NCERT Solutions for Chapter शासक और इतिवृत्त Class 12 History

Chapter शासक और इतिवृत्त NCERT Solutions for Class 12 History (Bhartiya Itihas ke Kuchh Vishaya - III) are prepared by our expert teachers. By studying this chapter, students will be to learn the questions answers of the chapter. They will be able to solve the exercise given in the chapter and learn the basics. It is very helpful for the examination. 

एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter शासक और इतिवृत्त Class 12 इतिहास

उत्तर दीजिए (लगभग 100 150 शब्दों में)


प्रश्न 1. मुगल दरबार में पांडुलिपि तैयार करने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

उत्तर

पांडुलिपियाँ हस्तलिखित किताबें होती थीं। इन्हें एक महत्वपूर्ण कार्य के रूप में देखा जाता था। इन्हें तैयार करने में अनेक लोगों का योगदान रहता था। कागज बनाने वाले पांडुलिपियों के लिए पृष्ठ तैयार करते थे, फिर सुलेखक साफ अक्षरों में लिखते थे। चित्रकार यथावत स्थानों पर चित्र बनाकर पृष्ठो का सौंदर्य बढ़ाते थे तो कोफ्तगर पृष्ठों को चमकाने का काम करते थे तथा अंत में जिल्दसाज सभी तैयार पृष्ठों को एकत्रित कर एक अलंकृत आवरण में जमा देते थे। सुलेखक नस्तलिक लिपि में लिखा करते थे, जिसे अकबर बहुत पसंद करते थे। लेखकों और चित्रकारों का दरबार में सम्मान भी किया जाता था परंतु अन्य लोगों यथा कोफ्तगर व जिल्दसाजों को ज्यादा सम्मान नहीं दिया जाता था।


प्रश्न 2. मुगल दरबार से जुड़े दैनिक कार्य और विशेष उत्सवों के दिनों ने किस तरह से बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया होगा?

उत्तर

मुगल बादशाह की तुलना ईश्वर से की जाती थी। राजा का दर्जा सबसे ऊपर होता था बादशाह के इस सत्ता के भाव को नित्य कर्म तथा उत्सवों की समय देखा जा सकता था। शासक का जन्मदिन और नौरोज मुख्य उत्सव होते थे। जन्मदिन के समय बादशाह को अनेक वस्तुओं से तोला जाता था और फिर बाद में उन वस्तुओं को प्रजा में बांट दिया जाता था । दरबार में बादशाह के सबसे पास बैठने वाले व्यक्ति को महत्वपूर्ण व्यक्ति समझा जाता था। शाहजहां की समय सत्कार के नए तरीके यथा जमीबोसी को अपनाया गया। सभी लोग जो राजा से मिलने आते थे, उन्हें उत्कृष्ट श्रेणी के उपहारों से बादशाह का अभिवादन करना होता था। अकबर ने झरोखा दर्शन की प्रथा शुरू की थी। इसमें बादशाह रोज सुबह सुबह प्रार्थना के बाद पूर्व दिशा में छोटे से झरोखे से प्रजा का दीदार करते थे। इस प्रकार उपरोक्त गतिविधियों ने बादशाह की सत्ता के भाव को प्रतिपादित किया है।


प्रश्न 3. मुगल साम्राज्य में शाही परिवार की स्त्रियों द्वारा निभाई गई भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर

मुगल काल में स्त्रियों का योगदान उल्लेखनीय है। वे शाही परिवारों में बेगम, अगहा और अगाचा के रूप में रहती थीं। इनमें पति के सबसे करीब बेगम होती थी। वैवाहिक जीवन के अतिरिक्त अन्य महिलाओं यथा-नूरजहां और गुलबदन बेगम का योगदान राजनीतिक और साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा। प्रशासनिक कार्य में जहांगीर की बेगम नूरजहां का काफी दखल रहता था, तथा जहांगीर भी उनसे विचार- विमर्श करके निर्णय लेते थे। शाहजहां की पुत्रियां जहाँनारा और रौशन आरा भी अन्य मनसबदारों के समान कमाती थीं। दिल्ली स्थित चांदनी चौक की रूपरेखा भी जहाँनारा ने ही बनवाई थी। गुलबदन बेगम द्वारा लिखित हुमायूंनामा मुगल काल का महत्वपूर्ण ग्रंथ है। उनके कार्य में मुगलों का घरेलू जीवन तथा स्त्रियों द्वारा संघर्ष सुलझाने में योगदान बताया गया है।


प्रश्न 4. वे कौन से मुद्दे थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर क्षेत्रों के प्रति मुगल नीतियों व विचारों को आकार प्रदान किया?

उत्तर

मुगल साम्राज्य के बाहर और भीतर अनेक ऐसी परिस्थितियों थीं जिन्होंने मुगलों की नीतियों को आकार दिया। इनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न कंधार का है। कंधार मुगलों और सफावियों के बीच झगड़े का कारण था। मुगल हमेशा चाहते थे कि कंधार और काबुल पर नियंत्रण उन्हें संभावित खतरों से सुरक्षित रख सकता है। मक्का और मदीना जैसे पवित्र स्थलों पर अनेक तीर्थयात्री जाते थे। इसलिए मुगलों के लिए यह आवश्यक था कि वे ऑटोमन साम्राज्य के साथ मधुर संबंध बनाए रखें, ताकि तीर्थयात्रियों व साथ ही व्यापारियों का आवागमन सुचारू रूप से चलता रहे। अकबर द्वारा जेसुइट प्रचारकों को बुलाया जाना भी मुगल साम्राज्य की धर्मनिरपेक्षता को बताता है। जेसुइट प्रचारकों की कारण ही यूरोप भारत के बारे में जान पाया था। जेसुइटों द्वारा दिया गया विवरण फारसी इतिहास में मुगलों की जीवन के बारे में बताए गए तथ्यों की पुष्टि भी करता है।


प्रश्न 5. मुगल प्रांतीय प्रशासन के मुख्य अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए । केंद्र किस तरह से प्रांत पर नियंत्रण रखता था ?

उत्तर

अत्यंत विशाल मुगल साम्राज्य प्रशासनिक सुविधा के लिए अनेक स्तरों पर विभाजित था। सर्वप्रथम प्रांत आते थे, जिन्हें सूबा कहा जाता था। प्रत्येक सूबा एक सूबेदार के अधीन होता था। सूबेदार स बादशाह के प्रति जवाबदेह होते थे। प्रत्येक सूबा कई सरकारों में विभक्त होता था। हर स्तर पर अनेकों अधिकारी यथा- कानूनगो, चौधरी, काज़ी, संदेशवाहक, लेखाकार इत्यादि काम करते थे। बादशाह सर्वोपरि होता था। हालांकि फारसी मुगल साम्राज्य की प्रशासनिक भाषा थी, परंतु निचले स्तर के प्रशासन में स्थानीय भाषाओं का प्रयोग भी किया जाता था ।


निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 300 शब्दों में)


प्रश्न 7. उदाहरण सहित मुगल इतिहासों के विशिष्ट अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए ।

उत्तर

मुगल इतिहास का भारतीय इतिहास में अत्यंत विशिष्ट स्थान है। इस स्थान के पीछे अनेकों अभिलक्षणों का योगदान रहा है, जिनमें से मुख्य अभिलक्षण इस प्रकार हैं:

  • साहित्य- सभी मुगल बादशाहों ने अपनी कीर्ति गाथाओं को इतिवृत्तों के माध्यम से एकत्रित करने का प्रयास किया। अकबर ने अबुल फजल से अकबरनामा का लेखन करवाया। आईने अकबरी जो फारसी भाषा में लिखी गई थी, वह अकबर कालीन साम्राज्य की संस्कृति का बयान करती है। बाबरनामा का तुर्की से फारसी में अनुवाद करवाया गया था तो शाहजहां का बादशाहनामा और औरंगजेब का आलमगीरनामा भी मुगल इतिहास की अमिट छाप छोड़ गए हैं।
  • कला- मुगल शासक विशिषतः अकबर, जहांगीर और शाहजहां ने रंगीन चित्रकारी और चित्रकारों को पनपने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। शासक के दैवीय रूप को चित्रों में प्रभामंडल के साथ दिखाया गया है। अबुल फजल तो चित्रकारी को एक जादुई कला मानते थे जिसमें निर्जीव को भी जीवंत करने की खूबी होती है। अनेक ईरानी चित्रकार यथा मीर सैय्यद अली भी भारत आए थे।
  • राजत्व का सिद्धांत- बादशाह को ईश्वर (फर-ए-इज़ादी) के तुल्य या उनका दूत माना जाता था। अबुल फजल ने तो मुगल राजत्व को सबसे ऊंचा दर्जा दिया था। इस सिद्धांत के अनुसार दैवीय प्रकाश के चलते राजा प्रजा के लिए आध्यात्मिक मार्गदर्शन करता था।
  • धर्मनिरपेक्ष समाज बनाने का प्रयास- अकबर के दीन-ए-इलाही और सुलह-ए-कुल ने सभी धर्मों के प्रति आदर भाव बनाए रखने की बात कही। अबुल फजल के अनुसार सुलह-ए-कुल की नीति प्रबुद्ध शासन के लिए अत्यावश्यक है। परंतु सुलह-ए-कुल की शर्त भी थी कि कोई भी धर्म राज्य सत्ता को क्षति नहीं पहुंचाएगा और आपस में कोई भी धर्म के नाम पर नहीं लड़ेगा। इस प्रकार मुगल इतिहास में अनेकों अभिलक्षण थे जिसने बाहरी साम्राज्यों, जेसुइटों का ध्यान भी आकर्षित किया। इसके चलते मुगल साम्राज्य को यूरोप तक में पहचाना जाने लगा।


प्रश्न 8. इस अध्याय में दी गई दृश्य सामग्री किस हद तक अबुल फज्ल द्वारा किए गए 'तसवीर' के वर्णन (स्त्रोत 1) से मेल खाती है।

उत्तर

अबुल फजल के अनुसार किसी वस्तु का हुबहू रेखांकन करना तस्वीर कहलाता है। चित्रकारी को अबुल फजल ने एक ऐसी कला समझा था जो निर्जीव को भी सजीव कर देती है। ऐसा हम इस अध्याय में दिखाए गए अनेक चित्रों को देखकर समझ सकते हैं। हिंदू चित्रकार अत्यंत उत्कृष्ट रंगीन चित्र बनाते थे। इसकी पुष्टि गोवर्धन द्वारा लगभग 1630 में बनाए गए 'तैमूर द्वारा बाबर को मुकुट भेंट' चित्र से होती है। इस चित्र में बाबर के पीछे कोई प्रभामंडल नहीं दिखाई देता है क्योंकि प्रभामंडल बनाने की परंपरा 17 वीं सदी में प्रारंभ हुई। परिणाम स्वरूप हम बाद की तस्वीरों में प्रभामंडल देख सकते हैं यथा - अबुल हसन द्वारा चित्रित अकबर और जहांगीर; पयाग द्वारा निर्मित चित्र जिनमें जहांगीर शाहजहां को मणि दे रहे हैं। पयाग द्वारा बनाए गए चित्र जिसमें शाहजहां दरबार में औरंगजेब का सम्मान करते हुए दिखाए गए हैं, अत्यंत जीवंत लगता है। चित्रों में इस्तेमाल किए गए रंग, बारीक सजावट तस्वीरों की शोभा बढ़ाती है। लाल, हरा, नीला, पीला और काला रंग मुख्य रूप से दिखते हैं। अकबरनामा में रामदास द्वारा बनाया गया सलीम के जन्म का दृश्य जिसमें शहनाई, नगाड़ा वादक, प्रजा व मोर सभी मनमोहक लगते हैं। जहांगीर लघु चित्रों का अत्यंत शौकीन था। मुगलों ने पांडुलिपि को भी अनेक चित्रों से सजाया था । अध्याय में दिया गया चिड़ियों का दृश्य काफी सजीव लगता है। इस प्रकार अध्याय में दिए गए सभी चित्र अबुल फजल द्वारा दिए गए तस्वीर के वर्णन से पूर्णतः मेल खाते हैं।


प्रश्न 9. मुगल अभिजात वर्ग के विशिष्ट अभिलक्षण क्या थे? बादशाह के साथ उनके संबंध किस तरह

उत्तर

विशाल मुगल साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए अनेक अधिकारी होते थे। अधिकारियों के इस दल को इतिहासकार अभिजात वर्ग की संज्ञा देते हैं।

इस वर्ग के मुख्य अभिलक्षण इस प्रकार हैं-

  • मिश्रित धार्मिक प्रतिनिधित्व- लगभग सभी धर्मों के समूह के अधिकारी नियुक्त होते थे। ईरानी, तूरानी, राजपूत, राणा, मराठा, भारतीय मुस्लिम (शेखजादा) इत्यादि सभी अभिजात वर्ग का हिस्सा थे। यह ध्यान रखा जाता था कि कोई भी दल राज्य सत्ता को चुनौती देने जितना ताकतवर न बन पाए।
  • मनसबदारी- दो ओहदे जात और सवार महत्वपूर्ण होते थे। 1000 से ज्यादा जात रखने वाले मनसबदार अभिजात (उमरा) कहलाते थे। तैनात-ए-रक़ाब ऐसा अभिजात समूह होता था जिसे किसी भी प्रांत या सैन्य अभियान में नियुक्त किया जा सकता था।
  • सूचना प्रसार के लिए अनेक अधिकारी यथा वकिया नवीस, कसीद व थार काम करते थे।
  • साम्राज्य अनेक सूबों और परगनों में विभाजित था। यहाँ प्रशासनिक कार्य में अधिकारी गण स्थानीय भाषा का भी प्रयोग करते थे। कभी-कभी यहां जमींदारों का साम्राज्य के प्रतिनिधियों मनमुटाव भी हो जाता था।
  • समूचा अभिजात वर्ग बादशाह के प्रति जवाबदेह होता था। शासक को सर्वोपरि माना जाता था। सूबेदारों को सीधे बादशाह को प्रतिवेदन पेश करना होता था। कुछ अधिकारी बादशाह के करीब और वफादार होते थे। बादशाह अभिजात वर्ग के कुछ अधिकारियों से वैवाहिक संबंध भी कायम करते थे। उदाहरण स्वरूप अकबर ने भारमल की पुत्री से विवाह किया था। ऐसा करने से सत्ता सुरक्षित रहती थी और साम्राज्य का विस्तार भी हो पाता था।
  • इस प्रकार अभिजात वर्ग मुगल प्रशासन का एक ऐसा गुलदस्ता था जो वफादारी से बादशाह के साथ जुड़ा हुआ था।


प्रश्न 10. राजत्व के मुगल आदर्श का निर्माण करने वाले तत्वों की पहचान कीजिए ।

उत्तर

मुगल साम्राज्य में राजत्व पूर्ण रूप से नया नहीं था जैसा कि अबुल फजल बताते हैं कि ईरानी सूफी शिहाबुद्दीन सुहरावर्दी (1191 .) ने सर्वप्रथम राजत्व के विचार को प्रस्तुत किया था। इस विचार के अनुसार बादशाह को सीधा ईश्वर अर्थात फर--इज़ादी द्वारा प्रदत्त शक्तियों का मसीहा माना जाता है। राजा अपनी प्रजा के आध्यात्मिक मार्गदर्शन के स्रोत होते हैं। चित्रकारों द्वारा प्रदर्शित प्रभामंडल राजा के इसी रूप का समर्थन करते हैं। एक अन्य तत्व सुलह--कुल की नीति थी, जिसमें एक ऐसा आदर्श राज्य बनाने की कल्पना की गयी थी जहां सभी धर्मों यथा- हिंदू, मुस्लिम, जैन सौहार्द पूर्ण रहें और आपस में लड़ाई करें। अबुल फजल तो इस नीति को प्रबुद्ध शासन के लिए मूलभूत आवश्यकता मानते थे। इसी के चलते अकबर ने जजिया कर और तीर्थ यात्रा कर भी समाप्त कर दिया था। बादशाह को परोपकार की मूर्ति के रूप में देखा जाने लगा। अबुल फजल प्रभुसत्ता को एक सामाजिक अनुबंध के रूप में बताते हैं। बादशाह अपनी प्रजा के जीवन, धन, सम्मान विश्वास की रक्षा के लिए जिम्मेदार होता है। इसके बदले में प्रजा को राजा की आज्ञाओं का पालन करना होता है। केवल न्याय पूर्ण संप्रभु ही दैवीय मार्गदर्शन शक्ति सत्ता को समझ पाते थे। इस प्रकार उपरोक्त सभी तत्वों ने मुगल साम्राज्य को एक आदर्श राज्य बनाने का प्रयास किया। हालांकि मुगल साम्राज्य के पतन के समय यह आदर्श भाव कम होने लग गया था।

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