Chapter 4 हार की जीत Summary for Class 6 Hindi NCERT मल्हार
Summary of Chapter 4 हार की जीत Class 6 Hindi
हार की जीत की कहानी के लेखक हैं सुदर्शन जी।
संक्षिप्त में सार
बाबा भारती का घोड़े के प्रति प्रेम
- बाबा भारती को अपने घोड़े सुल्तान से बहुत लगाव था।
- वे सुल्तान को केवल एक साधारण घोड़ा नहीं मानते थे, बल्कि उसे अपने परिवार का सदस्य मानते थे।
खड्ग सिंह की योजना
- खड्ग सिंह, जो एक कुख्यात डाकू था, सुल्तान की सुंदरता और शक्ति से प्रभावित होकर उसे चुराने की योजना बनाता है।
- वह एक अपाहिज व्यक्ति का वेश धारण करके बाबा भारती को धोखा देता है।
धोखे का परिणाम
- खड्ग सिंह बाबा भारती का घोड़ा चुराने में सफल हो जाता है।
- लेकिन बाबा भारती के सच्चे और दयालु स्वभाव से वह प्रभावित होता है।
बाबा भारती का अनुरोध
- बाबा भारती खड्ग सिंह से यह अनुरोध करते हैं कि वह घोड़े को वापस न करे, बल्कि इस घटना का जिक्र किसी से न करे ताकि लोगों का विश्वास कमजोर न हो।
खड्ग सिंह का पश्चाताप
- बाबा भारती की बातें सुनकर खड्ग सिंह को अपनी गलती का एहसास होता है।
- वह पश्चाताप करता है और घोड़ा वापस करने का निर्णय लेता है, लेकिन बाबा भारती से वादा करता है कि वह किसी को इस घटना के बारे में नहीं बताएगा।
कहानी का महत्व
- “हार की जीत” कहानी सिखाती है कि भले ही हम बाहरी रूप से हार जाएं, लेकिन सच्चाई और ईमानदारी से हमें अंत में जीत मिलती है।
- यह कहानी दूसरों के प्रति दया और मानवीयता की भावना को बढ़ावा देती है।
बाबा भारती का चरित्र
- बाबा भारती एक ईमानदार, सच्चे और दयालु व्यक्ति हैं।
- वे जीवन में सच्चाई और ईमानदारी को सबसे महत्वपूर्ण मानते हैं।
खड्ग सिंह का परिवर्तन
- खड्ग सिंह, जो पहले एक डाकू था, बाबा भारती की सच्चाई और दयालुता से प्रभावित होकर बदल जाता है।
- वह अपनी गलती मानता है और बाबा भारती का घोड़ा वापस कर देता है।
कहानी का नैतिक संदेश
- इस कहानी का नैतिक संदेश यह है कि सच्चाई, दया और ईमानदारी की हमेशा जीत होती है।
- कहानी यह भी सिखाती है कि हमें अपने कृत्यों के लिए पश्चाताप करने और सुधार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
कहानी का अंत
- खड्ग सिंह ने बाबा भारती के घोड़े को वापस कर दिया, लेकिन बाबा भारती ने अपनी सच्चाई और विश्वास के कारण अंततः जीत हासिल की।
हार की जीत पाठ का सार
श्री सुदर्शन द्वारा लिखित कहानी ‘हार की जीत’ में एक डाकू के हृदय परिवर्तन की घटना का वर्णन किया गया है। है। बाबा भारती के पास एक बहुत सुंदर घोड़ा था। उसकी मशहूरी दूर-दूर तक फैल गई थी। बाबा भारती सब कुछ छोड़कर साधु बन गये थे, परंतु घोड़े को छोड़ना उनके वश में न था। वे उसे ‘सुलतान’ कह कर पुकारते थे। संध्या के समय वे सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर लगा लेते थे। उस इलाके के मशहूर डाकू खड्गसिंह के कानों में भी सुलतान की चर्चा पहुँची। वह उसे देखने के लिए बेचैन हो उठा और एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा। उन्हें नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने उससे पूछा कि कहो खड्गसिंह क्या हाल है ? इधर कैसे आना हुआ ? खड्गसिंह ने कहा, कि आपकी कृपा है।
सुलतान को देखने की चाह मुझे यहाँ खींच लाई। इस पर बाबा भारती ने उत्तर दिया कि सचमुच घोड़ा बाँका है। उन्होंने खड्गसिंह को अस्तबल में ले जाकर घोड़ा दिखाया। खड्गसिंह उस पर लट्टू हो गया। वह मन ही मन सोचने लगा कि ऐसा घोड़ा तो उसके पास होना चाहिए था । वहाँ से जाते-जाते वह बोला कि बाबा जी ! मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूँगा। यह सुनकर बाबा भारती को डर के मारे अब नींद न आती । वे सारी रात अस्तबल में घोड़े की रखवाली में बिताते।
एक दिन संध्या के समय बाबा भारती घोड़े पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। अचानक उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी- ” ओ बाबा ! इस कंगले की बात सुनते जाना।” उन्होंने देखा एक अपाहिज वृक्ष के नीचे बैठा कराह रहा है। बाबा भारती ने पूछा, तुम्हें क्या तकलीफ है? वह बोला, मैं दुखी हूँ। मुझे पास के रामावाला गाँव जाना है। मैं दुर्गादत्त वैद्य का सौतेला भाई हूँ। मुझे घोड़े पर चढ़ा लो।
बाबा भारती ने उस अपाहिज को घोड़े पर चढ़ा लिया और स्वयं लगाम पकड़कर चलने लगा। अचानक लगाम को झटका लगा और लगाम उनके हाथ से छूट गई। अपाहिज घोड़े पर तनकर बैठ गया । अपाहिज के वेश में वह खड्गसिंह था। बाबा भारती के मुँह से चीख निकल गई। बाबा भारती थोड़ी देर चुप रहने के बाद चिल्लाकर बोले, “खड्गसिंह मेरी बात सुनते जाओ।” वह कहने लगा, “बाबा जी अब घोड़ा न दूँगा ।’
बाबा भारती बोले – ” घोड़े की बात छोड़ो । अब मैं घोड़े के बारे में कुछ न कहूँगा। मेरी एक प्रार्थना है कि इस घटना के बारे में किसी से कुछ न कहना, क्योंकि लोगों को यदि इस घटना का पता चल गया तो वे किसी दीन-हीन गरीब पर विश्वास न करेंगे।” बाबा भारती सुलतान की ओर से मुँह मोड़कर ऐसे चले गए मानो उसके साथ उनका कोई संबंध न था ।
बाबा जी के उक्त शब्द खड्गसिंह के कानों में गूँजते रहे। एक रात खड्गसिंह घोड़ा लेकर बाबा भारती के मंदिर में पहुँचा, चारों ओर खामोशी थी। अस्तबल का फाटक खुला था। उसने सुलतान को वहाँ बाँध दिया और फाटक बंद करके चल दिया। उसकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बह रहे थे। रात के आखिरी पहर में बाबा भारती स्नान आदि के बाद अचानक ही अस्तबल की ओर चल दिए पर फाटक पर पहुँचकर उन्हें वहाँ सुलतान के न होने की बात याद आई तो उनके पैर स्वयं रुक गए। तभी उन्हें अस्तबल से सुल्तान के हिनहिनाने की आवाज़ सुनाई दी। वे प्रसन्नता से दौड़ते हुए अंदर आए और सुलतान से ऐसे लिपट गए जैसे कोई पिता अपने बिछुड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो और बोले कि अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह नहीं मोड़ेगा ।
लेखक परिचय
"हार की जीत" कहानी सुदर्शन जी द्वारा लिखी गई है। यह कहानी मानवीय संवेदनाओं और विश्वास की शक्ति पर आधारित है। इस कहानी में बाबा भारती और खड्गसिंह के चरित्र के माध्यम से यह दिखाया गया है कि किस प्रकार विश्वास और सच्चाई की जीत होती है।
शिक्षा और संदेश
सच्चाई और विश्वास की हमेशा जीत होती है, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। कहानी यह सिखाती है कि दूसरों के प्रति दया और सच्चाई का व्यवहार करना सबसे महत्वपूर्ण है।
"हार की जीत" कहानी यह संदेश देती है कि जीवन में सच्चाई और विश्वास महत्वपूर्ण हैं। चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, हमें सच्चाई का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। बाबा भारती और खड्गसिंह की कहानी हमें यह सिखाती है कि विश्वास और सच्चाई के सामने कोई भी कठिनाई टिक नहीं सकती। विश्वास और सच्चाई की शक्ति हमेशा जीतती है।