NCERT Solutions for Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली: चुनौतियां और पुनर्स्थापना Class 12 Political Science
एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली: चुनौतियां और पुनर्स्थापना Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति-II
अभ्यास
प्रश्न 1. 1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं:
(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबंधन सरकार बनाई।
(घ) कांग्रेस केंद्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।
उत्तर
(घ) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबंधन सरकार बनाई ।
प्रश्न 2. निम्नलिखित का मेल करें:
(क) सिंडिकेट |
(i) कोई निर्वाचित जन प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे वल में चला जाए। |
(ख) दल-बदल |
(ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा । |
(ग) नारा |
(iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ़ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना । |
(घ) गैर-कांग्रेसवाद |
(iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह | |
उत्तर
(क) सिंडिकेट |
(iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह | |
(ख) दल-बदल |
(i) कोई निर्वाचित जन प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे वल में चला जाए। |
(ग) नारा |
(ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा । |
(घ) गैर-कांग्रेसवाद |
(iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ़ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना । |
(क) जय जवान, जय किसान।
(ख) इंदिरा हटाओ।
(ग) गरीबी हटाओ।
उत्तर
(क) लाल वहादुर शास्त्री ।
(ख) विरोधी दल ।
(ग) इंदिरा गाँधी ।
(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था ।
(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था ।
उत्तर
(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना ।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना ।
(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना ।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना ।
उत्तर
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना ।
- फायदा: पार्टी में अनुशासन बढ़ेगा।
- घाटा: पार्टी में अध्यक्ष या बड़े नेताओं की दादागिरी बढ़ेगी और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र कमजोर होगा।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करनाः
- फायदा: इससे पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बढ़ेगा। छोटे कार्यकर्ताओं में अधिक प्रसन्नता होगी।
- घाटा: पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा मिलेगा। प्रायः प्रत्येक मामले में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक खेमा सामने आएगा ।।
(ग) हरेक मामले में गुप्त मतदान कराना:
- फायदा: यह पद्धति अधिक लोकतांत्रिक और निष्पक्ष है।
- घाटा: राजनैतिक पार्टियों के अध्यक्ष के व्हिप जारी करने के बावजूद उम्मीद के अनुरूप कई बार परिणाम नहीं मिलते।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना:
- फायदा: कम उम्र के नेताओं को अनुभवी एवं परिपक्व लोगों की सलाह या मार्गदर्शन मिलेगा। नई पीढ़ी को इसका लाभ मिलेगा।
- घाटा: पार्टी में सिर्फ वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की मनमानी चलेगी।
प्रश्न 6. निम्नलिखित में से किसे / किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए:
(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट ।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता ।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद ।
उत्तर
(क) कांग्रेस पार्टी में करिशमाई नेता का अभाव- इसे कांग्रेस की हार के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कांग्रेस में अनेक वरिष्ठ और अनुभवी करिश्माई नेता थे।
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट- यह कांग्रेस की पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण था क्योंकि कांग्रेस अब दो गुटों में बँटती जा रही थी। सिंडिकेट का कांग्रेस के संगठन पर अधिकार था तो इंडिकेट या इंदिरा समर्थकों में व्यक्तिगत वफादारी और कुछ कर दिखाने की चाहत के कारण मतभेद बढ़ते जा रहे थे। एक गुट पूँजीवाद, उदारवाद, व्यक्तिवाद को ज्यादा चाहता था तो दूसरा गुट रूसी ढंग के समाजवाद, राष्ट्रीयकरण, देशी राजाओं विरोधी नीतियों की खुले आम आलोचना करता था।
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना- 1967 में पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में डी.एम. के. जैसे दलों के उदय से अनेक राज्यों में क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक लामबंदी को बढ़ावा मिलने के कारण कांग्रेस को भारी धक्का लगा। वह केन्द्र में स्पष्ट बहुमत न प्राप्त कर सकी और कई राज्यों में उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता- गैर कांग्रेसी दलों के बीच पूर्ण रूप से एकजुटता नहीं थी लेकिन जिन-जिन प्रांतों में ऐसा हुआ वहाँ वामपंथियों अथवा गैर कांग्रेसी दलों को लाभ मिला।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद- कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद के कारण बहुत जल्दी ही आंतरिक फूट कालांतर में सभी के सामने आ गई और लोग यह मानने लगे कि 1967 के चुनाव में कांग्रेस की हार के कई कारणों में से यह कारण भी एक महत्त्वपूर्ण था ।
उत्तर
(i) 1970 के दशक में इंदिरा गाँधी की सरकार कई कारणों से लोकप्रिय हुई थी। इंदिरा गाँधी की सरकार ने अनेक साहसी फैसले लिए। उनकी सरकार ने अधिक प्रगतिशील कार्यक्रम जैसे बीस सूत्री कार्यक्रम, गरीबी हटाने के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण का वायदा और कल्याणकारी सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रम की घोषणा की। इंदिरा गाँधी देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री होने के कारण महिला मतदाताओं में अधिक लोकप्रिय हुई।
(ii) इंदिरा गाँधी द्वारा 20 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवीपर्स को समाप्त करना, श्री वी.वी. गिरि जैसे मजदूर नेता को दल के घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव जिता कर लाना। इन सबने इंदिरा गाँधी और उनकी सरकार को लोकप्रिय बनाया। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में इंदिरा गाँधी की कूटनीति ने बांग्लादेश का निर्माण कराया और पाकिस्तान को शिकस्त दिलवाई। इससे इंदिरा गांधी की लोकप्रियता काफी बढ़ी।
उत्तर
कांग्रेस पार्टी में सिंडिकेट 1960 के दशक में कांग्रेस पार्टी के संगठनात्मक ढाँचे में कुछ प्रमुख नेताओं का एक समूह उभरकर आया था और कांग्रेस के सभी निर्णयों तथा गतिविधियों पर उस समूह की छाप पड़ने लगी थी। वह एक प्रकार से किंग मेकर के समान था। इसी समूह को अनौपचारिक रूप से सिंडिकेट कहा जाता था। कांग्रेस पार्टी के संविधान में इसकी कोई व्यवस्था नहीं थी और सभी निर्णय पार्टी संविधान के अनुसार लोकतांत्रिक तरीके से होने चाहिए थे इस समूह के प्रमुख नेता थे के. कामराज (मद्रास), बम्बई के एस.के. पाटिल, मैसूर के एस. निजलिंगप्पा, पश्चिमी बंगाल के अतुल्य घोष, आंध्र प्रदेश के. एन. संजीवा रेड्डी ।
धीरे-धीरे इस समूह का दबदबा बढ़ता गया। नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री को और उनकी मृत्यु के बाद इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनवाने में इसने ही अहम भूमिका निभाई थी। सिंडिकेट इतना प्रभावी होने लगा था कि प्रधानमंत्री का स्वतंत्रतापूर्वक काम करना कठिन था और सिंडिकेट चाहता था कि प्रधानमंत्री उससे सलाह लेकर मंत्रिपरिषद का गठन करे और शासन की नीतियाँ अपनाए। 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव में इस इस समूह ने इंदिरा गांधी की असहमति के बावजूद संजीवा रेड्डी को राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस उम्मीदवार नामांकित करवा दिया। इंदिरा गांधी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और कांग्रेस के. उम्मीदवार के विरुद्ध वी.वी. गिरी को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में खड़ा करवा दिया तथा इसे निर्वाचित करवा दिया। सिंडिकेट ने अनुशासन हीनता का आरोप लगाकर इंदिरा गाँधी को दल से निकाल दिया, जिस पर कांग्रेस का विभाजन हुआ। 1971 के चुनाव में इसको एक और झटका लगा जब कि इसे कुल 16 स्थान मिले। सिंडिकेट कांग्रेस के विभाजन का कारण बनी और उसकी अपनी भी समाप्ति हुई।
उत्तर
कांग्रेस पार्टी निम्न मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई-
- इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सिंडिकेट से टक्करः कांग्रेस के कुछ पुराने दिग्गज नेता इंदिरा गाँधी को अनुभवहीन मानते थे और उन्होंने 'सिंडिकेट' नाम से अपना अलग समूह बना लिया। ये किंगमेकर की भूमिका निभाने लगे। इंदिरा गाँधी ने इस समूह के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए 'इंडिकेट' खड़ा किया। इस प्रकार पार्टी की टूट की शुरुआत हुई।
- राष्ट्रपति पद का चुनावः 1969 के राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के विरुद्ध इंदिरा गाँधी और उनके समर्थकों द्वारा उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को कहा गया कि वे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरें। यह कांग्रेस पार्टी में फूट का प्रमुख कारण था ।
- प्रधानमंत्री और उपप्रधानमंत्री के बीच मतभेद: इंदिरा गाँधी ने चौदह अग्रणी बैंकों के राष्ट्रीयकरण और भूतपूर्व राजा-महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार यानी 'प्रिवी पर्स' को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोषणा की। उस वक्त मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री और वित्तमंत्री थे। उपर्युक्त दोनों मुद्दों पर प्रधानमंत्री और बीच गहरे मतभेद उभरं और इसके परिणामस्वरूप मोरारजी ने सरकार से किनारा कर लिया।
इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस को अत्यंत केंद्रीकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरुआती दशकों में एक संघीय, लोकतांत्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियाँ भी बनानी थीं- 1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई ।
- सुदीप्त कविराज
(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इंदिरा गाँधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अंतर था ?
(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस 'मर गई' ?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा ?
उत्तर
(क) जवाहर लाल नेहरू की तुलना में उनकी पुत्री और तीसरी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस पार्टी को बहुत ज्यादा केन्द्रीयकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन के रूप में बदल दिया। नेहरू के काल में यह पार्टी संघीय लोकतांत्रिक और विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले कांग्रेसी नेताओं और यहाँ तक कि विरोधियों को साथ लेकर चलने वाले एक मंच के रूप में जानी जाती थी।
(ख) लेखक ने यह इसलिए कहा है क्योंकि उस समय कांग्रेस की सर्वोच्च नेता अधिनायकवादी व्यवहार कर रही थीं। उन्होंने कांग्रेस की सभी शक्तियाँ अपने या कुछ गिनती के अपने कट्टर समर्थकों तक केन्द्रीकृत कीं। मनमाने ढंग से मंत्रिमंडल और दल का गठन किया। पार्टी में विचार-विमर्श का दौर खत्म हो गया । व्यावहारिक रूप में विरोधियों को कुचला गया। 1975 में आपातकाल की घोषणा की गई। जबरदस्ती नसबंदी कार्यक्रम चलाए गए। अनेक राष्ट्रीय और लोकप्रिय नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
(ग) कांग्रेसी पार्टी में आए बदलाव के कारण दूसरी पार्टियों में परस्पर एकता बढ़ी। उन्होंने गैर कांग्रेसी और गैर साम्यवादी संगठन बनाए। जय प्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति को समर्थन दिया। जिन लोगों को जेल में डाल दिया गया था, उनके परिवारों को गुप्त सहायता दी गई। राष्ट्रीय स्वयं की लोकप्रियता बढ़ी। कांग्रेस से अनेक सम्प्रदायों के समूह दूर होते गए और वे जनता पार्टी के रूप में लोगों के सामने आए। 1977 के चुनाव में विरोधी दलों ने कांग्रेस का सफाया कर दिया।