विशेष संवेदी उपकरण अभिवाही तथा अपवाही धमनिकाओं के सम्पर्क स्थल पर दूरस्थ संकलित नलिका की कोशिकाओं में रूपान्तरण से बनता । गुच्छ निस्यंदन दर में गिरावट इन आसन्न गुच्छ कोशिकाओं को रेनिन के स्रावण के लिए सक्रिय करती है जो वृक्कीय रक्त का प्रवाह बढ़ाकर गुच्छनिस्यंद दर को पुनः सामान्य कर देती है।


प्रश्न 3. निम्नलिखित कथनों को सही अथवा गलत में इंगित कीजिए—

(अ) मूत्रण प्रतिवर्ती क्रिया द्वारा होता है।

(ब) ए०डी०एच० मूत्र को अल्पपरासरणी बनाते हुए जल के निष्कासन में सहायक होता है।

(स) बोमेन संपुट में रक्त प्लाज्मा से प्रोटीन रहित तरल निस्यंदित होता है।

(द) हेनले लूप मूत्र के सांद्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(य) समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) में ग्लूकोस सक्रिय रूप से पुनः अवशोषित होता है।

उत्तर

(अ) सही,

(ब) गलत,

(स) सही,

(द) सही,

(य) सही।


प्रश्न 4. प्रतिधारा क्रियाविधि का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर

शरीर में जल की कमी हो जाने पर वृक्क सान्द्र मूत्र उत्सर्जित करने लगते हैं। इसमें जल की मात्रा बहुत कम और उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। ऐसा मूत्र रक्त की तुलना में 4-5 गुना अधिक गाढ़ा हो सकता है। इसकी परासरणीयता 1200 से 1400 मिली ऑस्मोल/लीटर हो सकती है। मूत्र के सान्द्रण की प्रक्रिया में जक्स्टा मेड्यूलरी (juxta medullary) वृक्क नलिकाओं की विशेष भूमिका हो जाती है; क्योंकि हेनले के लूप तथा परिजालिका केशिकाओं (वासा रेक्टा — vasa recta) के लूप पेल्विस तक फैले होते हैं। यह प्रक्रिया ADH के नियन्त्रण में तथा पिरैमिड्स के ऊतक द्रव्य में वल्कुट भाग से पेल्विस तक क्रमिक उच्च परासरणीयता बनाए रखने पर निर्भर करती है। वृक्कों के वल्कुट भाग में ऊतक तरल की परासरणीयता 300 मिली ऑस्मोल/लीटर जल होती है। मध्यांश (medulla) भाग के पिरैमिड्स में यह परासरणीयता क्रमशः बढ़कर पेल्विस तक 1200 से 1400 मिली ऑस्मोल/लीटर जल हो जाती है। ऊतक तरल की परासरणीयता मुख्यत: Na+ व Cl- आयन तथा यूरिया पर निर्भर करती है।

Na+, Cl- आयन्स का परिवहन हेनले लूप की आरोही भुजा द्वारा होता है जिसका हेनले लूप की अवरोही भुजा के साथ विनिमय किया जाता है। सोडियम क्लोराइड ऊतक द्रव्य को वासा रेक्टा की आरोही भुजा द्वारा लौटा दिया जाता है। इसी प्रकार यूरिया की कुछ मात्रा हेनले लूप के सँकरे आरोही भाग में विसरण द्वारा पहुँचती है जो संग्रह नलिका द्वारा ऊतक द्रव्य को पुनः लौटा दी जाती है। हेनले लूप तथा वासा रेक्टा द्वारा इन पदार्थों के परिवहन को प्रतिधारा क्रियाविधि द्वारा सुगम बनाया जाता है। इसके फलस्वरूप मध्यांश के ऊतक द्रव्य की प्रवणता बनी रहती है। यह प्रवणता संग्रहनलिका द्वारा जल के अवशोषण में सहायता करती है और निस्यंद का सान्द्रण करती है। प्रतिधारा क्रियाविधि जल के ह्रास को रोकने की प्रमुख विधि है।


प्रश्न 5. उत्सर्जन में यकृत, फुफ्फुस तथा त्वचा का महत्त्व बताइए।

उत्तर

मनुष्य तथा अन्य कशेरुकियों में वृक्क के अतिरिक्त यकृत, फुफ्फुस तथा त्वचा का उत्सर्जन में महत्त्व है। ये सहायक उत्सर्जी अंगों की तरह कार्य करते हैं।

  1. यकृत (Liver)— यकृत अमोनिया को यूरिया में बदलता है। यूरिया अमोनिया की तुलना में कम हानिकारक होता है। यकृत कोशिकाएँ हीमोग्लोबिन के विखण्डन से पित्त वर्णक बिलिरुबिन (bilirubin), बिलिवर्डिन (biliverdin) बनाती हैं। इसके अतिरिक्त पित्त में उत्सर्जी पदार्थ कोलेस्टेरॉल (cholesterol), कुछ निम्नीकृत स्टीरॉयड हॉर्मोन्स, औषधियाँ आदि होती हैं। ये उत्सर्जी पदार्थ यकृत के पित्त द्वारा ग्रहणी में पहुँच जाते हैं और मल के साथ शरीर से त्याग दिए जाते हैं।
  2. फुफ्फुस (Lungs)— श्वसन क्रिया के फलस्वरूप मुक्त CO2 (18 L/day) एवं जलवाष्प फेफड़ों (फुफ्फुस) द्वारा शरीर से निष्कासित होती है।
  3. त्वचा (Skin)— जलीय प्राणियों में अमोनिया का उत्सर्जन त्वचा द्वारा होता है। स्थलीय जन्तुओं में त्वचा की स्वेद ग्रन्थियों (sweat glands) द्वारा जल, खनिज तथा सूक्ष्म मात्रा में यूरिया, लैक्टिक अम्ल आदि पसीने के रूप में उत्सर्जित होता है। त्वचा की तेल ग्रन्थियाँ (oil glands) सीबम (sebum) के साथ कुछ हाइड्रोकार्बन्स, मोम (wax), स्टेरॉल (sterol), वसीय अम्ल (fatty acids) आदि उत्सर्जित होते हैं।

प्रश्न 6. मूत्रण की व्याख्या कीजिए ।

उत्तर

मूत्र वृक्क में बनकर मूत्राशय में एकत्र होता रहता है। सामान्यतः अन्तः मूत्रीय तथा बाह्यमूत्रीय संकोचक पेशियों के संकुचन के कारण मूत्रमार्ग बन्द रहता है। मूत्राशय से मूत्र त्याग तभी होता है जब मूत्रमार्ग की दोनों प्रकार की संकोचक पेशियाँ शिथिल हो जाएँ । अन्तः मूत्रीय संकोचक में अरेखित पेशी तथा बाह्य मूत्रीय संकोचक में रेखित पेशी तन्तु होते हैं, इसलिए अन्तःमूत्रीय संकोचक का शिथिलन स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के नियन्त्रण में होने वाली अनैच्छिक और बाह्य मूत्रीय पेशियों का शिथिलन एक ऐच्छिक प्रतिक्रिया होती है। मूत्रण वास्तव में अनैच्छिक तथा ऐच्छिक प्रतिक्रियाओं के सहप्रभाव से होता है। ऐच्छिक नियन्त्रण के कारण हम इच्छानुसार मूत्र त्याग करते हैं।


प्रश्न 7. स्तम्भ I के बिन्दुओं का खण्ड स्तम्भ II से मिलान कीजिए-

स्तम्भ I

स्तम्भ II

(i) अमोनियोत्सर्जन

(अ) पक्षी

(ii) बोमेन सम्पुट

(ब) जल का पुनःअवशोषण

(iii) मूत्रण

(स) अस्थिल मछलियाँ

(iv) यूरिक अम्ल उत्सर्जन

(द) मूत्राशय

(v) ए०डी०एच०

(य) वृक्क नलिका

उत्तर

स्तम्भ I

स्तम्भ II

(i) अमोनियोत्सर्जन

(स) अस्थिल मछलियाँ

(ii) बोमेन सम्पुट

(य) वृक्क नलिका

(iii) मूत्रण

(द) मूत्राशय

(iv) यूरिक अम्ल उत्सर्जन

(अ) पक्षी

(v) ए०डी०एच०

(ब) जल का पुनःअवशोषण


प्रश्न 8. परासरण नियमन का अर्थ बताइए ।

उत्तर

वृक्क शरीर से हानिकारक पदार्थों को मूत्र के रूप में शरीर से निरन्तर बाहर निकालते रहते हैं। इसके अतिरिक्त ऊतक तरल में लवणों और जल की मात्रा का नियन्त्रण भी करते हैं। शरीर में जल की मात्रा के बढ़ जाने अर्थात् शरीर के तरल की परासरणीयता (osmotality) के कम हो जाने पर मूत्र पतला (तनु) हो जाता है और उसकी मात्रा बढ़ जाती है। शरीर में जल की कमी होने पर अर्थात् शरीर के ऊतक तरल की परासरणीयता के बढ़ जाने पर मूत्र गाढ़ा हो जाता है और इसकी मात्रा कम हो जाती है। मूत्र की मात्रा का नियन्त्रण मुख्यतः ऐल्डोस्टेरॉन (aldosterone) तथा एण्टीडाइयूरेटिक (antidiuretic hormone, ADH) द्वारा होता है। ऐल्डोस्टेरॉन Na+ के पुनरावशोषण को बढ़ाता है, जिससे अन्त:वातावरण में Na+ की उपयुक्त मात्रा बनी रहे। एण्टीडाइयूरेटिक ( ADH) या वैसोप्रेसिन (vasopressin) मूत्र के तनुकरण या सान्द्रण का प्रमुख नियन्त्रक होता है। परासरण नियमन प्रक्रिया द्वारा जीवधारी के शरीर में परासरणीयता (osmotality) को नियन्त्रित रखा जाता है।


प्रश्न 9. स्थतीय प्राणी सामान्यतया यूरिया उत्सर्जी या यूरिक अम्ल उत्सर्जी होते हैं तथा अमोनिया उत्सर्जी नहीं होते हैं, क्यों?

उत्तर

प्रोटीन्स के पाचन के फलस्वरूप ऐमीनों अम्ल प्राप्त होते हैं। जीवधारी आवश्यकता से अधिक ऐमीनो अम्लों का विअमोनीकरण या अमीनोहरण (deamination) करते हैं। इससे कीटो समूह (Keto group) एवं ऐमीनो समूह से अमोनिया (ammonia) प्राप्त होती है। कीटो समूह का उपयोग अपचय (catabolism) के अन्तर्गत ऊर्जा उत्पादन में हो जाता है।

अमोनिया को जलीय जन्तुओं में उत्सर्जित कर दिया जाता है। यह जल में घुलनशील और विषैली होती है। इसको उत्सर्जित करने के लिए अधिक जल की आवश्यकता होती है। इसी कारण अमोनिया जलीय प्राणियों का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ है। अमोनिया उत्सर्जी स्थलीय जन्तुओं में अमोनिया को यकृत द्वारा यूरिया में बदल दिया जाता है। यूरिया जल में घुलनशील और अमोनिया की तुलना में बहुत कम विषैला या हानिकारक होता है। अतः अधिकांश स्थलीय जन्तु यूरिया उत्सर्जी (ureotelic) होते हैं; जैसे—- अनेक उभयचर तथा स्तनी प्राणी

शुष्क परिस्थितियों में रहने वाले जन्तु; जैसे— सरीसृप एवं पक्षी वर्ग के सदस्यों में जल की कमी बनी रहती है। जल संचय के लिए ये प्राणी यूरिया को यूरिक अम्ल (uric acid) के रूप में उत्सर्जितं करते हैं। यूरिक अम्ल जल में अघुलनशील होता है। यह विषैला नहीं होता। इसे मल के साथ त्याग दिया जाता है। सरीसृप, पक्षी, कीट आदि यूरिक अम्ल उत्सर्जी (uricotelic) होते हैं।


प्रश्न 10. वृक्क के कार्य में जक्सटा गुच्छ उपकरण (JGA) का क्या महत्त्व है?

उत्तर

जक्सटा गुच्छ उपकरण (Juxta glomerular apparatus, JGA) की उत्सर्जन में जटिल नियमनकारी भूमिका है। JGA की विशिष्ट कोशिकाएँ केशिकागुच्छ निस्यंदन का स्वनियमन स्वयं वृक्क द्वारा उत्पन्न दाबक क्रियाविधि (renal pressure mechanism) की उपस्थिति के कारण होता है। इसकी खोज टाइगरस्टीट और बर्गमन (Tigersteat and Bergman, 1898) ने की। JGA की विशिष्ट कोशिकाओं से रेनिन हॉर्मोन स्रावित होता है। Na+ की कम सान्द्रता या निम्न केशिकागुच्छ निस्यंदन दर या निम्न केशिकागुच्छ दाब (glomerular pressure) के कारण रेनिन रक्त में उपस्थित एन्जियोटेंसिनोजन (angiotensinogen) को एन्जियोटेन्सिन-I (angiotensin-I) और बाद में एन्जियोटेन्सिन-II (angiotensin - II) में बदलता है। एन्जियोटेन्सिन- II एक प्रभावकारी वाहिका संकीर्णक (vasoconstrictor) का कार्य करता है, जो गुच्छीय रुधिर दाब तथा जी०एफ०आर० (glomeruler filtration rate, GFPR) को बढ़ा देता है।

एन्जियोटेन्सिन-II अधिवृक्क वल्कुट को ऐल्डोस्टेरॉन (aldosterone) हॉर्मोन के स्त्रावण को प्रेरित करता है। ऐल्डोस्टेरॉन स्रावी नलिका के दूरस्थ भाग में Na + तथा जल के पुनरावशोषण को बढ़ाता है। इससे रक्त दाब तथा जी०एफ०आर० में वृद्धि होती है। यह जटिल क्रियाविधि रेनिन एन्जियोटेन्सिन (renin angiotensin mechanism) कहलाती है।


प्रश्न 11. नाम का उल्लेख कीजिए-

(अ) एक कशेरुकी जिसमें ज्वाता कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जन होता है।

(ब) मनुष्य के वृक्क के वत्कुट के भाग जो मध्यांश के पिरामिड के बीच धँसे रहते हैं।

(स) हेनले लूप के समानान्तर उपस्थित केशिका का लूप।

उत्तर

(अ) सेफेलोकॉडेंट (एम्फीऑक्सस),

(ब) बर्टिनी के स्तम्भ,

(स) वासा रेक्टा।


प्रश्न 12. रिक्त स्थान भरिए-

(अ) हेनले लूप की आरोही भुजा जल के लिए _____ जबकि अवरोही भुजा इसके लिए ______ है।

(ब) वृक्क नलिका के दूरस्थ भाग द्वारा जल का पुनरावशोषण ______ 'हार्मोन द्वारा होता है।

(स) अपोहन द्रव में ______ पदार्थ के अलावा रक्त प्लाज्मा के अन्य सभी पदार्थ उपस्थित होते हैं।

(द) एक स्वस्थ वयस्क मनुष्य द्वारा औसतन ______ ग्राम यूरिया का प्रतिदिन उत्सर्जन होता है।

उत्तर

(अ) हेनले लूप की आरोही भुजा जल के लिए अपारगम्य जबकि अवरोही भुजा इसके लिए पारगम्य है।

(ब) वृक्क नलिका के दूरस्थ भाग द्वारा जल का पुनरावशोषण ADH हार्मोन द्वारा होता है।

(स) अपोहन द्रव में नाइट्रोजनी व्यर्थ पदार्थ के अलावा रक्त प्लाज्मा के अन्य सभी पदार्थ उपस्थित होते हैं।

(द) एक स्वस्थ वयस्क मनुष्य द्वारा औसतन 25-30 ग्राम यूरिया का प्रतिदिन उत्सर्जन होता है।

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