NCERT Solutions for Chapter 2 एक दल की प्रधानता का युग Class 12 Political Science
एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter 2 एक दल की प्रधानता का युग Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति-II
अभ्यास
प्रश्न 1. सही विकल्प को चुनकर खाली जगह को भरें:
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ ____ के लिए भी चुनाव कराए गए थे। (भारत के राष्ट्रपति पद/राज्य विधानसभा/राज्यसभा/प्रधानमंत्री)
(ख) _____ लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही। (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी / भारतीय जनसंघ / भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी / भारतीय जनता पार्टी)
(ग) ____ स्वतंत्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्धांत था। (कामगार तबके का हित/रियासतों का बचाव / राज्य के नियंत्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था/संघ के भीतर राज्यों की स्वायत्तता)
उत्तर
(क) राज्य विधान सभा
(ख) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ग) राज्य के नियंत्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था
(क) एस. ए. डांगे |
(i) भारतीय जनसंघ |
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी |
(ii) स्वतंत्र पार्टी |
(ग) मीनू मसानी |
(iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
(घ) अशोक मेहता |
(iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी |
उत्तर
(क) एस. ए. डांगे |
(iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी |
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी |
(i) भारतीय जनसंघ |
(ग) मीनू मसानी |
(ii) स्वतंत्र पार्टी |
(घ) अशोक मेहता |
(iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी |
(क) विकल्प के रूप में किसी मजबूत राजनीतिक दल का अभाव एकल पार्टी प्रभुत्व का कारण था ।
(ख) जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ।
(ग) एकल पार्टी प्रभुत्व का संबंध राष्ट्र के औपनिवेशिक अतीत से है।
(घ) एकल पार्टी प्रभुत्व से देश में लोकतांत्रिक आदर्शों के अभाव की झलक मिलती है।
उत्तर
(क) (✔)
(ख) (x)
(ग) (✔)
(घ) (x)
उत्तर
भारतीय जनसंघ की विचारधारा और कार्यक्रम बाकी दलों से भिन्न थे। जनसंघ ने शुरू से ही 'एक देश, एक संस्कृति तथा एक राष्ट्र' के विचार पर बल दिया। इस पार्टी का विश्वास था कि देश को भारतीय संस्कृति तथा परंपरा के आधार पर आधुनिक प्रगतिशील और ताकतवर बनाया जा सकता है।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी देश की समस्याओं का समाधान साम्यवाद द्वारा करने की पैरवी करते थे। अतः यह पार्टी सरकार बनाने के बाद उसी नीति के अनुरूप कार्य करती।
भारतीय जनसंघ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों के बीच तीन अंतर इस प्रकार से हैं:
- भारतीय जनसंघ सारे भारत में एक देश, एक भाषा, एक राष्ट्र, एक संस्कृति के विचार का समर्थक था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी देश की समस्याओं का समाधान साम्यवाद द्वारा करना चाहती थी। यह दल रूस के बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित था। यह दल मार्क्सवाद पर आधारित समाजवाद का समर्थक था ।
- भारतीय जनसंघ ने भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर विकास योजनाओं और अर्थव्यवस्था को अपनाए जाने पर जोर दिया। दूसरी ओर, कम्युनिस्ट पार्टी पूर्ण रूप से राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था और उत्पादन तथा वितरण पर सरकार के पूर्ण स्वामित्व का समर्थक था ।
- भारतीय जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके 'अखंड भारत' बनाने के विचार रखे। परन्तु भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दोनों देशों को अलग-अलग राष्ट्र मानती थी ।
उत्तर
कांग्रेस कई अर्थों में एक विचारात्मक गठबंधन थी। जब भारत को आजादी मिली उस समय तक कांग्रेस एक सतरंगे गठबंधन की शक्ल अपना चुकी थी और इसमें सभी प्रकार की विचारधाराओं का समर्थन करने वाले विचारकों तथा समूहों ने अपने को कांग्रेस के साथ समाहित कर लिया था। 1924 में भारतीय साम्यवादी दल की स्थापना हुई, सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। यह दल 1942 तक कांग्रेस के एक गुट के रूप में रहकर ही काम करता रहा। 1942 में इस गुट को कांग्रेस से अलग करने के लिए ही सरकार ने इस पर से प्रतिबंध हटाया। कांग्रेस में शांतिवादी, क्रांतिकारी, रुढ़िवादी और प्रगतिवादी, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी और वामपंथी सभी विचारधारा के मध्यमार्गियों का स्थान प्राप्त था। कांग्रेस ने समाजवादी समाज की स्थापना को अपना लक्ष्य निश्चित किया था और यही कारण था कि स्वतंत्रता के बाद कई समाजवादी पार्टियाँ बनीं परन्तु विचारधारा के आधार पर अपनी अलग पहचान नहीं बना सकीं और कांग्रेस के प्रभुत्व को नहीं ललकार सकीं। यदि देखा जाए तो कांग्रेस एक ऐसा मंच था जिस पर अनेकों समूह, हित और राजनीतिक दल तक आ जुटते थे। कांग्रेस में बहुत से ऐसे गुट थे जिनके अपने अलग संविधान तक थे और संगठनात्मक ढाँचा भी अलग था जैसे कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी। फिर भी उन्हें कांग्रेस के एक गुट में बनाए रखा गया। आज तो विभिन्न दलों के गठबंधन बनते हैं और सत्ता की प्राप्ति के प्रयत्न करते हैं, परन्तु आजादी के समय कांग्रेस ही एक प्रकार से एक विचारधारात्मक गठबंधन था, इस दल में ही कई समूह तथा गुट सम्मिलित थे।
उत्तर
नहीं, एकल पार्टी की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर नहीं हुआ। वैसे तो कई बार एकल दलीय प्रभुत्व प्रणाली का राजनीतिक लोकतांत्रिक प्रकृति पर बुरा प्रभाव पड़ता है और प्रभुत्व प्राप्त दल विपक्षी दलों की आलोचना की परवाह न करके मनमाने ढंग से शासन चलाने लगता है तथा लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की सम्भावना विकसित होती है, परन्तु भारत में ऐसा नहीं हुआ। पहले तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के भारतीय राजनीति पर बुरे प्रभाव नहीं पड़े बल्कि कई बातों के आधार पर यह अच्छा ही हुआ और इसने भारतीय लोकतंत्र और लोकतांत्रिक राजनीति तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं को दृढ़ बनाने में भूमिका निभाई।
एक प्रभुत्व दलीय व्यवस्था के अच्छे परिणामों की पुष्टि निम्नलिखित तथ्यों से होती है:
- कांग्रेस ही उस समय जनता का जाना माना दल था जिसमें जनता का विश्वास और जनता की आशाएँ उस से जुड़ी थीं। अतः मतदाता द्वारा आँख बंद करके उसे मत देना स्वाभाविक था। इसने कांग्रेस में भी मनोबल की वृद्धि की और वह राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान किए गए वायदों को व्यावहारिक रूप देने में सफल रहा।
- उस समय भारत का मतदाता राजनीतिक विचारधाराओं के संबंध में पूर्णत: सूचित नहीं था और उसका 18% भाग ही पढ़ा-लिखा था। उसे कांग्रेस में ही आस्था थी और आम आदमी यह समझता था कि इस दल से ही कल्याण की आशा की जा सकती है।
- उस समय भारत का लोकतंत्र और संसदीय शासन प्रणाली भी अपने शैशवकाल में थी । यदि उस समय कांग्रेस का बहुमत तथा प्रभुत्व न होता और सत्ता की प्राप्ति के लिए खींचातानी होती जैसे कि आजकल होती है, गठबंधन बनते हैं, टूटते हैं। और एक वर्ष में ही नए चुनाव भी हुए हैं और संसद तथा विधानसभाओं में नारेबाजी, खींचातानी तथा छीटाकशी होती तो आम आदमी का विश्वास लोकतंत्र तथा संसदीय प्रणाली से ही उठ जाता और लोग कहने लगते कि इससे तो अंग्रेजी राज ही अच्छा था।
- प्रभुत्व की प्राप्ति के बिना कांग्रेस के लिए प्रगतिशील कदम तथा विकास योजनाओं के कदम उठाना संभव नहीं होता और भारत में भी सैनिक शासन के लिए वातावरण विकसित होता ।
- प्रभुत्व की स्थिति प्राप्त होने के कारण राजनीति में स्थायित्व आया। विपक्षी दलों द्वारा सरकार की आलोचना भी होती रही और सरकार अपना काम भी करती रही। इसने भारतीय लोकतंत्र, संसदीय शासन प्रणाली और भारतीय राजनीति की लोकतांत्रिक प्रकृति को मजबूत बनाने में योगदान किया ।
उत्तर
समाजवादी दलों तथा कम्युनिस्ट पार्टी के बीच तीन अंतर निम्नलिखित थे:
- समाजवादी दल लोकतांत्रिक समाजवाद में विश्वास रखते थे जबकि कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवाद पर आधारित समाजवाद का समर्थक थी।
- सोशलिस्ट पार्टियाँ संवैधानिक तरीके से समाजवाद को लागू करना चाहती थीं जबकि कम्युनिस्ट पार्टी सामाजिक क्रांति और आंदोलन तथा हिंसात्मक साधनों में विश्वास रखती थी।
- सोशलिस्ट पार्टियाँ पूर्ण रूप से राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था की समर्थक नहीं थीं, वे समाजवादी कार्यक्रमों तथा जनता का कल्याण करने वाली योजनाओं को लागू करना चाहती थीं। जबकि कम्युनिस्ट पार्टी पूर्ण रूप से राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था और उत्पादन तथा वितरण पर सरकार के पूर्ण स्वामित्व का समर्थक थी।
भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के बीच तीन अंतर निम्नलिखित हैं:
- भारतीय जनसंघ संपूर्ण भारत में एक देश, एक भाषा, एक राष्ट्र, एक संस्कृति के विचार का समर्थक था। यह भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के आधार पर ही आधुनिक प्रगतिशील और ताकतवर भारत बनाने का पक्षधर था। यह कश्मीर को विशष दर्जा और अल्पसंख्यकों को विशेष रियायतें देने का विरोध करते हुए विदेश नीति के क्षेत्र में राष्ट्र हितों की पोषक थी। दूसरी ओर, स्वतंत्र पार्टी ने एक देश, एक भाषा, एक संस्कृति की बात नहीं कही । यह पार्टी कमजोर वर्ग के हित को रखकर किए जा रहे कराधान के खिलाफ थी।
- भारतीय जनसंघ ने भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर विकास योजनाओं और अर्थव्यवस्था को अपनाए जाने पर जोर दिया। जबकि, स्वतंत्र पार्टी ने स्वतंत्र व्यापार, खुली प्रतियोगिता, आर्थिक क्षेत्र में सरकार द्वारा हस्तक्षेप न किए जाने का समर्थन किया।
- भारतीय जनसंघ ने अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में व्यावहारिक रूप से लागू करने की माँग की, जबकि स्वतंत्र पार्टी अंग्रेजी को अपदस्थ करने का विरोध करती थीं।
उत्तर
मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था। भारत में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतांत्रिक स्थितियों में कायम हुआ। दूसरी ओर, मैक्सिको में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतंत्र की कीमत पर कायम हुआ। भारत में कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ शुरू से ही अनेक पार्टियाँ चुनाव में राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय स्तर के रूप में भाग लेती रहीं, परन्तु मैक्सिको में ऐसा नहीं हुआ। मैक्सिको में सिर्फ एक पार्टी पी.आर.आई. का लगभग 60 वर्षों तक वर्चस्व रहा। कांग्रेस पार्टी को पहले तीन चुनावों में भारी बहुमत मिला क्योंकि उसने देश के संघर्ष के लिए 1885 से 1947 तक भूमिका निभाई। उसके सामने दूसरा कोई राजनैतिक दल पूर्ण आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम लेकर उपस्थित नहीं हुआ। भारतीय साम्यवादी दल भी अपनी कुछ आर्थिक नीतियों के कारण देश के 565 देशी रियासतों के शासकों, हजारों जमींदारों, जागीरदारों, पूँजीपतियों और यहाँ तक कि मिल्कियत लिए हुए धार्मिक नेताओं एवं बड़े किसानों की लोकप्रिय पार्टी नहीं बन सकी। अनेक राजनैतिक स्वतंत्रता प्रेमियों, प्रैस और मीडिया की पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर पूँजीवादी या मिश्रित अर्थव्यवस्था जैसी प्रणालियों के समर्थकों का भी हृदय जीतने में वह असफल रही।
'इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी’ (स्पेनिश में इसे पी.आर.आई. कहा जाता है) का मैक्सिको में लगभग साठ वर्षों तक शासन रहा। इस पार्टी की स्थापना 1929 में हुई थी। तब इसे नेशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी कहा जाता था। इसे मैक्सिकन क्रांति की विरासत हासिल थी। मूल रूप से पी. आर. आई. में राजनेता और सैनिक नेता, मजदूर और किसान संगठन तथा अनेक राजनीतिक दलों समे कई किस्म के हितों का संगठन था। समय बीतने के साथ पी.आर.आई. के संस्थापक प्लूटार्को इलियास कैलस ने इसके संगठन पर कब्जा जमा लिया और इसके बाद नियमित रूप से होने वाले चुनावों में हर बार पी. आर. आई. ही विजयी होती रही। बाकी पार्टियाँ बस नाम की थीं ताकि शासक दल को वैधता मिलती रहे।'
चुनाव के नियम इस तरह तय किए गए कि पी. आर.आई. की जीत हर बार पक्की हो सके। शासक दल ने अक्सर चुनावों में हेर-फेर और धाँधली की। पी.आर.आई. के शासन को 'परिपूर्ण तानाशाही' कहा जाता है। आखिरकार सन् 2000 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में यह पार्टी हारी। मैक्सिको अब एक पार्टी के दबदबे वाला देश नहीं रहा। बहरहाल, अपने दबदबे के दौर में पी. आर.आई. ने जो दाँव-पेंच अपनाए थे उनका लोकतंत्र की सेहत पर बड़ा खराब असर पड़ा है। मुक्त और निष्पक्ष चुनाव की बात पर अब भी नागरिकों का पूरा विश्वास नहीं जम पाया है।
(क) ऐसे दो राज्य जहाँ 1952-67 के दौरान कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।
(ख) दो ऐसे राज्य जहाँ इस पूरी अवधि में कांग्रेस सत्ता में रही।
उत्तर
छात्र स्वयं करे
प्रश्न 10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
- रजनी कोठारी
(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए?
(ख) शुरुआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर
(क) लेखक ऐसा इसलिए सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम और अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए क्योंकि वे उसे यथार्थवादी और अनुशासित पार्टी बनाए जाने के पक्ष में नहीं है। वह इसे गांधीवादी विचारधारा के साथ-साथ भूमि सुधार, समाज सुधार, दलित उद्धार, समन्वयवादी भूमिका में लाना चाहता है।
(ख) प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस में शांतिप्रिय, अहिंसावादी, उदारवादी, उग्रराष्ट्रवादी, हिन्दू महासभा के अनेक नेताओं, व्यक्तिवाद के समर्थकों, सिक्ख और मुस्लिम जैसे अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार दिए जाने वाले समर्थकों, हिंदी का विरोध करने वाले नेतागणों, आदिवासी हितैषियों, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के समर्थकों, समाज सुधारकों, समाजवादियों, रूस और अमेरिका दोनों के समर्थकों, जमींदारी प्रथा के उन्मूलनकर्ताओं और देशी राजाओं के परिवार से जुड़े लोगों को साथ लेकर चलने वाले निर्णय, कार्यक्रम आदि कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण हैं।