NCERT Solutions for Chapter समय की शुरुआत से Class 11 History

Chapter समय की शुरुआत से NCERT Solutions for Class 11 History (Vishwa Itihas ke Kuchh Vishaya) are prepared by our expert teachers. By studying this chapter, students will be to learn the questions answers of the chapter. They will be able to solve the exercise given in the chapter and learn the basics. It is very helpful for the examination. 

एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter समय की शुरुआत से Class 11 इतिहास

अभ्यास


प्रश्न 1. नीचे दिए गए सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था (Positive Feedback Mechanism) को दर्शाने वाले आरेख को देखिए। क्या आप उन निवेशों (inputs) की सूची दे सकते हैं, जो औज़ारों के निर्माण में सहायक हुए? औज़ारों के निर्माण से किन-किन प्रक्रियाओं को बल मिला?

उत्तर

सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था:

  1. किसी बॉक्स विशेष की ओर इंगित तीर के निशान उन प्रभावों को बताते हैं जिनकी वजह से कोई विशेषता विकसित हुई।
  2. किसी बॉक्स से दूर इंगित करने वाले तीर के निशान यह बताते हैं कि बॉक्स में बताए गए विकास-क्रम ने अन्य प्रक्रियाओं को कैसे प्रभावित किया। प्रारम्भिक मानव की प्रजाति को उनकी खोपड़ी के आकार व जबड़े की विशिष्टता के आधार पर बाँटा गया है। ये विशेषताएँ सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था अर्थात् वांछित परिणाम प्राप्त होने से विकसित हुई होंगी।

उपरोक्त सकारात्मक प्रतिपुष्टि व्यवस्था आरेख में औज़ारों के निर्माण में चार महत्त्वपूर्ण बिन्दु प्रदर्शित किए गए हैं:

  • मस्तिष्क के आकार और उसकी क्षमता में वृद्धि।
  • आँखों से निगरानी, भोजन और शिकार की तलाश में लम्बी दूरी तक भ्रमण करना ।
  • औजारों के इस्तेमाल के लिए हाथों का स्वतन्त्र (मुक्त) होना।
  • सीधे खड़े होकर चलना ।

औजार बनाने की कला सीखना मानव की एक महान उपलब्धि थी। इसके साथ-ही-साथ अनेक प्रक्रियाओं को प्रोत्साहन मिला जिससे अनेक लाभ हुए:

  • औज़ारों के निर्माण से आदिमानव भयानक जंगली जानवरों से अपनी रक्षा करने में समर्थ हो सका अन्यथा वेजानवर उसका शिकार पहले ही कर जाते।
  • औजारों की सहायता से खेती करना व शिकार करना आसान हो गया ।
  • औजारों के निर्माण के साथ-ही-साथ आदिमानव के पहनावे में सुधार हुआ और वह जानवरों की खाल को | पहनने लगा। सुई का आविष्कार हुआ। निवास स्थल बनाने में औज़ारों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • औजारों की सहायता से मनुष्य ने मिट्टी के बर्तन बनाना सीख लिया। आजारों के निर्माण की प्रक्रिया ने वास्तव में मानव के रहन-सहन या खान-पान के स्तर को ही एकदम बदलकर रख दिया।

मानव द्वारा पत्थर के औजार बनाने व प्रयोग करने के प्राचीनतम साक्ष्य इथियोपिया और केन्या के पुरा- स्थलों से प्राप्त हुए हैं। ऐसा माना जा रहा है कि पत्थर के औजार सर्वप्रथम आस्ट्रेलोपिथिकस मानव ने बनाए व प्रयोग किए होंगे। संभव है कि स्त्रियाँ अपने और अपने बच्चों के भोजन प्राप्त करने के लिए कुछ खास औजार बनाती और इस्तेमाल करती रही होंगी।


प्रश्न 2. मानव और लंगूर तथा वानरों जैसे स्तनपायियों के व्यवहार तथा शरीर रचना में कुछ समानताएँ पायी जाती हैं। इससे यह संकेत मिलता है कि संभवतः मानव का क्रमिक विकास वानरों हुआ।

(क) व्यवहार और

(ख) शरीर रचना शीर्षकों के अंतर्गत दो अलग-अलग स्तम्भ बनाइए और उन समानताओं की सूची दीजिए। दोनों के बीच पाए जाने वाले उन अंतरों का भी उल्लेख कीजिए जिन्हें आप महत्त्वपूर्ण समझते हैं?

उत्तर

मानव और लंगूर तथा वानर जैसे स्तनपायियों के व्यवहार तथा शरीर रचना में कुछ समानताएँ पायी जाती हैं जिससे यह संकेत मिलता है कि संभवतः मानव का क्रमिक विकास वानरों से हुआ है। व्यवहार तथा शरीर रचना के अंतर्गत।

निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं:

  1. व्यवहार के स्तर पर वानर' यानी 'एप' (Ape) होमिनॉइड उपसमूह का जीव है। 'होमिनिड' वर्ग 'होमिनॉइड' उपसमूह से विकसित हुए हैं। इनमें परस्पर समानताएँ होते हुए भी अनेक बड़े अंतर पाए जाते हैं। होमिनॉइड का मस्तिष्क होमिनिड की तुलना में छोटा था। वे चौपाया थे अर्थात् चारों पैरों के बल चलते थे। उनके शरीर का अग्रभाग व अगले दोनों पैर लचकदार होते थे। होमिनिड सीधे खड़े होकर दोनों पैरों पर चलते थे। होमिनिड के हाथों की बनावट विशेष प्रकार की थी जिससे वे हथियार (औज़ार) बना व प्रयोग कर सकते थे।
  2. शरीर रचना के स्तर पर - मानव के प्रारम्भिक स्वरूपों में उसके लक्षण आज भी शेष हैं। मानव के आद्य रूप में वानर के अनेक लक्षण बरकरार हैं; जैसे-होमो की तुलना में मस्तिष्क को अपेक्षाकृत छोटा होना, पिछले दाँत बड़े होना व हाथों की विशेष दक्षता वे सीधे खड़े होकर चलने की क्षमता अधिक न थी, क्योंकि वह अपना अधिकांश समय पेड़ों पर गुजारता था । पेड़ों पर जीवन व्यतीत करने के कारण उसमें अनेक विशेषताएँ आज भी मौजूद हैं; जैसे-आगे के अंगों का लम्बा होना, हाथ और पैरों की हड्डियों का मुड़ा होना और टखने के जोड़ों का घुमावदार होना। प्रारम्भिक मानव की प्रजाति को उसकी खोपड़ी के आकार व जबड़े की विशिष्टता के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। वानर, लंगूर व मानव आदि प्राइमेट उपसमूह के अंतर्गत आते हैं।

शारीरिक स्तर पर समानताएँ :

  • दोनों ही प्राइमेट उपसमूह के जीव हैं।
  • मानव, वानर व लंगूर तीनों के शरीर पर बाल होते हैं।
  • बच्चे पैदा होने से पहले अपेक्षाकृत लंबे समय तक माता के पेट में पलते हैं।
  • मादाओं में बच्चे को दूध पिलाने के लिए स्तन ग्रन्थियाँ होती हैं।
  • इन प्राणियों के दाँतों की बनावट भिन्न होती है।


व्यावहारिक स्तर पर समानताएँ:

  • मानव व वानर अपने बच्चों को उठाकर चलते हैं।
  • दूसरे जीवों की अपेक्षा समझने की शक्ति ज्यादा होती है।
  • अपने शरीर को परिस्थिति के अनुकूल बनाने में समर्थ होते हैं।
  • मानव और वानर दोनों ही अपने पिछले पैरों पर खड़े हो सकते हैं।


मानव व वानर के मध्य पाए जाने वाले अंतर:

  • मानव अपने पैर पर ज्यादा समय तक खड़ा हो सकता है जबकि वानर ज्यादा समय तक ऐसा नहीं कर सकता।
  • मानव का मस्तिष्क आकार में बड़ा होता है जबकि वानरों का जबड़ा काफी लम्बा होता है।
  • मनुष्य में समझने की शक्ति ज्यादा होती है जबकि वानरों में अपेक्षाकृत समझने की शक्ति कम होती है।
  • मानव दो पैरों पर चलता है जबकि वानर चार पैरों से चलता है।


प्रश्न 3. मानव उद्भव के क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल के पक्ष में दिए गए तर्कों पर चर्चा कीजिए। क्या आपके विचार से यह मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का युक्तियुक्त स्पष्टीकरण देता है?

उत्तर

आधुनिक मानव का उद्भव कहाँ हुआ और उसकी उत्पत्ति का केन्द्र कहाँ था? आज भी इसकी खोज करनी जटिल समस्या है। इस प्रश्न पर आज भी वाद-विवाद जारी है।

परन्तु इस समस्या के समाधान हेतु दो मत उभरकर हमारे सामने आए है:

  1. क्षेत्रीय निरंतरता मॉडल: इस मत के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति अलग-अलग स्थानों पर हुई है। विभिन्न प्रदेशों में रहने वाले होमो सेपियंस का आधुनिक मानव के रूप में विकास धीरे-धीरे अलग-अलग रफ्तार से हुआ। परिणामतः आधुनिक मानव दुनिया के भिन्न-भिन्न स्थानों में विभिन्न रूपों में दिखाई दिया।
  2. प्रतिस्थापन मॉडल: इस मत के अनुसार मनुष्य की उत्पत्ति एक ही स्थान पर यानी अफ्रीका में हुई थी। वहाँ से धीरे-धीरे संसार के कई भागों में फैलती गयी। क्षेत्रीय निरन्तरता मॉडल पुरातात्विक साक्ष्य का विश्वासोत्पादक स्पष्टीकरण देता है। आधुनिक मानव के जीवाश्म जो इथियोपिया में अनेक स्थान पर मिले हैं, इस मत का समर्थन करते हैं। इस मत के मानने वालों की मुख्य विचारधाराएँ निम्नलिखित हैं मानव के सभी पुराने रूप चाहे वे कहीं भी थे, बदल गए और उनका स्थान पूरी तरह आधुनिक मानव ने ले लिया। ऐसे विद्वानों का विचार है कि आधुनिक मानव में अत्यधिक समानता इसलिए पाई जाती है कि उनके पूर्वज एक ही क्षेत्र यानी अफ्रीका में उत्पन्न हुए और वहीं से अन्य स्थानों को गए । विद्वानों का एक तर्क यह है कि आज के मनुष्यों के लक्षण भिन्न-भिन्न हैं, क्योंकि उनके मध्य क्षेत्रीय अन्तर विद्यमान है। उपर्युक्त विभिन्नताओं के कारण एक ही क्षेत्र में पहले से रहने वाले एरेक्टस व होमो हाइडलबर्गेसिस समुदायों में पाए जाने वाले अन्तर आज भी विद्यमान हैं।


प्रश्न 4. इनमें से कौन-सी क्रिया के साक्ष्य व प्रमाण पुरातात्त्विक अभिलेख में सर्वाधिक मिलते हैं-

(क) संग्रहण,

(ख) औज़ार बनाना,

(ग) आग का प्रयोग।

उत्तर

संग्रहण (Gathering), आग का प्रयोग (The use of fire) व औजार बनाने (Tool making) में से औजार बनाने के साक्ष्य पुरातात्त्विक अभिलेख में सर्वोत्कृष्ट रीति से दिए गए हैं।

पत्थर के औजार बनाने व उनके इस्तेमाल किए जाने के प्राचीन साक्ष्य इथियोपिया व केन्या के शोध (खोज) स्थलों से प्राप्त हुए हैं। संभावना व्यक्त की जाती है कि इन हथियारों, औजारों का प्रयोग सबसे पहले आस्ट्रेलोपिथिकस (Austrelopithecus) ने किया था। संग्रहण व आग के प्रयोग के उतने ज्यादा साक्ष्य प्राप्त नहीं होते जितने कि औजार बनाने के मिलते हैं। यह संभावना, प्रकट की जाती है। कि पत्थर के औजार स्त्री व पुरुष दोनों अपने-अपने प्रयोग के आधार पर बनाते थे। अनुमानतः स्त्रियाँ अपने और अपने बच्चों के लिए भोजन प्राप्त करने के उद्देश्य से कुछ विशेष प्रकार के औज़ारों को बनाती और इस्तेमाल करती थीं। लगभग 35,000 वर्ष पूर्व जानवरों को मारने के तरीके में सुधार हुआ। इस बात के प्रमाण हमें फेंककर मारने वाले भालों व तीर-कमान जैसे औज़ार के प्रयोग से मिलते हैं। भाला प्रक्षेपक यंत्र के प्रयोग से शिकारी लम्बी दूरी तक भाला फेंकने में समर्थ हुआ।

इस युग में पंच ब्लेड तकनीक की सहायता से निम्न प्रकार से पत्थर के औज़ारों को तैयार किया जाता होगा:

  • एक बड़े पत्थर के ऊपरी सिरे को पत्थर के हथौड़े की सहायता से हटाया जाता है।
  • इससे एक चपटी सतह तैयार हो जाती है जिसे प्रहार मंच यानी घन कहा जाता है।
  • फिर इस पर हड्डी या सींग से बने हुए पंच और हथौड़े की सहायता से प्रहार किया जाता है।
  • इससे धारदार पट्टी बन जाती है जिसका चाकू की तरह प्रयोग किया जा सकता है अथवा उनसे एक तरह की छेनियाँ बन जाती हैं जिनसे हड्डी, सींग, हाथीदाँत या लकड़ी को उकेरा जा सकता है।
  • ओल्डुवई से मिले आरम्भिक औजारों में एक औज़ार मँडासा भी है, जिसके शल्कों को निकालकर धारदार बना दिया गया है। यह एक प्रकार का हस्त- कुठार है। इन आरंभिक औजारों के आधार पर मानव प्राकृतिक वैज्ञानिकों ने प्रागैतिहासिक काल को तीन भागों में विभाजित किया है। जो निम्नलिखित हैं-
  • पुरापाषाण काल इस युग में पत्थर के औजार भद्दे, खुरदरे व बिना किसी नक्काशी आदि के होते थे। इस काल के औजारों में कुठार, रुखनी, मँड़ासे आदि प्रमुख हैं।
  • मध्य पाषाण काल इस युग में पत्थर के औजार का छोटे-छोटे रूपों में प्रयोग किया जाने लगा था । लघु किस्म के औजारों को अश्म कहते हैं। इस युग के औजारों में भाले व तीर-कमान आदि प्रमुख औजार हैं।
  • नव पाषाण काल या उत्तर पाषाण काल इस काल के औज़ार बड़े साफ, अच्छी तरह से घिसे हुए तथा नक्कासीदार होते थे। इस युग में हड्डयों व पत्थरों को चिकना व साफ करके औजार बनाने की कला विकसित हो चुकी थी । हँसिया इस युग का प्रमुख औज़ार है।

 

प्रश्न 5. भाषा के प्रयोग से (क) शिकार करने और (ख) आश्रय बनाने के काम में कितनी मदद मिली होगी? इस पर चर्चा कीजिए। इन क्रियाकलापों के लिए विचार सम्प्रेषण के अन्य किन तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता था?

उत्तर

हम जानते हैं कि सभी जीवित प्राणियों में मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो कि भाषा का प्रयोग करता है। भाषा यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है जिसके माध्यम से मनुष्य विचार-विनिमय करता है। भाषा के विकास पर कई विद्वानों के मत अलग-अलग हैं।

उनकी मान्यताएँ निम्नलिखित हैं:

  • होमिनिड भाषा में हाव-भाव या अंगविक्षेप (हाथों को हिलाना या संचालन) शामिल था।
  • उच्चरित भाषा से पूर्व गाने या गुनगुनाने जैसी मौखिक या अ-शाब्दिक संचार का प्रयोग होता था।
  • मनुष्य की बोलने की क्षमता का विकास या प्रारम्भ आह्वान या बुलाने की क्रिया से हुआ जैसा कि नर-वानरों में प्रायः देखा जाता है।

उच्चरित भाषा यानी बोली जाने वाली भाषा की उत्पत्ति कब हुई, यह निष्कर्ष देना भी कठिन कार्य है। विद्वानों की ऐसी विचारधारा है कि होमो हैबिलिस के मस्तिष्क में कुछ विशेषताएँ थीं जिनके कारण वह बोलने में समर्थ हुआ होगा। इस प्रकार संभवतः भाषा का विकास 20 लाख वर्ष पूर्व हुआ । स्वर-तंत्र के विकास (लगभग 200,000 वर्ष पूर्व) और मस्तिष्क में हुए परिवर्तन से भाषा के विकसित होने में मदद मिली। भाषा और कला का सम्बन्ध घनिष्ठ है। भाषा के साथ-साथ कला लगभग 40,000-35,000 वर्ष पूर्व विकसित हुई। कला व भाषा दोनों ही सम्प्रेषण अर्थात् विचाराभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम हैं। फ्रांस में स्थित लैसकॉक्स (Lascaux) और शोवे (Chauvet) की गुफाओं में व उत्तरी स्पेन में स्थित आल्टामीरा की गुफा में जानवरों की सैकड़ों चित्रकारियाँ पाई गई हैं, जोकि 30,000 से 12,000 वर्ष पूर्व चित्रित की गई थीं। इनमें गौरों (जंगली बैल), घोघों, पहाड़ी साकिन (बकरों), हिरनों, मैमथों, गैंडों, शेरों, भालुओं, चीतों, लकड़बग्घों व उल्लुओं के चित्र प्रमुख हैं। प्रारम्भिक मानव के जीवन में शिकार का ज्यादा महत्त्व था। इसी कारण जानवरों की चित्रकारियाँ धार्मिक क्रियाओं, रस्मों और जादू-टोनों से जुड़ी होती थीं। ऐसी भी प्रतीत होता है कि चित्रकारी ऐसी रस्मों को अदा करने के लिए की जाती थी जिससे कि शिकार करने में सफलता प्राप्त हो। विद्वानों की यह भी मान्यता है कि ये गुफाएँ ही प्रारम्भिक मानव की आपस में मिलने की जगहें थीं जहाँ पर छोटे-छोटे समूह एक-दूसरे से मिलते थे या एकत्रित होकर सामूहिक क्रियाकलाप करते थे। ऐसा भी पड़ता है। कि इन गुफाओं में ये समूह मिलकर शिकार की योजना बनाते रहे हों व शिकार की तकनीक पर चर्चा करते रहे हों, और ये चित्रकारियाँ आगामी पीढ़ियों को इन तकनीकों से ज्ञान प्राप्त करने लिए बनाई गई हों। अतः कहा जा सकता है कि चित्रकारी विचार सम्प्रेषण का एक सशक्त माध्यम के रूप में प्रयोग हुआ है। प्रारम्भिक समाज के बारे में जो विवरण दिया जाता है वह अधिकतर पुरातात्विक साक्ष्यों पर आधारित है। शिकार करने वाले वे खाद्य सामग्री तलाशने एवं बटोरने वाले समाज आज भी विश्व अनेक भागों में मौजूद हैं। उन समाजों में हादज़ा समूह प्रमुख है । कृषि के प्रारम्भ के साथ-साथ मानव ने अपनी झोंपड़ियों को खेतों के पास बनाना शुरू कर दिया। आरम्भ में मनुष्य लकड़ी व पत्तियों आदि की मदद से झोंपड़ी बनाता था, किन्तु बाद में वह कच्ची व पक्की ईंटों का भी प्रयोग घर बनाने में करने लगा था। प्राचीन झोंपड़ियों के अवशेष स्विट्जरलैंड (Switzerland) की एक झील में 1854 में मौजूद पाए गए। स्थायी निवास स्थान बनाना मानव की महान उपलब्धि थी और यह सब भाषा के विकास के बिना असंभव था किन्तु भाषा ने इन सब क्रियाओं को संभव बना दिया। प्रारंभ में मानव निस्संदेह बहुत कम ध्वनियों का प्रयोग करता होगा, लेकिन ये ध्वनियाँ ही आगे चलकर भाषा के रूप में विकसित हो गई होंगी। अत: भाषा का विकास आधुनिक मानव के विकास का दिलचस्प पहलू है।


प्रश्न 6. अध्याय के अंत में दिए गए कालानुक्रम में से किन्हीं दो घटनाओं को चुनिए और यह बताइए कि इसका क्या महत्त्व है?

उत्तर

कालानुक्रम एक में से दो घटनाओं का विवरण निम्नलिखित है:

  1. आस्ट्रेलोपिथिकस (Australopithecus): आस्ट्रेलोपिथिकस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'आस्ट्रल' अर्थात् 'दक्षिणी' और यूनानी भाषा के शब्द 'पिथिकस' यानी 'वानर' से मिलकर हुई है। आस्ट्रेलोपिथिकस प्रारम्भिक रूप में वानर के अनेक लक्षण मौजूद थे। इसका समय 56 लाख वर्ष पूर्व माना जाता है। प्रथम वनमानुष को आस्ट्रेलोपिथिकस कहा जाता है। वे पूर्वी अफ्रीका में पाए जाते थे। ये मनुष्य की तरह खड़े हो सकते थे। वे पत्थर के औजारों का प्रयोग व पशु जीवन व्यतीत करते थे। वे जंगली कीड़े-मकोड़े भी खाते थे।
  2. होमो (Homo): 'होमो' शब्द लैटिन भाषा का है। इसका अर्थ है-मानव । होमो के अन्तर्गत स्त्री व पुरुष दोनों आते हैं।

वैज्ञानिकों ने होमो की अनेक प्रजातियों को उनकी विशिष्टताओं के आधार पर विभाजित किया है, जो निम्नलिखित हैं:

(क) होमो हैबिलिस (Homo Habilis) - औजार बनाने वाला मानव।

(ख) होमो एरेक्टस (Homo Erectus) - सीधे खड़े होकर चलने वाला मानव ।

(ग) होमो सेपियंस (Homo Sapiens) - चिंतनशील, प्राज्ञ या आधुनिक मानव । होमो हैबिलिस के जीवाश्म

इथियोपिया में ओमो (Omo) और तंजानिया में ओल्डुवई गोर्ज (Olduvai Gorge) से प्राप्त हुए हैं। होमो एरेक्टस के जीवाश्म अफ्रीका के कूबीफ़ोरा (Koobi Fora) तथा पश्चिमी तुक़न (West Turkan) तथा केन्या (Kenya) और जावा के मोड जोकर्ता (Mod Jokerto) तथा संगीरन (Sangiran) में पाए गए थे। होमो सेपियंस जोकि आधुनिक मानव कहलाता है,

चिन्तनशील या प्राज्ञ प्राणी है। होमो सेपियंस 1.9 लाख वर्ष से 1.6 लाख वर्ष पूर्व के हैं। कालानुक्रम दो में से दो घटनाओं का विवरण निम्नलिखित है-

  1. दफ़नाने की प्रथा का प्रथम साक्ष्य - दफ़नाने की प्रथा का प्रथम साक्ष्य हमें 3,00,000 वर्ष पूर्व प्राप्त होता है। कुछ रीतियों से यह पता चलता है कि निअंडरथलैंसिस मानव शव को दफ़नाते थे। इससे यह प्रतीत होता है कि वे किसी धर्म में विश्वास रखते थे। निअंडरथलैंसिस काल के कब्रिस्तान के स्थल पर की गई खोजों से ऐसा भी ज्ञात होता है कि वे मृतक शरीर को रंगों से सजाते थे। वे शायद धार्मिक कारणों या सुन्दरता के लिए ऐसा करते थे। वे प्रथम मनुष्य थे जो मृत्यु के पश्चात् जीवन के संबंध में सोचते थे।
  2. निअंडरथल मानवों का लोप - निअंडरथल मनुष्य लगभग 130,000 से 35,000 वर्ष पूर्व तक यूरोप व पश्चिमी एवं मध्य एशिया में रहते थे। लेकिन 35,000 वर्ष पूर्व वे अचानक लुप्त हो गए। निअंडरथल मानव के लुप्त । होने के बारे में विभिन्न वैज्ञानिकों के अलग-अलग विचार हैं।

उनकी विचारधाराएँ निम्नवत् हैं:

(क) निअंडरथल मानव होमो सैपियंस द्वारा मार दिए गए।

(ख) निअंडरथल मानव ने दूसरे समूहों से विवाह कर लिए और इनकी जाति की अलग पहचान समाप्त हो गई। यह सभी सिद्धान्त काल्पनिक हैं। कोई भी विद्वान निश्चय से यह नहीं कह सकता कि यह जाति कब और क्यों समाप्त हुई।

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