NCERT Solutions for Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Class 12 Political Science
एन.सी.आर.टी. सॉलूशन्स for Chapter 1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति-II
अभ्यास
प्रश्न 1. भारत-विभाजन के बारे में निम्नलिखित कौन-सा कथन गलत है?
(क) भारत-विभाजन "द्वि-राष्ट्र सिद्धांत" का परिणाम था।
(ख) धर्म के आधार पर दो प्रांतों- पंजाब और बंगाल का बँटवारा हुआ।
(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी ।
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।
उत्तर
(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।
प्रश्न 2. निम्नलिखित सिद्धांतों के साथ उचित उदाहरणों का मेल करें:
(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण |
1. पाकिस्तान और बांग्लादेश |
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण |
2. भारत और पाकिस्तान |
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन |
3. झारखंड और छत्तीसगढ़ |
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन |
4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड |
उत्तर
(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण |
2. भारत और पाकिस्तान |
(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण |
1. पाकिस्तान और बांग्लादेश |
(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन |
4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड |
(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर क्षेत्रों का सीमांकन |
3. झारखंड और छत्तीसगढ़ |
प्रश्न 3. भारत का कोई समकालीन राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों) और नीचे लिखी
रियासतों के स्थान चिह्नित कीजिए-
(क) जूनागढ़
(ग) मैसूर
(ख) मणिपुर
(घ) ग्वालियर
उत्तर
प्रश्न 4. नीचे दो तरह की राय लिखी गई है :
विस्मय: रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतंत्र का विस्तार हुआ।
इंद्रप्रीत: यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। इसमें बलप्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतंत्र में आम सहमति से काम लिया जाता है।
देशी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है?
उत्तर
(i) विस्मय की राय से मैं सहमत हुँ । देशी रियासतों का विलय प्रायः लोकतांत्रिक तरीके से हुआ क्योंकि सिर्फ चार-पाँच रजवाड़ों को छोड़कर सभी स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व ही भारतीय संघ में शामिल हो चुके थे। जो रजवाड़े बचे थे इनमें से भी शासक जनमत और जनता की भावनाओं (जिनकी संख्या 90 प्रतिशत से भी ज्यादा थी) की अनदेखी कर रहे थे। सभी रियासतों केन्द्रीय सरकार द्वारा भेजे गए सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे। विलय से पूर्व अधिकतर रजवाड़ों में शासन अलोकतांत्रिक रीति से चलाया जाता था और रजवाड़ों के शासक अपनी प्रजा को लोकतांत्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे।
(ii) इद्रप्रीत की राय से भी मैं कुछ हद तक सहमत हूँ। यह राय ठीक है कि भारत में रजवाड़ों के विलय को लेकर बल-प्रयोग किया गया। लेकिन यह चंद रजवाड़ों- हैदराबाद और जूनागढ़ के मामले में हुआ। वह भी इसलिए क्योंकि दोनों रजवाड़ों के शासक मुसलमान थे लेकिन वहाँ की जनसंख्या का लगभग 80 से 90 प्रतिशत भाग हिंदू थी। वहाँ की आ भारत मे विलय चाहती थी। इन दोनों रजवाड़ों में आम जनता द्वारा आंदोलन भी चलाया गया। इसके अतिरिक्त भौगोलिक दृष्टि से दोनों रजवाड़े भारतीय सीमा के अधिक नजदीक थे। कश्मीर पर हमला पाकिस्तान के उकसाने पर कबालियों ने किया था। उनके नव स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर का संरक्षण करना भारत का दायित्व भी था और भारत ने वहाँ के शासक और जनप्रतिनिधियों की माँग पर ही सेना भेजी थी। वहाँ के शासक तथा आम जनता की इच्छानुसार कश्मीर का विलय भारत हुआ। भारत में विलय के बाद से वहाँ अनेक विधान सभा और लोकसभा चुनाव हो चुके हैं।
आज आपने अपने सर पर काँटों का ताज पहना है। सत्ता का आसन एक बुरी चीज़ है। इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा... आपको और ज्यादा विनम्र और धैर्यवान बनना होगा... अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी। -मोहनदास करमचंद गाँधी
.... भारत आजादी की जिंदगी के लिए जागेगा... हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाएँगे.. आज दुर्भाग्य के एक दौर का खात्मा होगा और हिंदुस्तान अपने को फिर से पा लेगा.. आज हम जो जश्न मना रहे हैं वह एक कदम भर है, संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं.... - जवाहरलाल नेहरू
इन दो बयानों से राष्ट्र-निर्माण का जो एजेंडा ध्वनित होता है उसे लिखिए। आपको कौन-सा एजेंडा जँच रहा है और क्यों?
उत्तर
(i) गाँधी जी का यह कथन बिल्कुल ठीक है कि सत्ता का ताज काँटों से भरा होता है। क्योंकि प्रायः सत्ता पाने के बाद सत्तासीन लोगों में घमंड आ जाता है। वे प्रायः अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करते। भारत में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना गाँधीवादी तरीकों से अहिंसा, प्रेम, सत्य, सहयोग, समानता, भाईचारा, सांप्रदायिक सदभाव आदि के साथ की जाए। सत्ता में आसीन लोगों को चाहिए कि वे ज्यादा विनम्र और धैर्यवान होकर निरंतर अपने दायित्व निर्वाह की परीक्षा देते रहें यानि न सिर्फ लोकतांत्रिक राजनीतिक की स्थापना, बल्कि समाज में सामाजिक और आर्थिक न्याय भी मिले, इसका सदैव प्रयत्न करना चाहिए।
(ii) जवाहरलाल नेहरू द्वारा व्यक्त कथन विकास के उस एजेंडे की ओर इशारा कर रहा है जो भारत आजादी के बाद की जिंदगी जिएगा। यहाँ राजनीतिक स्वतंत्रता, समानता और किसी सीमा तक न्याय की स्थापना हुई है और हमें पुरानी बातों को छोड़कर नए जोश के साथ आगे बढ़ना है। निःसंदेह 14 अगस्त की मध्य रात्रि को उपनिवेशवाद का अंत हो गया और हमारा देश स्वतंत्र हो गया। परन्तु आजादी मनाने का यह उत्सव क्षणिक था क्योंकि इसके आगे देश के समक्ष बड़ी भारी समस्याएँ थीं। इन समस्याओं में उजड़े हुए लोगों को फिर से बसाना, देश की गरीबी, बेरोजगारी और पिछड़ेपन की समस्याओं को समाप्त करना आदि सम्मिलित हैं। हमें इन समस्याओं को समाप्त करके नई संभावनाओं के द्वार खोलना है जिसमें गरीब से गरीब भारतीय भी यह महसूस कर सके कि आजाद हिन्दुस्तान भी उसका मुल्क है। यहाँ लैंगिक आधार पर समानता होनी चाहिए। देश उदारवाद और वैश्वीकरण के साथ-साथ सभी को सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाए। समान नागरिक विधि संहिता लागू हो।
हमें नेहरू जी का एजेंडा ज्यादा जँच रहा है क्योंकि नेहरू जी ने भारत के भविष्य का खाका खींचने की तस्वीर पेश की है। उन्होंने परख लिया था कि आजादी के साथ-साथ अनेक प्रकार की समस्याएँ भी आई हैं। गरीब के आँसू पोछने के साथ-साथ विकास के पहिए की गति को भी तेज करना था ।
उत्तर
प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किए जाने का समर्थन किया और इसके पक्ष में कई तर्क प्रस्तुत किए जो निम्नलिखित हैं-
- नेहरू का कहना था कि विभाजन के सिद्धांत में जनसंख्या की अदला-बदली की कोई व्यवस्था नहीं थी कि पाकिस्तान बनने के बाद भारत के सभी मुसलमानों को भारत से निकाल दिया जाएगा। पंजाब और बंगाल के प्रांतों में ही मुख्य रूप से यह अदला-बदली हुई जो परिस्थितियों का परिणाम थी तथा आकस्मिक थी।
- भारत के दूसरे प्रांतों से जो भी मुसलमान पाकिस्तान गए वे स्वेच्छा से गए, किसी सरकारी आदेश के अंतर्गत नहीं ।
- पाकिस्तान बनने और जनसंख्या की अदला बदली के बाद भी भारत में मुसलमानों की संख्या इतनी है जिन्हें भारत से निकाला जाना संभव नहीं। 1951 की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 12 प्रतिशत था।
- भारत में मुसलमानों के अतिरिक्त और भी अल्पसंख्यक धार्मिक वर्ग हैं जैसे कि सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, यहूदी । मुसलमान सबसे बड़ा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय था। इसके होते हुए भारत को हिन्दू राष्ट्र और राज्य घोषित किया जाना न उचित है और न ही न्यायसंगत।
- यदि भारत को हिन्दू राज्य घोषित किया जाएगा तो यह एक नासूर बन जाएगा और वह सारी सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था को विषैला बनाएगा तथा इसकी बर्बादी का कारण बन सकता है।
- भारतीय संस्कृति सभी धर्मों की विशेषताओं का मिश्रण है। भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने से भारतीय संस्कृति का संयुक्त स्वरूप (Composte Character) भी कुप्रभावित होगा ।
- भारत को हिन्दू राज्य घोषित करने से सभी अल्पसंख्यकों में असुरक्षा और अलगाव की भावना विकसित होगी जो राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय एकीकरण तथा राष्ट्र-निर्माण के रास्ते में घातक होगी और भारत एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभर नहीं सकेगा।
- नेहरूजी का यह भी कहना था कि हम अल्पसंख्यकों के साथ वही व्यवहार नहीं करना चाहते और न ही कर सकते जो पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ किया जा रहा है और वहाँ के अल्पसंख्यकों को अपमान और भय के वातावरण में जीना पड़ रहा है।
- नेहरू का यह भी तर्क था कि हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाना है, धर्मतंत्र को नहीं। अतः हमें सभी नागरिकों को, बहुसंख्यकों की तरह अल्पसंख्यकों को भी समान समझना है, उन्हें समान अधिकार और जीवन विकास की समान सुविधाएँ तथा अवसर प्रदान करने हैं, अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा की व्यवस्था करनी होगी, उनके दिल से भय और अनिश्चय का भाव दूर करना होगा और सभी नागरिकों की प्रशासन में समान भागीदारी की व्यवस्था करनी होगी।
- नेहरू का कहना था कि भारतीय संस्कृति भी इस बात की माँग करती है कि हम अपने अल्पसंख्यकों के साथ सभ्यता और शालीनता के साथ व्यवहार करें।
उत्तर
आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अंतर निम्न थे-
(i) विभाजन से पहले यह तय किया गया कि धार्मिक बहुसंख्या को विभाजन का आधार बनाया जाएगा। इसके मायने यह थे कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे वे इलाके 'पाकिस्तान' के भू-भाग होंगे और शेष हिस्से 'भारत' कहलाएँगे। यह बात थोड़ी आसान जान पड़ती है परंतु असल में इसमें कई किस्म की दिक्कतें थीं। पहली बात तो यह कि 'ब्रिटिश इंडिया' में कोई एक भी इलाका ऐसा नहीं था, जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक थे। ऐसे दो इलाके थे जहाँ मुसलमानों की आबादी अधिक थी । एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में। ऐसा कोई तरीका नहीं था कि इन दोनों इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाए। इसे देखते हुए फैसला हुआ कि पाकिस्तान में दो इलाके शामिल होंगे यानि पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान तथा इसके बीच में भारतीय भू-भाग का एक बड़ा विस्तार रहेगा।
(ii) एक समस्या और विकट थी। 'ब्रिटिश इंडिया' के मुस्लिम बहुल प्रांत पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। ऐसे में फैसला हुआ कि इन दोनों प्रातों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा और इसमें जिले अथवा उससे निचले स्तर के प्रशासनिक हलके को आधार बनाया जाएगा। 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि तक यह फैसला नहीं हो पाया था। इसका मतलब यह हुआ कि आजादी के दिन अनेक लोगों को यह पता नहीं था कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में। पंजाब और बंगाल का बँटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी साबित हुआ।
उत्तर
राज्य पुनर्गठन आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामले पर गौर करना था। इसकी प्रमुख सिफारिश यह थी कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र - शाषित प्रदेश बनाए गए।
राष्ट्र से अभिप्राय- कहा जाता है कि व्यापक अर्थ में राष्ट्र एक 'कल्पित समुदाय' है। राज्य की तरह इसे महसूस किया जाता है, उसके अस्तित्व को स्वीकार किया जाता है परंतु उसे देखा या छुआ नहीं जा सकता। राष्ट्र का अस्तित्व लोगों की एकता या अपने को एक तथा अन्य व्यक्तियों से अलग समझने की भावना पर टिका है।
- ब्राइस (Bryce) का कहना है कि "राष्ट्रीयता वह जनसमुदाय है जो भाषा, साहित्य, विचारधारा, रीति-रिवाजों आदि के आधार पर आपस में ऐसे बँधा हुआ हो कि वह अपने को एक इकाई समझता हो और इसी प्रकार के बंधनों से बँधे अन्य जनसमुदायों से अलग समझता हो। राष्ट्र वह राष्ट्रीयता है जिसने स्वयं को एक स्वतंत्र अथवा स्वतंत्रता की इच्छा रखने वाली राजनीतिक संस्था के रूप में संगठित कर लिया है।"
राष्ट्र के आवश्यक तत्त्व- राष्ट्र के निर्माण के लिए लोगों में यह भावना आनी आवश्यक है कि वे एक हैं, बाकी संसार से अलग।
यह भावना राष्ट्र के प्रति निम्नलिखित तत्त्वों से उत्पन्न होती है-
- समान जाति या नस्ल: एक ही जाति या नस्ल के लोग जब साथ-साथ रहते हैं, तो उनमें एक होने की भावना स्वाभाविक रूप से पैदा हो जाती है। एक ही जाति के लोग अपने को एक तथा अन्य जातियों से अलग समझते हैं। वे अन्य जातियों के साथ मिल-जुलकर नहीं रह सकते और अपनी अलग पहचान बनाए रखना चाहते हैं।
- समान भाषा: भाषा लोगों को एक-दूसरे के निकट लाती है। एक ही भाषा बोलने वाले लोग अपने कों एक और दूसरों से अलग समझते हैं क्योंकि भाषा द्वारा ही वे एक-दूसरे की अपनी बात कह सकते हैं और समझ सकते हैं। समान भाषा से समान विचार उत्पन्न होते हैं।
- समान धर्म: धर्म का व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए एक ही धर्म को मानने वाले, एक ही ध कार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करने वाले लोग अपने को एक मानने लगते हैं, और अन्य धर्मों के लोगों से अपने को अलग समझते हैं। इस प्रकार समान धर्म भी राष्ट्र का निर्माण करने में सहायक होता है। प्रारंभिक काल में धर्म ने लोगों में अनुशासन, आज्ञापालन और एकता की भावना पैदा की। एक धर्म को मानने वाले लोगों में एकता की भावना का आना स्वाभाविक है क्योंकि उनके धार्मिक कार्य तथा रीति-रिवाज एक से होते हैं।
- समान इतिहास: समान इतिहास भी राष्ट्रीयता का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जिन लोगों का इतिहास एक है, जिनकी ऐतिहासिक स्मृतियाँ एक हैं, जिन्होंने जय और पराजय का स्वाद इकट्ठे रहकर चखा है, जिनके श्रद्धेय वीर एक हैं, उन अपने आपको भावात्मक एकता में बँधे हुए महसूस करना स्वाभाविक है।
- भौगोलिक एकता: एक निश्चित क्षेत्र में जो कि प्राकृतिक रूप से अन्य क्षेत्रों से अलग बना हुआ हो, रहने वाले लोग अपने को स्वाभाविक रूप से एक समझते हैं, चाहे उनमें जाति, धर्म, भाषा की एकता न भी हो। भौगोलिक एकता ने राष्ट्र के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- समान संस्कृति: जिन लोगों का रहन-सहन एक जैसा हो, जिनके रीति-रिवाज एक से हों, जिनका सामाजिक जीवन एक समान हो, वे स्वाभाविक तौर पर अपने को एक समझते हैं। जिनकी कला साहित्य एक हो, जिनकी विचारधारा एक जैसी हो, उनका अपने को अन्य लोगों से अलग समझना स्वाभाविक है।
- समान हित: जिन लोगों के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक हित एक हों, उनका एक-दूसरे के समीप आना और अपने को एक समझना स्वाभाविक है। समान हित वाले व्यक्ति इकट्ठा मिलकर कार्य करते हैं और इससे उनमे एकता की भावना पैदा होती है जो राष्ट्रीयता का निर्माण करती है ।
- समान राजनीतिक आकांक्षाएँ: जिन लोगों की राजनीतिक आकांक्षाएँ समान हों, उनमें धर्म, जाति, भाषा, इतिहास आदि की एकता न हो, तो भी वे अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मिल-जुलकर एवं एक होकर कार्य करते हैं। राजनीतिक आकांक्षा लोगों में राजनीतिक एकता की भावना पैदा करती है जो राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 9. कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में 'कल्पित समुदाय' होता है और सर्वसामान्य विश्वास, इतिहास, राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एकसूत्र में बँधा होता है। उन विशेषताओं की पहचान करें जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है।
छात्र स्वयं करें
राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ़ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है । सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा। जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज से, वह अपनेआप में बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य को जिस कच्ची सामग्री से राष्ट्र-निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बँटे हुए और कर्ज तथा बीमारी से दबे हुए थे। - रामचंद्र गुहा
(क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, उनकी एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए ।
(ख) लेखक ने यहाँ भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच की असमानता का उल्लेख नहीं किया है। क्या आप असमानताएँ बता सकते हैं?
(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र-निर्माण के इन दो प्रयोगों में किसने बेहतर काम किया और क्यों? छात्र अध्यापक की सहायता से करे।
उत्तर
छात्र स्वयं करें