NCERT Solutions for Chapter 2 राजा, किसान और नगर Class 12 History
एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter 2 राजा, किसान और नगर Class 12 इतिहास
उत्तर दीजिये
प्रश्न 1. आरंभिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाणों की चर्चा कीजिए। हड़प्पा के नगरों के प्रमाण से ये प्रमाण कितने भिन्न हैं?
उत्तर
यद्यपि इनमें से अधिकांश स्थलों पर व्यापक रूप से खुदाई करना संभव नहीं है, क्योंकि आज भी इन क्षेत्रों में लोग रहते हैं । हड़प्पा शहरों में खुदाई तुलनात्मक रूप से आसान थी। कमियों के बावजूद, इस काल से विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों को बरामद किया गया है जो इस काल के के शिल्प कौशल पर प्रकाश डालती हैं। इनमें उत्कृष्ट श्रेणी के मिट्टी के कटोरे और थालियाँ मिली हैं जिन पर चमकदार कलई चढ़ी है। इन्हें उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्रा कहा जाता है। संभवतः इनका उपयोग अमीर लोग किया करते होंगे। साथ ही सोने चाँदी, कांस्य, ताँबे, हाथी दाँत, शीशे जैसे तरह-तरह के पदार्थों के बने गहने, उपकरण, हथियार, बर्तन, सीप और पक्की मिट्टी मिली हैं। यह संभावना है कि शिल्पकारों ने बढ़ती मांगों को पूरा करने के लिए लोहे के उपकरणों की एक श्रृंखला का उपयोग किया था लेकिन हड़प्पा शहरों में लोहे के उपकरणों का कोई उपयोग नहीं किया गया था।
प्रश्न 2. महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
महाजनपद की प्रमुख विशेषताएँ:
- महाजनपद का विकास 600 ई०पू० से 320 ई०पू० के बीच हुआ।
- महाजनपद की संख्या 16 थी। इनमें से लगभग 12 राजतंत्रीय राज्य और 4 गणतंत्रीय राज्य थे।
- महाजनपदों को प्रायः लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है।
- ज्यादातर महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में अनेक लोगों का समूह शासन करता था, इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। महावीर और बुद्ध दोनों गण से आते थे।
- गणराज्यों में भूमि सहित अन्य आर्थिक स्रोतों पर गण के राजाओं का सामूहिक नियंत्रण होता था।
- प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी जो प्रायः किलेबंद होती थी। किलेबंद राजधानियों के रखरखाव, प्रारंभिक सेनाओं और नौकरशाहों के लिए आर्थिक स्रोत की ज़रूरत होती थी।
- महाजनपदों में ब्राह्मणों ने लगभग छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व से संस्कृत भाषा में धर्मशास्त्र नामक ग्रंथों की रचनाएँ शुरू कीं। अन्य लोगों के लिए नियमों का निर्धारण किया गया।
- शासकों का काम किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेट वसूलना माना जाता था। संपत्ति जुटाने का एक वैध उपाय पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करके धन इकट्ठा करना भी माना जाता था।
- धीरे-धीरे कुछ राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तंत्र तैयार कर लिए। बाकी राज्य अब भी सहायक सेना पर निर्भर थे जिन्हें प्रायः कृषक वर्ग से नियुक्त किया जाता था।
प्रश्न 3. सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण इतिहास-कार केसे करते हैं?
उत्तर
इतिहासकारों ने सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण करने के लिए कई तरह के स्रोतों का प्रयोग किया है। जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं-
- समकालीन कृतियाँ जैसे मेगास्थनीज के लेख, अर्थशास्त्र (जिसके कुछ भाग की रचना चाणक्य द्वारा की गई थी ) पौराणिक और जैन साहित्य एवं संस्कृत साहित्यिक रचनाएं, पत्थरों और स्तंभों पर मिले अशोक के अभिलेख।
- कई नगरों में छोटे दानात्मक अभिलेख प्राप्त होते हैं। इनमें दाता के नाम के साथ-साथ प्रायः उसके व्यवसाय का भी उल्लेख होता है। इनमें नगरों में रहने वाले धोबी,बुनकर, लिपिक, बढ़ई, कुम्हार, स्वर्ण-कार, लौहार, अधिकारी, धार्मिक गुरु, व्यापारी और राजाओं के बारे में विवरण लिखे होते हैं।
प्रश्न 4. पांड्य सरदार (स्रोत 3) को दी जाने वाली वस्तुओं की तुलना दंगुन गाँव (स्रोत 8) की वस्तुओं कीजिए। आपको क्या समानताएँ और असमानताएँ दिखाई देती है
उत्तर
पांड्य सरदार को दी गई चीजों की सूची में हाथी दाँत, सुगंधित लकड़ी, हिरण के बाल से बने पंखे, शहद, चंदन, लाल गेरू, सुरमा, हल्दी, इलायची, काली मिर्च, इत्यादि जैसी चीजें शामिल थीं। वे नारियल, आम, औषधीय पौधे, फल, प्याज, गन्ना, फूल, एस्का नट, केले, बेबी टाइगर, शेर, हाथी, बंदर, भालू, हिरण, कस्तूरी मृग, लोमड़ी, मोर, कस्तूरी बिल्ली, जंगली मुर्गे, बोलने वाले तोते, आदि भी लाए थे। दंगुन गाँव में पैदा होने वाली चीजें घास, नीम की खाल, लकड़ी का कोयला, किण्वित शराब, नमक, दूध और फूल, खनिज, आदि थे। दोनों में एकमात्र समानता फूल हैं ।
प्रश्न 5. अभिलेखशास्त्रियों की कुछ समस्याओं की सूची बनाइए ।
उत्तर
अभिलेखशात्री वह व्यक्ति होता है शिलालेखों का अध्ययन करता है। अभिलेखशास्त्रिायों के सामने आने वाली समस्याएं हैं: कभी-कभी अक्षरों को हलके ढंग से उत्कीर्ण किया जाता है जिन्हें पढ़ पाना मुश्किल होता है। कभी-कभी अभिलेख नष्ट भी हो सकते हैं जिनसे अक्षर लुप्त हो जाते हैं। अभिलेखों के शब्दों के वास्तविक अर्थ के बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान हो पाना सदैव सरल नहीं होता क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशेष स्थान या समय से संबंधित होते हैं। शिलालेखों की सामग्री लगभग उस व्यक्ति या व्यक्तियों के परिप्रेक्ष्य को दर्शाती है जो उन्हें कमीशन करते थे।
निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए
प्रश्न 6. मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए । अशोक के अभिलेखों में इनमें से कौन- कौन से तत्वों के प्रमाण मिलते हैं?
उत्तर
चंद्र-गुप्त मौर्य मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे। उनका शासन पश्चिमोत्तर में अफ़ग़ानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था।
मौर्य प्रशासन की मुख्य विशेषताएँ हैं :
• मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी और मौर्य साम्राज्य के चार प्रांतीय केंद्र तक्षशिला, उज्जयिनी, तोसलि और सुवर्णगिरि थे ।
• राजधानी और प्रांतीय केंद्रों के आसपास के क्षेत्रों में प्रशासनिक नियंत्रण सबसे मजबूत था ।
• मेगस्थनीज ने सैन्य गतिविधियों के समन्वय के लिए छः उप-समितियों वाली समिति का उल्लेख किया है। उपसमितियाँ एवं उनकी गतिविधियाँ इस प्रकार है:
- पहली समिति नौसेना की देखभाल करती थी ।
- दुसरी समिति परिवहन और प्रावधानों का प्रबंधन करती थी ।
- तीसरी समिति पैदल सैनिकों के लिए जिम्मेदार थी।
- चौथी समिति घोड़ों के लिए जिम्मेदार थी
- पाँचवीं समिति रथों के लिए जिम्मेदार थी।
- छठी समिति हाथियों के लिए जिम्मेदार थी ।
• चन्द्र-गुप्त मौर्य के पौत्र अशोक ने धम्म का प्रचार करके अपने साम्राज्य को एक साथ रखने की कोशिश की। धम्म सिद्धांत या लोगों के लिए नैतिक आचार संहिता का समूह था ।
• उनके अनुसार, यह इस संसार में और इसके बाद के संसार में लोगों की भलाई सुनिश्चित करेगा। धम्म के संदेश के प्रसार के लिए जिन विशेष अधिकारियों को नियुक्त किया गया था उन्हें धम्म- महामत्ता के रूप में जाना जाता था।
• एक मजबूत सड़क नेटवर्क था जो लोगों और सामानों की आवाजाही सुगम बनता था।
• अशोक ने अपने संदेशों को अपनी प्रजा और अधिकारियों के लिए पत्थर की सतहों - प्राकृतिक चट्टानों और साथ ही स्तंभों पर अंकित कराया, उन्होंने शिलालेखों का उपयोग यह घोषित करने के लिए किया कि वे धम्म को क्या समझते हैं उनके अनुसार इसमें बड़ों के प्रति सम्मान, ब्राह्मणों के प्रति उदारता और सांसारिक जीवन का त्याग करने वालों, दासों और नौकरों के साथ विनम्रता से व्यवहार करना और स्वयं के अलावा अन्य धर्मों और परंपराओं के प्रति सम्मान शामिल था ।
प्रश्न 7. यह बीसवीं शताब्दी के एक सुविख्यात अभिलेखशास्त्री, डी सी. सरकार का वक्तव्य है: भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई पक्ष नहीं है जिसका प्रतिबं अभिलेखों में नहीं है: चर्चा कीजिए ।
उत्तर
सुप्रसिद्ध अभिलेखशास्त्री डी०सी० सरकार ने मत व्यक्त किया है कि अभिलेखों से भारतीयों के जीवन, संस्कृति और सभी गतिविधियों से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है। अभिलेखों से मिलने वाली जानकारी का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार से है:
- शासकों के नाम अभिलेखों से हमें राजाओं के नाम का पता चलता है। साथ ही हम उनकी उपाधियों के बारे में भी जान पाते हैं। उदाहरण के लिए अशोक का नाम अभिलेखों में आया है तथा उसकी दो उपाधियों (देवनाम्प्रिय तथा पियदस्स) का भी उल्लेख मिलता है। समुद्रगुप्त, खारवेल, रुद्रदामा आदि के नाम भी अभिलेखों में आए हैं।
- राज्य-विस्तार: उत्कीर्ण अभिलेखों की स्थापना वहीं पर की जाती थी जहाँ पर उस राजा का राज्य विस्तार होता था । उदाहरण के लिए मौर्य साम्राज्य का विस्तार जानने के लिए हमारे पास सबसे प्रमुख स्रोत अशोक के अभिलेख हैं।
- राजा का चरित्र: ये अभिलेख शासकों के चरित्र का चित्रण करने में भी सहायक हैं। उदाहरण के लिए अशोक जनता के बारे में क्या सोचता था। अनेक विषयों पर उसने स्वयं के विचार व्यक्त किए हैं। इसी प्रकार समुद्रगुप्त के चरित्र चित्रण के लिए प्रयाग प्रशस्ति उपयोगी है। यद्यपि इनमें राजा के चरित्र को बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया है।
- काल: निर्धारण अभिलेख की लिपि की शैली तथा भाषा के आधार पर शासकों के काल का भी निर्धारण कर लिया जाता है।
- भाषा व धर्म के बारे में जानकारी: अभिलेखों की भाषा से हमें उस काल के भाषा के विकास का पता चलता है। इसी प्रकार अभिलेखों पर धर्म संबंधी जानकारी भी प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, अशोक के धम्म की जानकारी के स्रोत उसके अभिलेख हैं। भूमि अनुदान पत्रों से भी धर्म व संस्कृति के बारे में जानकारी मिलती है।
- कला: अभिलेख कला के भी नमूने हैं। विशेषतौर पर मौर्यकाल के अभिलेख विशाल पाषाण खंडों को पालिश कर चमकाया गया तथा उन पर पशुओं की मूर्तियाँ रखवाई गईं। ये मौर्य कला के उकृष्ट नमूने हैं।
- सामाजिक वर्गों की जानकारी: अभिलेखों से हमें तत्कालीन वर्गों के बारे में भी जानकारी मिलती है। हमें पता चलता है कि शासक एवं राज्याधिकारियों के अलावा नगरों में व्यापारी व शिल्पकार (बुनकर, सुनार, धोबी, लौहकार, बढ़ई) आदि भी रहते थे।
- भू-राजस्व व प्रशासन: अभिलेखों से हमें भू-राजस्व प्रणाली तथा प्रशासन के विविध पक्षों की जानकारी भी प्राप्त होती है। विशेषतौर पर भूदान पत्रों से हमें राजस्वा की जानकारी मिलती है। साथ ही जब भूमि अनुदान राज्याधिकारियों को दिया जाने लगा तो धीरे-धीरे स्थानीय सामंतों की शक्ति में वृद्धि हुई। इस प्रकार भूमि अनुदान पत्र राजा की घटती शक्ति को छुपाने के प्रयास की जानकारी भी देते हैं।
उक्त सभी बातों के साथ हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इन अभिलेखों का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिए। अभिलेखों की सीमाएँ भी होती हैं । विशेषतौर पर जनसामान्य से संबंधित जानकारी इन अभिलेखों में कम पाई जाती है। तथापि अभिलेखों से समाज के विविध पक्षों से काफी जानकारी मिलती है।
प्रश्न 8. उत्तर-मौर्य काल में विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा कीजिए ।
उत्तर
उत्तर-मौर्य काल में विकसित राजाओं की विचारधारा देवीय राजा सिद्धांत की थी। राजाओं ने विभिन्न देवताओं के साथ अपने आप को जोड़कर स्वयं को ऊंचा दर्जा देना शुरू कर दिया ।
इस तरह की धारणा को निम्न उदाहरण के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है:
कुषाण: इन्होंने मध्य एशिया से लेकर उत्तर-पश्चिम भारत तक फैले एक विशाल राज्य पर शासन किया। इनका इतिहास शिलालेखों और लिखित परंपराओं से पुनर्निमित किया गया है । मथुरा (उत्तर प्रदेश) के पास स्थित एक मंदिर में कुषाण शासकों की विशाल प्रतिमाएँ स्थापित की गई हैं। इसी तरह की मूर्तियां अफग़ानिस्तान के एक धर्म-स्थल में भी पाई गई हैं। कई कुषाण शासकों ने देव पुत्र या 'देवता के पुत्र शीर्षक को भी अपनाया ।
गुप्तः गुप्त साम्राज्य सहित कई बड़े साम्राज्यों के साक्ष्य मिलते हैं। इनमें से कई साम्राज्य सामंतों पर निर्भर थे। अपना निर्वाह स्थानीय संसाधनों द्वारा करते थे जिसमें भूमि पर नियंत्रण भी शामिल था। वे शासकों का आदर करते थे और उनकी सैनिक सहायता भी करते थे। जो सामंत शक्तिशाली होते थे वे राजा भी बन जाते थे और जो राजा दुर्बल होते थे, वे बड़े शासकों के अधीन हो जाते थे। गुप्त शासकों का इतिहास साहित्य, सिक्कों और अभिलेखों की सहायता से लिखा गया है। साथ ही कवियों द्वारा अपने राजा या स्वामी की प्रशंसा में लिखी प्रशस्तियाँ भी उपयोगी रही हैं। उदाहरण के तौर पर, इलाहाबाद स्तंभ अभिलेख के नाम से प्रसिद्ध प्रयाग प्रशस्ति की रचना हरिषेण जो स्वयं गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के राज-कवि थे, ने संस्कृत में की थी।
प्रश्न 9. वर्णित काल में कृषि के तौर-तरीकों में किस हद तक परिवर्तन हुए?
उत्तर
करों की बढ़ती मांग के कारण छठी शताब्दी ई. पू. से कृषि प्रथाओं महान परिवर्तन हुए। कई रणनीतियों को अपनाया गया जिसका उद्देश्य उत्पादन को बढ़ाना था ताकि मांगों को पूरा किया जा सके।
इन रणनीतियों में से कुछ हैं:
- कृषि के लिए हल का प्रयोग: उपज बढ़ाने का एक तरीका हल का प्रचलन था जो छठी शताब्दी ई.पू. से ही गंगा और कावेरी की घाटियों के उर्वर कछारी क्षेत्र में फैल गया था। जिन क्षेत्रों में भारी वर्षा होती थी वहाँ लोहे के फाल वाले हलों के माध्यम से उर्वर भूमि की जुताई की जाने लगी। इसके अलावा गंगा की घाटी में धान की रोपाई की वजह से उपज में भारी वृद्धि होने लगी। हालाँकि किसानों को इसके लिए कमर-तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी ।
- कुदाल का प्रयोग: पंजाब और राजस्थान जैसी अर्धशुष्क जमीन वाले क्षेत्रों में और उपमहाद्वीप के पूर्वोत्तर और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों ने खेती के लिए कुदाल का उपयोग किया, जो ऐसे इलाको के लिए कहीं अधिक उपयोगी थी।
- सिंचाई उपयोग: उपज बढ़ाने का एक और तरीका कुओं, तालाबों और कहीं-कहीं नहरों के माध्यम से सिंचाई करना था।
मानचित्र कार्य
प्रश्न 10. 1 और 2 की तुलना कीजिए और उन महाजनपदों की सूची बनाइए जो मौर्य साम्राज्य में शामिल रहे होंगे। क्या इस क्षेत्र में अशोक के कोई अभिलेख मिले हैं?
उत्तर
उन सभी महाजनपदों में अशोक के शिलालेख मिले हैं जिनको मौर्य साम्राज्य में शामिल किया गया था
- अश्मका (सन्नती),
- गांधार (कंधार),
- मगध (सारनाथ),
- कुरु (मेरठ),
- कंबोज,
- शूरसेन,
- अवन्ति,
- वत्स,
- मत्स्य,
- चेदी,
- अंग,
- विदेह,
- पांचाल,
- वज्जि,
- काशी,
- मल्ल